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कर्नाटक की कांग्रेस सरकार के बजट को मुस्लिम तुष्टीकरण वाला बजट न कहा जाए तो और क्या कहा जाए !

कांग्रेस ने हमेशा से हिंदुओं को हाशिए पर रखकर बार-बार मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति को अपनाया है। वहीं हमेशा से यह पार्टी हिंदू समाज की भावनाओं और अधिकारों की उपेक्षा करती आई है। चाहे वह राम मंदिर का मुद्दा हो, सीएए का मुद्दा हो या फिर कर्नाटक सरकार के बजट में मुसलमानों के लिए की गई घोषणाएं हों

कांग्रेस दावे करती है कि हम सबके लिए सोचते हैं। कांग्रेस के युवराज और संसद में नेता प्रतिपक्ष भी सेकुलर होने व सबको एक दृष्टि से देखने की बात कहते हैं, लेकिन कांग्रेस और उसके नेता जो कहते हैं करते बिल्कुल उसका उलटा हैं। कर्नाटक कांग्रेस ने जिस तरह से बजट में मुस्लिम लोगों को ठेके में आरक्षण देने की घोषणा की है। इमामों को वेतन देने की घोषणा की है। इसे कांग्रेस का मुस्लिम तुष्टीकरण न कहा जा जाए तो और क्या कहा जाए? कर्नाटक की कांग्रेस सरकार ने शुक्रवार को अपना बजट प्रस्तुत किया। इसमें सरकार ने मुसलमानों के लिए तकरीबन 4700 करोड़ रुपए की योजनाओं की घोषणा की है।

बजट में मस्जिद के इमाम को 6 हजार रुपए मासिक भत्ता, वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए 150 करोड़ रुपए, उर्दू स्कूलों के लिए 100 करोड़ रुपए और अल्पसंख्यक कल्याण के लिए 1 हजार करोड़ रुपए दिए गए हैं। इससे भी बड़ी बात, कर्नाटक सरकार ने अपने बजट में सरकारी ठेकों में मुसलमानों को 4 प्रतिशत का आरक्षण देने की घोषणा भी करती है। यहां गौर करने वाली बात है कि मुस्लिम समुदाय का एक बड़ा हिस्सा निजी काम ही करता है, नौकरियों में उनकी संख्या बहुत कम है। ऐसे में सरकारी ठेकों में आरक्षण देकर क्या कांग्रेस दूसरे समुदाय से आने वाले लोगों के अवसर नहीं छीन रही है। जाहिर है जब कांग्रेस ऐसा करेगी तो सवाल तो उठेंगे। जब इस बात सवाल उठाए जाना शुरू हुआ तो कर्नाटक सरकार में मंत्री जहीर अहमद खान ने बयान दिया कि कुल बजट 4.9 लाख करोड़ रुपए का है। मुसलमानों की आबादी 14 प्रतिशत है। ऐसे में तो उन्हें 60 हजार करोड़ रुपए मिलने चाहिए थे लेकिन उन्हें सिर्फ 47 हजार करोड़ रुपए दिए गए।

थोड़ा क्यूं, बजट का सारा हिस्सा ही मुसलमानों को दे दो। वैसे भी कांग्रेस हमेशा से ऐसा करती आई है। जिन राज्यों में उसकी सरकारें हैं, वहां पिछड़ों और दलितों के हिस्से का आरक्षण काटकर मुसलमानों को दिया जा रहा है। 2006 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश के संसाधनों पर पहला अधिकार मुसलमानों का होना चाहिए बोला ही था। 2007 में रामसेतु को लेकर कांग्रेस ने सर्वोच्च न्यायालय में शपथपत्र देकर रामसेतु को काल्पनिक करार दिया था। मुंबई हमले के बाद 2009 में कांग्रेस ने भगवा आतंकवाद झूठा वितंडा खड़ा किया था। 2011 में कांग्रेस सांप्रदायिक हिंसा विधेयक लेकर आई थी। विधेयक इस बात को आधार बनाकर लाया गया था कि हिंदू हिंसक होते हैं। इसमें प्रावधान था कि यदि कहीं भी सांप्रदायिक हिंसा होगी तो बहुसंख्यक हिंदू इसके जिम्मेदार होंगे। हिंदुओं के साथ होने वाली हिंसा को भी हिंसा नहीं माना गया था। गनीमत रही कि विपक्ष के कड़े प्रतिरोध और देशभर में हिंदू संगठनों के प्रदर्शन के चलते यह विधेयक पारित नहीं हो सका। यदि विधेयक पारित हो जाता था आज क्या स्थिति होती इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है।

सरकार ने कहा कि मुस्लिम लड़कियों के लिए 15 महिला कॉलेज खोले जाएंगे। सरकार पैसा खर्च करेगी। मुस्लिम लड़कियों के निकाह के लिए 50 हजार रुपए, मुस्लिम छात्रों के लिए राष्ट्रीय और विदेशी छात्रवृत्ति में वृद्धि की जाएगी। मुस्लिम लड़कियों को आत्मरक्षा का प्रशिक्षण दिया जाएगा। चलिए मान लेते हैं ये सब योजनाएं मुसलमानों की भलाई के लिए हैं। सरकार को उनकी भलाई भी करनी चाहिए, लेकिन सिर्फ मुसलमानों के लिए और मुस्लिम लड़कियों के लिए योजनाएं क्यूं? मुस्लिम लड़कियों को आत्मरक्षा के लिए प्रशिक्षण दिया जाएगा तो फिर हिंदू लड़कियों को क्यूं नहीं। यदि मुस्लिम लड़कियों की शादी के लिए 50 हजार रुपए दिए जाएंगे तो फिर हिंदू लड़कियों के लिए क्यूं नहीं? ऐसा तो नहीं है कि कर्नाटक के सारे हिंदू आर्थिक तौर पर इतने सक्षम हों कि उन्हें मदद की आवश्यकता न पड़ती हो।

वैसे तो राहुल गांधी आए दिन संविधान हाथ में लेकर कुछ न कुछ बोलते नजर आते हैं, लेकिन क्या कांग्रेस संविधान के हिसाब से चलती है? संविधान में तो सबको समान दृष्टि से देखने की बात की गई है, लेकिन सवाल यह है कि क्या कांग्रेस ऐसा करती है? तो इसका जवाब है नहीं, कांग्रेस कभी ऐसा नहीं करती वह हमेशा से मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति ही करती आई है। उदाहरण के तौर पर गुजरात दंगों के बाद, कांग्रेस ने तीस्ता सीतलवाड़ और अन्य वामपंथियों को खुलेआम समर्थन दिया। तमाम तरह से प्रयास किए गए कि दंगों के लिए सिर्फ और सिर्फ हिंदू समुदाय के लोग जिम्मेदार थे। यहां तक कि गोधरा जैसी हृदयविदारक घटना को हादसा बताने का पूरा प्रयास किया गया।

1950 में नेहरू-लियाकत समझौता हुआ था। यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए हुआ था। भारत में तो उन पर कोई अत्याचार नहीं हुए, बल्कि कांग्रेस ने हमेशा अपना झुकाव मुसलमानों की तरफ रखा, लेकिन पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार आज तक जारी है। हिंदू वहां से पलायन कर रहे हैं। जब पाकिस्तान से विस्थापित होकर भारत पहुंचे हिंदुओं को नागरिकता देने के लिए सीएए ‘नागरिकता संशोधन अधिनियम’ लाया गया तो कांग्रेस ने इसका भी विरोध किया। कांग्रेस हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम (एचआरसीई अधिनियम) (1951) लाई। इसके तहत अन्य कानूनों के साथ मंदिरों को राज्य सरकारों के हाथों में सौंप दिया गया, लेकिन मस्जिदों को राज्य के नियंत्रण से मुक्त रखा गया।

कांग्रेस 1954 में विशेष विवाह अधिनियम लेकर आई, ताकि मुस्लिम लड़के आसानी से हिंदू लड़कियों से शादी कर सकें। संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष’ शब्द भी बिना किसी से चर्चा किए कांग्रेस ने ही जोड़ा। अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम लाकर कांग्रेस ने ही मुसलमानों को ‘अल्पसंख्यक’ घोषित किया, जबकि पंथनिरपेक्ष देश में बहुसंख्यक-अल्पसंख्यक हो ही नहीं सकते। और भी न जाने कितने कांग्रेस के कृत्य हैं जो हिंदू विरोधी हैं और मुस्लिम तुष्टीकरण के उदाहरण हैं। किसी समुदाय के विकास के लिए योजनाएं लाना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन सिर्फ और सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के लिए लक्षित कर एक ही समुदाय को लाभ देना न्यायोचित कतई नहीं है।

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