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Raksha Bandhan 2023: क्या रक्षाबंधन सिर्फ बहन और भाई का पर्व है या फिर पति और पत्नी से जुड़ता पर्व?

Raksha Bandhan 2023 Date

संसार रक्षाबंधन का त्योहार बड़े ही उत्साह और जोश के साथ मनाया जा रहा है। हमारे जैसे साधारण लोगों ने इस त्योहार को हमेशा भाई बहन के बीच असीम प्यार और अपनेपन की भावना के साथ जोड़ा है। हमने इसे पूर्ण रूप से यूं ही स्वीकार कर लिया, बिना इसके पीछे का तर्क जाने। आज इंटरनेट और अखबारों में इस विषय पर बहुत सी गलत जानकारियां उपलब्ध हैं। कोई भी इसके प्रामाणिक तथ्य तक पहुंचने का प्रयास ही नही करता। कुछ द्रौपदी द्वारा कृष्ण की कलाई पर चोट लगने पर कपड़े के टुकडा बांधकर उनकी कृपा मिलने की बात कह कर राखी की कथा बताता है, या माता पार्वती द्वारा भगवान विष्णु को राखी बांधने की बात कहता है। पर ये मात्र किंवदंतियां हैं। क्योंकि न तो व्यासजी ने महाभारत में इसका वर्णन किया है न तो वेद अथवा पुराण में इसकी चर्चा है। कुछ बली और पाताल लोक की कथा बताकर तो कोई यमुना और यमराज की कथा बताकर इसकी स्वीकृति पाते हैं। पर यह किसी प्राचीन ग्रंथ में उल्लिखित नहीं।

प्राचीन ग्रंथों में विशेषतः इसका प्रमुख सूत्र मिला वे थे नारद पुराण और भविष्य पुराण (उत्तर पर्व १३७)। वहां लिखा है कि जब देवासुर संग्राम में असुर पराजित हुए तब वे अपने गुरु शुक्राचार्य के पास इस हार का कारण जानने पहुंचे। शुक्राचार्य ने बताया कि इंद्राणी शची ने इंद्र की कलाई पर एक रक्षा सूत्र उनकी सुरक्षा के लिए बांधा था। उसी रक्षा सूत्र ने उन्हें बचाया। यह कथा कृष्ण ने युधिष्ठिर को बतलाई थी और इसको करने की विधि भी बताई थी।

पहले के काल में पुरोहित एक पोटली को धागे से बांधकर, कलाई पर बांधते थे। उस पोटली में चावल, पीली सरसों चंदन आदि ताम्र पत्र में बंधा रहता था जो मंत्रो के उच्चारण के बाद बांधते थे। येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबल:। तेन त्वामनुबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।।(भविष्य पुराण उत्तर पर्व १३७.२०) समय के साथ यह पर्व कई तरह से बदलता गया। न जानें कब यह एक विशाल स्तर पर भाई–बहन का त्यौहार बन गया। जाति, धर्म इत्यादि सब छोड़कर बहन भाई की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधती है और अपेक्षा रखती है केवल अनवरत स्नेह और दुलार मिले। यह एक तरह से सुरक्षा की शपथ है।

कौन किसको राखी बांध सकता है-
१) माता अपने पुत्र को।
२) बेटी अपने पिता को।
३) बहन-भाई को।
४) विद्यार्थी अपने गुरु को
५) ब्राह्मण किसी क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र को।
६) पोते-पोती अपने दादा-दादी को।
७) मित्र अपने मित्र को।
८) पत्नी अपने पति को।
९) फौजियों को (ये सबसे नेक काम है क्योंकि सेना को इस रक्षा सूत्र की आवश्यकता होती है।)
१०) राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (मुंबई) आपस मे अपने आप को रक्षा स्तोत्र बांधते है रक्षा के हेतु।

भविष्य पुराण में आज के दिन पितरों को तर्पण देना भी अच्छा माना जाता है (भविष्य पुराण, उत्तर पर्व १३७), तो केवल भाई बहन ही नहीं बल्कि राखी बांधना बड़ा व्यापक काम है। बारहवीं शताब्दी ब्राह्मण (पालीवाल) ने क्षत्रियों को राखी बांधी थी इसका उदाहरण है १२७३ में पालीवाल ब्राह्मणों ने क्षत्रिय राजा राव राठौड़ की सुरक्षा के लिए राखी बांधी थी। राजा वीरता से लड़े पर पूरा गांव मारा गया था। आज दिन तक पालीवाल ब्राह्मण राखी नहीं बांधते। झूठे इतिहासकार राणा सफ़वी कहतीं हैं कि राखी मुगलों की देन है जो अठारहवीं शताब्दी से आरंभ हुआ। वो स्वयं पर मजाक बना रही हैं। वो किसी अखबार का उदाहरण दे रहीं थीं जो मुगल इतिहास में कहीं मिला ही नहीं। वो १८८५ में लिखी बज्मे अखिर का हवाला देती हैं जो वास्तव में १७९५ की घटना है। शाह आलम की मृत्यु १८०६ में हुई थी। यह सूत्र तो निरर्थक रहा। भविष्य पुराण इससे पुराना सूत्र है, हालांकि ये लोग इसे प्रमाणिक नहीं मानेंगे, इसीलिये पालीवाल ब्राह्मणों की बात कह रहा हूं।

लेखक-अंशुल पाण्डेय

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