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हार की हताशा में क्या दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले ही कांग्रेस ने घुटने टेक दिए हैं !

दिल्ली में पिछले विधानसभा चुनाव 8 फरवरी 2020 को हुए थे। इस बार भी फरवरी में चुनाव होने हैं। कभी भी चुनावों की तारीख की घोषणा हो सकती है। चुनावी सरगर्मियां शुरू हो चुकी हैं। आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी दोनों ने अपना प्रचार शुरू कर दिया है। दोनों ही अपने—अपने मुद्दों को लेकर जनता के बीच जा रहे हैं। लेकिन कांग्रेसी खेमे में बिल्कुल चुप्पी है। ऐसा लग रहा है कि दिल्ली में कांग्रेस का कोई अस्तित्व ही नहीं है। लग रहा है कि जैसे चुनावों से पहले ही कांग्रेस ने हार मान ली हो और वॉकओवर दे दिया हो कि कोई भी जीते उसे दिल्ली विधानसभा चुनावों से कुछ लेना—देना ही नहीं है।

हालांकि कांग्रेस ने शुक्रवार को अपने 21 प्रत्याशियों की पहली सूची जारी की है। जिसमें अरविंद केजरीवाल के सामने संदीप दीक्षित को लड़ाने की घोषणा की है, क्योंकि केजरीवाल उनकी मां शीला दीक्षित को हराकर ही पहली बार चुनाव जीते थे। अब संदीप उनके सामने कांग्रेस के कार्यकाल में हुए विकास कार्यों को गिनाकर मैदान में ताल ठोकेंगे। वर्तमान में दिल्ली के समीकरणों को देखते हुए संदीप दीक्षित कितने सफल होंगे और दिल्ली में कांग्रेस क्या फिर से पनप पाएगी यह कहना अभी बहुत जल्दबाजी होगी। फिलहाल तो कांग्रेस की तरफ से ऐसी कोई सरगर्मी भी नजर नहीं आ रही जिससे लगे कि वास्तव में दिल्ली में कांग्रेस चुनाव लड़ रही है।

पिछले दस सालों से आम आदमी पार्टी लगातार सत्ता में है। भ्रष्टाचार समेत तमाम आरोप उसके नेताओं पर लगे हैं। खुद अरविंद केजरीवाल समेत उनके कई नेता जमानत पर बाहर हैं लेकिन कांग्रेस किसी भी मुद्दे पर आम आदमी पार्टी को घेर नहीं पा रही है। उसके नेताओं के बस बयान ही नजर आते हैं धरातल पर कुछ दिखाई नहीं देता। शीला दीक्षित के नेतृत्व में 2013 में दिल्ली विधानसभा चुनाव हुए थे, वह तीन बार लगातार दिल्ली की मुख्यमंत्री रही थीं लेकिन इन चुनावों में नई—नई पैदा हुई आम आदमी पार्टी के सामने कांग्रेस को बुरी हार का सामना करना पड़ा।

कांग्रेस को दिल्ली में 70 सीटों में से मात्र आठ सीट मिली थीं। किसी को बहुमत नहीं मिला था। केजरीवाल को सरकार बनाने के लिए कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया था। यह सरकार 28 दिसंबर 2013 को बनीं लेकिन केजरीवाल ने 14 फरवरी 2014 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद दिल्ली में करीब एक साल तक राष्ट्रपति शासन लगा रहा, और फिर फरवरी 2015 में दोबारा विधानसभा चुनाव हुए। इन चुनावों में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिलीं। कांग्रेस का वोट प्रतिशत 2013 में 24.55 प्रतिशत से घटकर लगभग 9 प्रतिशत रह गया। 2020 के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस दिल्ली में एक भी सीट नहीं जीत सकी। कांग्रेस का वोट प्रतिशत मात्र 4.26 फीसदी रह गया।

अरविंदर सिंह लवली, अजय माकन, शीला दीक्षित के बाद सुभाष चोपड़ा और फिर अनिल चौधरी को दिल्ली प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया लेकिन दिल्ली में कांग्रेस की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। कांग्रेस की आंतरिक कलह और अंदरूनी राजनीति के तहत दिल्ली में कभी कांग्रेस के बड़े चेहरे वाले नेता या तो कांग्रेस छोड़ चुके हैं या फिर राजनीति से दूरी बना चुके हैं। अजय माकन भी दिल्ली प्रदेश कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। उन्होंने ने 2019 में प्रदेश अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। हालांकि उन्होंने कांग्रेस नहीं छोड़ी, लेकिन राजनीति से थोड़ी दूरी बनाई थी। ऐसे ही दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री और चार बार विधायक रहे अशोक वालिया ने कांग्रेस की अंदरूनी राजनीति और संगठनात्मक बदलावों से असंतुष्ट होकर 2019 में पार्टी से दूरी बना ली थी।

दिल्ली के प्रदेश अध्यक्ष रहे रामबाबू शर्मा के बेटे विपिन शर्मा, कांग्रेस के कार्यकाल में दिल्ली में मंत्री रहे हारून यूसुफ, मतीन अहमद जैसे कई नेता आम आदमी पार्टी का दामन थाम चुके हैं। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि दिल्ली में कांग्रेस के पास नेतृत्व ही नहीं बचा है। ऐसे में दिल्ली में सिर्फ नाम के लिए ही कांग्रेस चुनाव लड़ रही है। हो सकता है कि दिल्ली में एक या दो सीटें कांग्रेस जीत भी जाए लेकिन इससे कांग्रेस की स्थिति में दिल्ली में बहुत सुधार होगा ऐसा कहीं नजर नहीं आ रहा है। बहरहाल दूसरे राज्यों में तो कांग्रेस क्षेत्रीय दलों के सहारे जैसे—तैसे अपना काम चला रही है लेकिन दिल्ली में तो ऐसा कोई राजनीतिक दल भी नहीं है जिसके सहारे कांग्रेस खड़ी हो सके।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

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