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मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की पहल भाजपा को करनी चाहिए

देशभर में लाखों मठ-मंदिर हैं जिन पर सरकारों का कब्जा है। जो मुगलों ने किया, अंग्रेजों ने किया वही आज की सरकारें कर रही हैं तो लोकतांत्रिक सरकार और मुगलों और अंग्रेजों के राज में फर्क क्या है?

हिमाचल की कांग्रेस सरकार ने सरकारी योजनाओं को पूरा करने के लिए मंदिरों से धन देने को कहा है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने हाल ही में एक आदेश जारी किया है। जिसके तहत मंदिरों और धार्मिक ट्रस्टों से धनराशि सरकारी खजाने में जमा करने को कहा गया है। ताकि सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा सके। इस फैसले को लेकर भाजपा विरोध कर रही है। यहां सवाल उठता है कि आखिर मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण होना ही क्यों चाहिए? चर्च और मस्जिद पर तो सरकारी नियंत्रण नहीं है, फिर समाज के पैसे से चलने वाले मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण का क्या अर्थ? हाल ही में तमिलनाडु भाजपा के अध्यक्ष अन्नामलाई ने बयान दिया था कि जब राज्य में उनकी सरकार बनेगी तो मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त कर दिया जाएगा। आखिर सरकार बनने पर ही क्यों? भाजपा को चाहिए कि वह पहल करके जिन भी राज्यों में भाजपा और भाजपा समर्थित सरकारें हैं वहां पर मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करे।

देशभर में लाखों मठ-मंदिर हैं जिन पर सरकारों का कब्जा है। जो मुगलों ने किया, अंग्रेजों ने किया वही आज की सरकारें कर रही हैं तो लोकतांत्रिक सरकार और मुगलों और अंग्रेजों के राज में फर्क क्या है? हमारे देश के पूरे इतिहास में कभी किसी हिंदू राजा द्वारा मंदिरों पर अधिकार और नियंत्रण रखने का कोई उदाहरण नहीं मिलता। किसी भी धार्मिक कार्य में राजा द्वारा कोई भी हस्तक्षेप किया जाता हो ऐसा भी कोई उदाहरण नहीं है। हां जब मुगलों का राज आया तब उन्होंने जरूर ऐसा किया। हिंदुओं पर जजिया लगाया। मंदिरों की अकूत संपत्ति आक्रांताओं ने लूट ली। सोमनाथ मंदिर को वर्ष 1024 में महमूद गजनवी ने तहस-नहस कर दिया था। मूर्ति को तोड़ने से लेकर यहां पर चढ़े सोने-चांदी तक के सभी आभूषणों को लूट लिया गया था। इतना ही नहीं वह हीरे-जवाहरातों को भी लूटकर चला गया था।

बावजूद इसके हर बार हिंदू राजाओं और समाज ने उत्साह से मंदिर का पुनर्निर्माण किया। मुगल काल के बाद अंग्रेजों ने मंदिरों पर अधिकार जताया और उन्हें अपने नियंत्रण में लिया। मंदिरों की आर्थिक ताकत पर नियंत्रण के लिए अंग्रेजों ने ईस्ट इंडिया कंपनी को टेक ओवर करने के साथ 1863 में रिलीजियस एंडोमेंट एक्ट 1863 बनाकर मंदिरों को सरकारी कब्जे में लेना शुरू कर दिया। देश आजाद होने के बाद जब 1950 में भारतीय संविधान लागू हुआ तो वर्तमान संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत मंदिर भी सरकारी नियंत्रण से मुक्त हो गए, लेकिन तब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू इस कानून को यथावत रखने के लिए हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1951 लेकर आ गए। इसके तहत ही राज्यों को मंदिरों पर कब्जा करने का अधिकार मिला। इस अधिनियम में प्रावधान किया गया था कि राज्य सरकार किसी भी धर्म के प्रशासक को मंदिर का अध्यक्ष या प्रबंधक नियुक्त कर सकती है। इसके अलावा वह मंदिर के धन का प्रयोग किसी भी कार्य के लिए कर सकती है।
तत्कालीन तमिलनाडु सरकार ने इसी कानून के तहत हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम 1959 बनाया और राज्य के लगभग सभी 35000 मंदिरों को सरकार के कब्जे में ले लिया । आज इनकी संख्या बढ़कर लगभग 46 हजार से अधिक हो चुकी है। तमिलनाडु के अलावा आंध्र प्रदेश, राजस्थान, केरल, कर्नाटक, ओडिशा, पुद्दुचेरी और कई अन्य राज्यों ने इस तरह के कानून बनाकर मंदिरों पर सरकारी कब्जा कर लिया गया है। आंकड़ों के अनुसार देश के 15 राज्यों के 4 लाख से अधिक मंदिर और मठ अलग-अलग राज्य सरकारों के कब्जे में हैं।

मंदिर और मठ प्राचीन काल से ही न केवल आस्था के केंद्र रहे हैं, बल्कि अर्थव्यवस्था का आधार स्तंभ भी रहे हैं। भारत के सामाजिक-आर्थिक ढांचे में मंदिर-मठ वास्तविक संपत्ति हैं, जो सामाजिक परिवेश में बने रहने के लिए संसाधन जुटाते हैं।, लोगों को रोजगार देते हैं और अपनी गतिविधियां बढ़ा कर बड़ी अर्थव्यवस्था का सृजन भी करते हैं। इतिहास उठाकर देखते हैं तो पता चलता है चाहे गजनी हो, गौरी हो या बाबर। सारे आक्रांताओं ने मंदिरों को निशाना बनाया, आखिर क्यों? क्योंकि किसी समाज का गौरव, उसकी आर्थिक गतिविधियों का केंद्र, गुरुकुल सब मंदिरों के पास ही स्थित होते थे। वहां बाजार थे, मेले लगते थे। अर्थव्यवस्था को बल मिलता था। आक्रांताओं की सोच यही रही कि उस जगह को नष्ट कर दो और उनका सारा गौरव छीन लो।

भारतीय समाज के निर्माण में मंदिरों की भूमिका प्राण की तरह है। मंदिरों में ही भारतीय संगीत कला, नृत्य कला, आयुर्वेद, युद्धकला, वास्तु, शिल्प व मूर्तिकला पोषित हुई है। भगवान शिव के  नटराज स्वरूप को नृत्य एवं मां सरस्वती को विद्या व संगीत की प्रेरणा माना गया है। धनवंतरी और चरक जैसे आयुर्वेदाचार्यों की परंपरा से निकली चिकित्सा विद्या का प्रसार हम आज भी मंदिरों से जुड़े चिकित्सालयों में भी देख सकते हैं। यह प्रक्रिया पुरातन काल से चलती आ रही है। आज केंद्र में भाजपा की सरकार है। देश के 21 राज्यों में भाजपा और एनडीए की सरकार है तो सरकार क्यों नहीं मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करने की पहल करती। भाजपा को मंदिरों को सरकारी कब्जे से मुक्त करने की पहल करते हुए ऐसा कानून बना देना चाहिए कि कोई भी मंदिर की धन संपदा पर अपनी कुदृष्टि न जमा सके।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।
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