कुछ चीजें परदे में रहें तो अच्छा होता है, भारत की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी की छवि एक मजबूत नेता की है, लेकिन कांग्रेस ऑपरेशन सिंदूर के बाद जिस तरह की राजनीति कर रही है वह उसके लिए ठीक नहीं है। यदि कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तंज कस के इस मुद्दे को उछालेगी, सीजफायर की टाइमिंग पर सवाल उठाएगी तो जाहिर पलटवार होगा। यदि ऐसा होगा तो अतीत के उन पन्नों पर से भी धूल हटेगी जिसके बारे में लोग नहीं जानते हैं। लोगों को वह जानकारी भी मिलेगी जो आज तक छिपी हुई थी।
ऑपरेशन सिंदूर की सफलता ने न केवल भारत की सैन्य शक्ति का प्रदर्शन किया, बल्कि देश की राजनीतिक इच्छाशक्ति को भी वैश्विक मंच पर रेखांकित किया। जब भारत अपनी सामरिक नीति में स्पष्टता और दृढ़ता का परिचय देता है, तो अजीब ढंग से सबसे अधिक असहज वही दल होता है, जिसने दशकों तक सत्ता में रहकर न केवल राष्ट्रीय हितों से समझौता किया।
ऑपरेशन सिंदूर के बाद से लगातार कांग्रेस अपने विभिन्न सोशल मीडिया हैंडलों से बार—बार इंदिरा गांधी को ‘आयरन लेडी’ कहकर वर्तमान सरकार की रणनीतिक दृढ़ता पर तंज कस रही है। ऐसे में यह जरूरी हो चला है कि कांग्रेस इंदिरा गांधी की जिस विरासत की बात कर रही है उसकी समीक्षा की जाए।
पाकिस्तान के साथ जितने भी युद्ध हुए हैं उनमें भारत को जीत हासिल हुई है। 1965 में भारतीय सेनाओं ने अद्भुत साहस और रणनीति का परिचय देते हुए रण कच्छ के मोर्चे पर विजय प्राप्त की थी। पाकिस्तान के अंदर तक भारत घुस गया था। युद्ध के तीन साल बाद 1968 में, तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एक समझौते के तहत 828 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पाकिस्तान को सौंप दिया। संसद में विरोध के बाद भी यह निर्णय लिया गया। उस समय देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं, जिन्हें आयरन लेडी कहकर कांग्रेस बार—बार प्रचारित करती रही है।
1971 के युद्ध में पाकिस्तान के दो टुकड़े कर बांग्लादेश बनाए जाने का श्रेय बार—बार लेकर कांग्रेस इंदिरा गांधी को आयरन लेडी बताती है। इसमें कोई दो राय नहीं इंदिरा गांधी उस समय देश की प्रधानमंत्री थीं, लेकिन युद्ध में विजय के बाद जब जनरल सैम मानेकशॉ की लोकप्रियता बहुत बढ़ गई तो इंदिरा गांधी डर गईं कि कहीं सैम राजनीति में न जाएं। उन्हें 1973 में फील्ड मार्शल की उपाधि दी गई। फील्ड मार्शल कभी रिटायर नहीं होते, जब तक वह जीवित रहते हैं उन्हें वही प्रोटोकॉल और सुविधाएं दी जाती हैं जो जनरल रहते हुए दी जाती हैं, लेकिन इंदिरा सरकार ने उनकी पेंशन तक रोक ली। उन्हें अगले 34 वर्षों तक उनका हक नही दिया गया। बाद में जब भाजपा के शासनकाल के दौरान डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम राष्ट्रपति बनें तब उन्हें सम्मान सहित वह सारी सुविधाएं दी गईं जिसके वह हकदार थे।
इस युद्ध में हमारी सेना ने 90 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को बंदी बना लिया गया। 1972 में शिमला समझौते के तहत इंदिरा गांधी ने बिना किसी ठोस रणनीतिक लाभ के इन युद्धबंदियों को रिहा कर दिया। यह बड़ा अवसर था जिसे हमने गंवा दिया। इन बंदियों का प्रयोग कश्मीर मुद्दे के स्थायी समाधान के लिए उपयोग किया जा सकता था, लेकिन उनके फैसले के चलते ऐसा नहीं हुआ। क्यों ? क्योंकि कांग्रेस की नजर में तो इंदिरा गांधी आयरन लेडी थीं। 1971 भारत-पाक युद्ध के दौरान 54 भारतीय सैनिकों को पाकिस्तान ने पकड़ लिया था। उन्हें आज भी ‘लापता 54’ के नाम से जाना जाता है। क्या इंदिरा गांधी सरकार को इन सैनिकों की रिहाई की दिशा में ठोस प्रयास नहीं करने चाहिए थे लेकिन नहीं किए गए क्यों ? क्योंकि कांग्रेस के अनुसार इंदिरा गांधी आयरन लेडी थीं।
इसी तरह पूर्वोत्तर को लेकर इंदिरा गांधी सरकार ने कभी कोई ठोस नीति नहीं बनाई। उनके समय में वहां न विकास था, न सुविधाएं थीं, नतीजतन मिजोरम, नागालैंड और असम में विद्रोही आंदोलनों को बल मिला। दशकों तक वहां अलगाववादी आंदोलन चले। कितने ही निर्दोष लोग मारे गए।
1974 में इंदिरा गांधी ने बिना किसी चर्चा के अपनी मर्जी से कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंप दिया क्यों? वह जमीन उनकी थी जो किसी को भी दे दें। वो हमारा हिस्सा था लेकिन कांग्रेस की नजर में इंदिरा गांधी तो आयरन लेडी हैं। आज भी भारतीय मछुआरों को श्रीलंकाई नौसेना द्वारा पकड़ लिया जाता है, प्रताड़ित किया जाता है।
आज जब सरकार आतंकवाद और पाकिस्तान प्रायोजित घुसपैठ के विरुद्ध निर्णायक कदम उठा रही है। दुनिया भर में पाकिस्तान को बेनकाब किया जा रहा है तो इस पर भी कांग्रेस राजनीति कर रही है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद ‘सीजफायर’ भारत ने अपनी शर्तों पर किया। बावजूद इसके कांग्रेस अपने सोशल मीडिया हैंडल से प्रधानमंत्री मोदी पर तंज करने के लिए उल्टे—सीधे पोस्ट कर रही है। कांग्रेस इंदिरा गांधी का महिमा मंडन करती है, करे, लेकिन कम से कम राजनीति के तहत अपने देश के प्रधानमंत्री पर तंज तो न कसे। राजनीति एक तरफ, लेकिन 1971 के युद्ध में जब भारत की जीत हुई थी तो जनसंघ या अन्य किसी विपक्षी दल ने कभी इस तरह की ओछी राजनीति नहीं की जैसा कांग्रेस कर रही है।
जब इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं तब सूचना के माध्यम सीमित थे। न इंटरनेट था, न सोशल मीडिया। अब जनता के पास सूचना के स्रोत हैं। इन्हीं माध्यमों के माध्यम से इतिहास के छिपे पन्ने सामने आ रहे हैं। ऐसे में कांग्रेस को यह समझना होगा कि यदि वह बार—बार ऐसे ही सवाल उठाएगी तो वह जानकारी भी जनता के सामने आएगी जो उसके पास अभी नहीं है। यदि कांग्रेस बार-बार राजनीतिक नेतृत्व पर सैन्य शक्ति पर सवाल उठाएगी तो अतीत में कांग्रेस द्वारा लिए गए निर्णयों पर भी सवाल उठेंगे। लोकतंत्र में प्रश्न पूछने का अधिकार है, तर्क करने का अधिकार है लेकिन कांग्रेस कुतर्क करती है। कांग्रेस दशकों तक सत्ता में रही है, इसलिए उसे वर्तमान पर टिप्पणी करने से पहले अपने अतीत में झांककर उसका मूल्यांकन करना चाहिए।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।