किसी मुद्दे के विरोध में संसद में कागज फाड़ना, नारेबाजी करना। सभापति पर टिप्पणी करना यह सब तो विपक्ष पिछले दस सालों से करता ही आ रहा है, लेकिन अब बात हद से ज्यादा आगे बढ़ चुकी है। वक्फ बोर्ड में होने वाले संशोधनों पर सुझाव देने के लिए बनाई गई ज्वाइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) की बैठक में तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी ने भाजपा सांसद अभिजीत गंगोपाध्याय से बहस के बाद कांच की बोतल तोड़कर कमेटी के चेयरपर्सन जगदंबिका पाल की तरफ उछाल दी। उन्हें सिर्फ यह कहा गया था कि आप कई बार बोल चुके हैं बीच में मत बोलिए। इस पर उन्होंने गाली—गलौच की और बैठक में बोतल तोड़ने जैसी ओछी हरकत की।
मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश
दरअसल विपक्ष का पूरा ध्यान इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देकर अटकाने का है। ताकि राम मंदिर की तरह सालों इस मुद्दे को लटका कर रखा जाए और इस बहाने राजनीति करने का अवसर मिलता रहे। विपक्ष का यही रवैया पिछले दस सालों में संसद में भी रहा है। जहां कितनी ही बार संसद से विपक्ष ने वॉकआउट किया, हंगामा किया और संसद को नहीं चलने दिया गया।
हंगामा और वॉकआउट करना सोची समझी चाल
वक्फ में संशोधन के लिए जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी (जेपीसी) की बैठक में विपक्ष हर बार किसी न किसी बहाने से हंगामा और वॉकआउट कर रहा है। कांग्रेस सदस्य गौरव गोगोई, सैयद नसीर हुसैन, इमरान मसूद, डीएमके पार्टी के नेता ए. राजा और एमएम अब्दुल्ला, इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-उल मुस्लिमीन प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और टीएमसी नेता कल्याण बनर्जी बैठक में इस तरह का माहौल बना देते हैं कि कोई भी निर्णय नहीं हो पाता है। बैठक का कोई निष्कर्ष नहीं निकलता है।दरअसल विपक्ष चाहता भी यही है कि किसी न किसी तरह इस मुद्दे को राजनीतिक रंग दे दिया जाए। केरल विधानसभा में तो बाकायदा इस बिल के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया है ताकि केंद्र सरकार पर इस बिल को वापस लेने का नैतिक दबाव बनाया जा सके।
कट्टरपंथियों से मिलाया जा रहा सुर
कट्टरपंथी भी यही चाहते हैं कि वे मनमानी करते रहें। कोई कानून नहीं मानें, नियमों से नहीं चले, यदि उनकी मनमानी को आप कानून बनाकर रोकेंगे तो वे हंगामा करेंगे। लोगों को भड़काएंगे। इन्हीं कट्टरपंथियों के अहम को तुष्ट करने के लिए और स्थिति को बिगाड़ने के लिए विपक्ष इस मुद्दे पर राजनीति कर रहा है। विपक्षी दल कट्टरपंथियों के सुर में सुर मिला रहे हैं। कट्टरपंथी इस्लामी संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद के चीफ मौलाना अरशद मदनी और इनके संगठन के अन्य कई नेता लगातार वक्फ अधिनियम में संशोधन के खिलाफ जहर उगल रहे हैं।
मुस्लिम युवाओं को भड़काऊ भाषण देकर कट्टरपंथी बनाने, मनी लॉन्ड्रिंग करने और आतंकी गतिविधियों को बढ़ावा देने जैसे संगीन आरोपों के बाद देश छोड़कर भागा हुआ जाकिर नाइक देश के बाहर से वीडियो जारी कर वक्फ विधेयक को लेकर मुसलमानों में भ्रम पैदा करने और भड़काने की कोशिश कर रहा है। पिछले दिनों जारी अपने वीडियो में उसने कहा था,”सरकार पहले की तरह ताकतवर नहीं है, विपक्ष मजबूत है। मुसलमान अपने हक की लड़ाई लड़ें और इस विधेयक को खारिज करें। वक्फ की संपत्ति पर केवल मुसलमानों का हक है। अगर यह विधेयक पारित हो गया तो आने वाली पीढ़ियों पर खुद का कहर बरपेगा।” जो नाइक ने कहा वही काम विपक्ष कर भी रहा है। जबकि वक्फ बोर्ड में बदलाव के लिए लाया गया यह बिल वक्फ बोर्ड को खत्म करने के लिए नहीं बल्कि उसमें सुधार करने के लिए लाया गया है। कमेटी भी इसलिए ही बनाई गई कि ताकि सर्वसम्मति से अपेक्षित बदलावों के साथ फिर से वक्फ बोर्ड के लिए नियम बनाए जा सकें।
यह भी सर्वविदित है कि भारत में वक्फ के पास सेना और रेलवे के बाद सबसे ज्यादा जमीन है। वक्फ बोर्ड के पास 9.4 लाख एकड़ में फैली 8.7 लाख संपत्तियों का नियंत्रण है। पूरे देश में 32 वक्फ बोर्ड हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश और बिहार में दो शिया वक्फ बोर्ड भी शामिल हैं। इनका नियंत्रण कुछ ही लोगों में हाथों में है। ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि कोई घोटाला न होता हो। दुनिया के किसी मुस्लिम देश में भी वक्फ को इतने अधिकार नहीं हैं जितने भारत में हैं। मुस्लिम वोटों के लिए यह अधिकार भी कांग्रेस ने वक्फ बोर्ड को और ज्यादा ताकतवर बनाकर दिए थे। वक्फ के अपने नियम हैं, अपने कानून हैं। संवैधानिक व्यवस्था से चलने वाले देश में इस तरह से किसी बोर्ड को इतनी ताकत कैसे दी जा सकती है कि वह अपनी मनमानी करता रहे।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।