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डॉ. आंबेडकर के अपमान का फर्जी नैरेटिव गढ़ने वाली कांग्रेस का दलित प्रेम दिखावे से ज्यादा कुछ नहीं है

Yogi Adityanath BR Ambedkar3

सदन में आए दिन किसी न किसी मुद्दे पर बवाल खड़ा करने और संसद को ठप करने की आधी हो चुकी कांग्रेस ने गृहमंत्री अमित शाह के बयान को तोड़मरोड़ कर उन पर डॉ. आंबेडकर का अपमान करने का आरोप लगाकर उनका इस्तीफा मांगा है। डॉ.आंबेडकर का नाम लेकर दलित हितैषी बनने की कोशिश कर रही कांग्रेस ने दलितों को हमेशा मुहाने पर रखा है। डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर के अपमान किए जाने का फर्जी नैरेटिव गढ़ सदन में बवाल खड़ा करने का कांग्रेस का एकमात्र उद्देश्य सिर्फ वोट बैंक की राजनीति है और कुछ नहीं। दलित हितैषी होने का दिखावा कर रही कांग्रेस को दलितों की कितनी चिंता है। यह सब जानते हैं। राहुल गांधी के परनाना और देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित नेहरू ने ही डॉ. आंबेडकर को चुनाव हरवाया था। वह कतई यह नहीं चाहते थे कि डॉ. आंबेडकर चुनाव जीतें और सदन में पहुंचे।

1947 में गठित पहले सर्वदलीय मंत्रिमंडल में बाबासाहेब को कानून एवं न्याय मंत्री का दायित्व मिला था। लेकिन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की कश्मीर नीति, मुस्लिम पर्सनल लॉ, हिंदू कोड बिल आदि पर मतभेद होने के चलते 1951 में बाबासाहेब ने त्यागपत्र दे दिया था। उन्होंने तब खुलकर कांग्रेस पर दलित विरोधी होने के आरोप लगाए थे। कांग्रेस का दलित प्रेम कोरा दिखावा है। इसका इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है कि पंडित नेहरू ने खुद बाबासाहेब को चुनाव हरवाया था। वर्ष 1952 में उत्तर मुंबई की लोकसभा सीट से बाबासाहेब आंबेडकर चुनाव लड़ रहे थे तब उन्हें हराने के लिए पंडित नेहरू ने लगातार दो सभाएं की थीं। इसके चलते डॉ.आंबेडकर 15 हजार वोटों से चुनाव हार गए थे। इसके बाद भी नेहरू यहीं नहीं रुके। 1954 में डॉ. आंबेडकर भंडारा लोकसभा से चुनाव लड़ रहे थे तब भी उनको पराजित करने के लिए नेहरू ने पूरी ताकत लगाई थी। उनके खिलाफ कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार भी उतारा था। इसका नतीजा यह हुआ कि बाबासाहेब एक बार फिर से चुनाव हार गए थे। इसके बाद उन्होंने चुनाव न लड़ने का फैसला किया था। उनके अंतिम दिनों में दिल्ली में रहते हुए भी कांग्रेस का कोई बड़ा नेता उनसे मिलने तक नहीं गया था।

राहुल गांधी आज आरक्षण की सीमा बढ़ाए जाने की लगातार वकालत करते हैं लेकिन पंडित नेहरू कभी भी आरक्षण के समर्थन में नहीं थे। नेहरू ने 1961 में देश के मुख्यमंत्रियों को एक पत्र लिखकर नौकरियों में आरक्षण देने के बजाए अच्छी शिक्षा पर जोर देने को कहा था। उन्होंने लिखा था, ‘हम एससी और एसटी की मदद करने के मामले में जरूर कुछ नियमों और परंपराओं से बंधे हैं, लेकिन मैं किसी भी तरह के आरक्षण को नापसंद करता हूं। अभी आरक्षण और जातिगत जनगणना के नाम पर भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे राहुल गांधी शायद यह भूल जाते हैं कि राजीव गांधी पिछड़ों और वंचितों को आरक्षण देने वाली मंडल कमीशन की रिपोर्ट के विरोध में थे। यदि उनकी चलती तो यह रिपोर्ट कभी लागू ही नहीं हो पाती। श्रीमती इंदिरा गांधी भी और उनके बाद प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी की सरकार ने दस सालों तक इस रिपोर्ट को दबाए रखा। वी.वी सिंह जब प्रधानमंत्री बनें तो उस समय भाजपा ने उनको समर्थन दिया हुआ था तब यह रिपोर्ट लागू हो पाई थी। उससे पहले जब रिपोर्ट को लेकर लोकसभा में बहस हुई थी तो राजीव गांधी ने खुले तौर पर इसका विरोध किया था।

बाबासाहेब आंबेडकर की एक पुस्तक है ‘व्हाट कांग्रेस एंड गांधी हैव डन टू द अनटचेबल्स’ इस पुस्तक में उन्होंने कांग्रेस की दलित नीति की खूब बखिया उधेड़ी हैं। उन्होंने दलितों को लेकर कांग्रेस की कड़े शब्दों में आलोचना की है। बाबासाहेब ने पुस्तक में स्पष्ट लिखा है कि कांग्रेस द्वारा दलित हितैषी होने का दिखावा करना कतई ढोंग है। पिछले दिनों राहुल गांधी के खासमखास माने वाले सैम पित्रोदा ने तो संविधान निर्माण में बाबा साहेब की भूमिका को नगण्य बताते हुए इसका श्रेय नेहरू को ही दिया था। पिछले दिनों एक्स पर अपने पोस्ट में सैम पित्रोदा ने लिखा था, संविधान को बनाने में सबसे ज्यादा सहयोग किसका था? नेहरू का न कि आंबेडकर का। बाबा साहब का दिया हुआ संविधान…डॉ. आंबेडकर भारतीय संविधान के पिता था, ये भारत के आधुनिक इतिहास का सबसे बड़ा झूठ है।

दशकों से दलितों के एक किनारे रख उनके नाम पर राजनीति कर रही कांग्रेस ने कितनी ही बार डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का अपमान किया है। बावजूद इसके कांग्रेस द्वारा बाबासाहेब के अपमान किए जाने का फर्जी नैरेटिव गढ़ना, सदन में गुंडागर्दी करना सिर्फ और सिर्फ राजनीति है और कुछ नहीं। कांग्रेस का दलित प्रेम सिर्फ और सिर्फ दिखावा ही है इससे ज्यादा कुछ नहीं।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

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