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लगता है राहुल गाँधी विदेश में भारत के लोकतंत्र को बार-बार कलंकित करने की जिद कर बैठे हैं

जब विदेश जाते हैं, तब केवल एक पार्टी के नेता नहीं होते, वे भारत के एक प्रतिनिधि होते हैं। उनके शब्द भारत की, हमारे लोकतंत्र की छवि को प्रभावित करते हैं। विदेशी धरती पर उनका इस तरह से आलोचना करना भारत के लोकतंत्र, उसकी प्रतिष्ठा, उसकी संप्रभुता पर सीधा हमला करने जैसा है।

राहुल गांधी बार-बार यह सिद्ध करते रहे हैं कि उनका भारत से कोई भावनात्मक जुड़ाव नहीं है और न ही वे इस राष्ट्र की लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान करना जानते हैं। सत्ता से बाहर होने की छटपटाहट और चुनावों में लगातार मिल रही हार के चलते हताशा से वे अब ऐसी राह पर चल पड़े हैं जहां उनके लिए न राष्ट्र का गौरव मायने रखता है, न जनमत का सम्मान। ताजा उदाहरण अमेरिका की ब्राउन यूनिवर्सिटी में में दिया गया उनका वह वक्तव्य है जिसमें उन्होंने भारत के चुनाव आयोग को ‘समझौता किया हुआ आयोग’ और ‘पक्षपाती’ कहा।

राहुल गांधी ने न केवल देश की चुनाव प्रक्रिया पर सवाल उठाया, बल्कि यह तक कह डाला कि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के अंतिम दो घंटे में पैंसठ लाख वोट डाले गए जो असंभव है। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि चुनाव आयोग ने मतदान प्रक्रिया की वीडियो फुटेज देने से इनकार कर दिया और कानून में बदलाव कर उसे सार्वजनिक जांच से बाहर कर दिया गया। राहुल गांधी की यह टिप्पणी किसी एक संस्था पर आक्षेप नहीं, बल्कि सम्पूर्ण लोकतंत्र को कटघरे में खड़ा करने की साज़िश है।

राहुल गांधी की राजनीति अब विरोध की मर्यादा से आगे निकलकर देश विरोध की हो चुकी है। वह नेता जो बार-बार विदेशी धरती पर खड़े होकर अपने ही देश को बदनाम करता है, वह आखिर किसका हित साध रहा है? भारत का या भारत-विरोधी ताकतों का? यह सवाल अब केवल विचार का विषय नहीं रहा, यह राष्ट्र की गरिमा का प्रश्न बन चुका है। ऐसा पहली बार नहीं है कि राहुल गांधी ने विदेशी धरती से ऐसा विवादस्पद बयान दिया हो। इससे पहले भी राहुल गांधी ने लंदन, जर्मनी, सिंगापुर, अमेरिका में जाकर अनेकों मंचों से भारत को अपमानित करने का कोई अवसर नहीं छोड़ा।

कभी उन्होंने कहा कि भारत में लोकतंत्र खतरे में है, कभी न्यायपालिका पर सवाल उठाए। कभी उन्होंने यह झूठ फैलाया कि सरकार अल्पसंख्यकों, दलितों और आदिवासियों को दबा रही है, तो कभी कहा कि सरकार देशवासियों की जासूसी कर रही है। राहुल गांधी की हर विदेश यात्रा का एक एजेंडा होता है कि भारत को बदनाम करो, सरकार पर झूठे आरोप लगाओ और स्वयं को पीड़ित बताकर सहानुभूति बटोरने की कोशिश करो। हाल ही में अमेरिका में उन्होंने एक बार फिर भारत के खिलाफ जहर उगला है। वहां वो ऐसे लोगों के साथ खड़े होते हैं जिनकी सोच और कार्य भारत विरोधी है।

पिछले साल उनकी अमेरिका की सांसद इल्हान उमर से हुई मुलाकात यह साबित करने के लिए काफी है। जिस इल्हान उमर से उन्होंने मुलाकात की थी वह वही इल्हान उमर है जिसने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर का दौरा किया था। यही नहीं प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिकी संसद में दिए भाषण का बहिष्कार भी किया था। वह बार—बार भारत को अल्पसंख्यक विरोधी कहती है। इसी कट्टर सोच वाली महिला के साथ राहुल गांधी ने मंच साझा किया था, इससे ज्यादा शर्मनाक बात और क्या हो सकती है? राहुल गांधी यह भूल जाते हैं कि वे जब विदेश जाते हैं, तब केवल एक पार्टी के नेता नहीं होते, वे भारत के एक प्रतिनिधि होते हैं। उनके शब्द भारत की, हमारे लोकतंत्र की छवि को प्रभावित करते हैं। विदेशी धरती पर उनका इस तरह से आलोचना करना भारत के लोकतंत्र, उसकी प्रतिष्ठा, उसकी संप्रभुता पर सीधा हमला करने जैसा है।

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। यहां की संस्थाएं, प्रक्रियाएं और मतदाता का विवेक पूरी दुनिया में एक उदाहरण हैं। ऐसे में लोकतंत्र पर बार-बार उंगली उठाना केवल राजनीतिक अपरिपक्वता नहीं है, बल्कि यह राहुल का राष्ट्रहित के विरुद्ध एक सुनियोजित अभियान प्रतीत होता है। देश की जनता यह सब देख रही है। वह जानती और समझती है कि किसे भारत की छवि की परवाह है और कौन उसे विदेशों में नीचा दिखाने में ही अपनी राजनीतिक सफलता देखता है। राहुल गांधी को यह याद रखना चाहिए कि दस वर्ष से वह सत्ता से बाहर हैं। इस हताशा में यदि इसी तरह के कृत्य करते रहे और इसी रास्ते पर चलते रहे, तो अगली कई पीढ़ियां भी कांग्रेस को पुनः उभार नहीं पाएंगी। भारत की जनता देश विरोधी मानसिकता रखने वालों को समय पर उत्तर देना जानती है।

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