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पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र है या ममता बनर्जी का पुलिस तंत्र !

यूट्यूब इंफ्लुएंसर शर्मिष्ठा पनोली ने जिन शब्दों का प्रयोग किया वह नहीं किए जाने चाहिए थें, लेकिन जिस तरह से उसे गिरफ्तार किया गया क्या वह केवल मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने जैसा नहीं है।

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार है। इसमें कोई दोराय नहीं कि ममता सरकार स्पष्ट तौर पर मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करती है। ममता बनर्जी का एक बड़ा वोट बैंक मुस्लिम वोट हैं। शर्मिष्ठा ने जो कहा, वह मर्यादित कतई नहीं था, इसलिए स्वयं कलकत्ता उच्च न्यायालय ने उसकी जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, ”ऐसे बयान देते समय सामाजिक विविधता का ध्यान रखा जाना चाहिए।” शर्मिष्ठा ने भावावेश में आकर टिप्पणी की जब उसे एहसास हुआ कि उससे गलती हो गई तो उसने अपनी टिप्पणी के लिए सार्वजनिक रूप से क्षमा भी मांगी। ऐसे में क्या शर्मिष्ठा को इस तरह आधी रात को पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा उठाया जाना चाहिए थे। जिस तरह से फौरी तौर पर पुलिस ने कार्रवाई की वह लोकतांत्रिक प्रक्रिया का नहीं, बल्कि राजनीतिक एजेंडे का परिणाम प्रतीत होता है।

ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल में जय श्रीराम बोलने वालों को जेल में डाल दिया जाता है। खुद ममता बनर्जी जय श्री राम का नारा लगाए जाने पर चिढ़ जाती हैं। इंटरनेट पर उनके ऐसे करते हुए वीडियो भी मौजूद है, लेकिन जब वहां कोई हिंदू देवी-देवताओं के प्रति अपमानजनक टिप्पणी करता है तो उस पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती? इससे पहले न जाने कितनी बार पश्चिम बंगाल में कट्टरपंथी संगठनों द्वारा हिन्दू धार्मिक आयोजनों को बाधित करने, दुर्गा विसर्जन की तिथियों को मोहर्रम के नाम पर स्थगित करने जैसी कितनी ही बातें सामने आती हैं, लेकिन तब किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाती क्यों? यह लोकतंत्र तो नहीं यह तो मुस्लिम वोट बैंक पाने के लिए शासनतंत्र का दुरुपयोग ज्यादा नजर आता है।

शर्मिष्ठा पलोनी की टिप्पणी पर जिस तेजी से पश्चिम बंगाल की पुलिस हरकत में आई, क्या वैसी ही त्वरित कार्रवाई तब होती है जब हिंदू समाज की आस्था को आहत किया जाता है? शर्मिष्ठा पर एफआईआर दर्ज कराने वाला कोलकाता निवासी वजाहत खान कादरी रशीदी खुद हिंदू—देवी देवताओं पर अभ्रद टिप्पणी कर चुका है। उसने मां कामाख्या पर बेहद अभद्र और घोर अपमानजनक टिप्पणी की, इस पर तो कोई कार्रवाई ममता सरकार ने उसके खिलाफ नहीं की। असम में जरूर उस पर एफआईआर दर्ज की गई है। क्या ममता सरकार को ऐसे व्यक्ति पर एफआईआर नहीं दर्ज करनी चाहिए थी? ममता सरकार की इसी तुष्टीकरण की नीति के चलते पश्चिम बंगाल के कई इलाकों में हिन्‍दू असुरक्षित महसूस कर रहे हैं, कब कौन कहां से उन पर हमला कर देगा, कुछ पता नहींं। इसलिए हिंदू पलायन करने को मजबूर हैं।

शर्मिष्ठा पलोनी के शब्द मुस्लिम समुदाय की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले हैं, लेकिन कट्टरपंथियों द्वारा खुले मंचों से हिंदू देवी-देवताओं के विरुद्ध बोले जाने वाले शब्द भी भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले ही होते हैं। जब कोई व्यक्ति सार्वजनिक रूप से अपनी भूल स्वीकार करता है, तो ऐसे में तो उसके साथ नरमी बरती जानी चाहिए थी। उसे वार्निंग देकर छोड़ा जा सकता था, या मामला दर्ज कर लिया गया तो अपनी बात कहने के लिए मौका दिया जा सकता था, लेकिन इस मामले में ऐसा नहीं किया गया। जिस तरह शर्मिष्ठा को आनन-फानन में गिरफ्तार किया गया, वह दर्शाता है कि यह सब राजनीति के चलते हुआ है।

लोकतंत्र का मूल सिद्धांत होता है, समानता और निष्पक्षता, लेकिन ममता राज में ऐसा नहीं है। वहां यह सिद्धांत काम नहीं करता। अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए ममता बनर्जी कुछ भी कर सकती हैं। हम यह नहीं कहते कि आपत्तिजनक भाषा का समर्थन किया जाए, लेकिन कानून का अनुपालन सब पर समान हो, यह अपेक्षा भी कोई अपराध नहीं है। यदि शर्मिष्ठा पलोनी की टिप्पणी निंदनीय है तो उन कट्टरपंथियों ओर सोशल मीडिया पर सनातन को लेकर जहर उगलने वालों पर भी तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

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