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तीर्थों को तीर्थ ही रहने दें उन्हें पर्यटन का पर्याय ना बनायें, धार्मिक आस्था का दोहन और वीवीआईपी व्यवस्था को तत्काल खत्म की जरूरत

बड़े मंदिरों में वीवीआईपी लोगों के लिए वीआईपी लॉन्ज भी हैं। जहां उन्हें बिठाया जाता है, जलपान और अन्य सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। यहां तक कि बड़े मंदिरों में वीवीआईपी दर्शन या विशेष पूजा के लिए शुल्क देने की भी व्यवस्था है। भारत के कुछ बड़े मंदिरों में से एक तिरुपति बालाजी मंदिर में वीवीआईपी दर्शन के लिए विशिष्ट व्यवस्था है। इसके लिए विशेष पास जारी किए जाते हैं। श्री सिद्धिविनायक मंदिर (मुंबई), जगन्नाथपुरी, केदारनाथ, बद्रीनाथ, काशी विश्वनाथ मंदिर, महाकाल उज्जैन, आदि सभी बड़े तीर्थ स्थानों पर ऐसी व्यवस्था है।

महाकुंभ मेले की शुरुआत 13 जनवरी 2025, सोमवार को पौष पूर्णिमा के दिन से हुई थी। 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर दूसरा अमृत स्नान हुआ। 29 को मौनी अमावस्या पर तीसरा स्नान था। उससे पहली रात भगदड़ मची और 30 लोग इस हादसे में मारे गए। सैकड़ों की संख्या में लोग घायल भी हुए। यहां कहा गया कि वीवीआईपी मूवमेंट के लिए पब्लिक को रोका गया था। भीड़ कंट्रोल नहीं हुई और हादसा हो गया। जबकि सरकार का बार—बार यही दावा है कि कुंभ में अमृत स्नान के समय किसी को प्रोटोकॉल नहीं देने के शासन के स्पष्ट निर्देश थे। अब असल में क्या हुआ, क्या नहीं यह लंबी बहस का विषय है, लेकिन एक बात तो तय है कि वीवीआईपी स्नान की अलग व्यवस्था तो कुंभ में राजनीतिज्ञों और विशेष व्यक्तियों के लिए की ही जा रही थी।

तमाम नेताओं के महाकुंभ में डुबकी लगाते हुए फोटो सोशल मीडिया पर देखे जा सकते हैं। ऐसा तो संभव नहीं है कि केंद्रीय मंत्री, राज्यों के मुख्यमंत्री और अन्य बड़े धनाढ्य लोग महाकुंभ में जाएं और उन्हें वीआईपी ट्रीटमेंट न मिले। कुंभ में बसाई गई टेंट सिटी में लक्जरी टेंट हाउस बनाए गए जिनका एक दिन का किराया लाखों रुपए तक है। इसे वीआईपी ट्रीटमेंट नहीं कहा जाएगा तो और क्या कहा जाएगा ? सामान्य श्रद्धालु वहां रुकने की सपने में भी नहीं सोच सकता। उत्तर प्रदेश में इतना बड़ा आयोजन हो रहा है। पहले यह हादसा हुआ। इसके दो दिन बाद ही अवैध रूप से 24 बीघे में बसाई गई टेंट सिटी में आग लगने की खबर आई। यह टेंट सिटी कैसे बसाई गई, किसने बसाई इसका कोई भी जवाब न सरकार के पास है न ही कुंभ मेला प्रशासन के पास।

आखिर श्रद्धा के स्थानों पर वीवीआईपी ट्रीटमेंट, मंदिर में वीवीआईपी दर्शन की जरूरत ही क्या है? आस्था के स्थान पर ईश्वर के सामने तो सभी बराबर होने चाहिए, लेकिन ऐसा होता नहीं है। यदि आप किसी ऊंचे ओहदे पर हैं। कोई बड़े सरकारी अधिकारी हैं। नेता हैं, या फिर बड़े व्यवसायी हैं तो आपके लिए सबकुछ आसान है। आपके लिए मंदिरों में वीआईपी दर्शन उपलब्ध हैं। तीर्थ स्थलों पर आपके लिए विशेष व्यवस्था है। धार्मिक आस्था को पर्यटन की तरह बना देना कहां तक उचित है?

ऐसा नहीं है कि कुंभ में पहली बार कोई हादसा हुआ है। इससे पहले भी कुंभ में हादसे हुए हैं। श्रद्धालुओं की भारी भीड़ और अव्यवस्थित प्रबंधन पहले भी दुर्घटनाओं का कारण बने हैं। सरकार पहले हुए हादसों से अनजान नहीं हैं। बावजूद इसके, इस बार तमाम दावों के बाद भी हादसे को रोका नहीं जा सका। इसके लिए सीधे तौर पर प्रशासन और राज्य सरकार को क्यों न जिम्मेदार ठहराया जाए? महाकुंभ में हुए इस हादसे को लेकर सरकार और मेला प्रशासन कितने ही दावे क्यों न करे कि यह हादसा वीआईपी ट्रीटमेंट के चलते नहीं हुआ, लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि हादसा मुख्य रूप से वीवीआईपी व्यवस्था और आम जन के साथ किए गए भेदभाव के कारण ही हुआ।

वीवीआईपी व्यवस्था के तहत कुछ खास लोगों को विशेषाधिकार दिए जाते हैं, उनके लिए अलग मार्ग और विशेष सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं क्यों? वहीं आम श्रद्धालुओं को धक्के खाने पड़ते हैं उनकी सुरक्षा कि किसी को चिंता नहीं है। तीर्थ स्थलों पर वीवीआईपी संस्कृति न केवल धार्मिक भावनाओं का अपमान है बल्कि सार्वजनिक सुरक्षा के लिए भी खतरा भी है।

महाकुंभ जैसा बड़ा आयोजन हो या फिर बड़े मंदिर, वीवीआईपी संस्कृति के कई पहलू देखे जा सकते हैं। जब कथित वीवीआईपी लोग तीर्थ स्थलों पर पहुंचते हैं, तो उनके लिए अलग से व्यवस्थाएं की जाती हैं। उन्हें किसी प्रकार की भीड़भाड़ से बचने के लिए विशेष रास्ते दिए जाते हैं। वहीं आम आदमी लंबी—लंबी लाइनों में लगकर घंटों तक इंतजार करते हैं। कई बड़े मंदिरों में तो 12—12 घंटे तक लंबी कतार में लोग खड़े रहते हैं। धार्मिक आयोजन समानता और समर्पण का प्रतीक होते हैं। यहां हर व्यक्ति, चाहे वह किसी भी वर्ग या जाति से हो, राजनीतिज्ञ हो, बड़ा बिजनेसमैन हो सभी बराबर होने चाहिए। सबको देखने की समान दृष्टि होनी चाहिए लेकिन ऐसा होता नहीं है।

लोकतंत्र समानता और न्याय के सिद्धांतों की नींव पर खड़ा है। सामाजिक दृष्टिकोण से भी वीवीआईपी संस्कृति स्वीकार्य नहीं है, लेकिन इसको माना नहीं जाता। महाकुंभ की बात न भी करें तो देश के सभी बड़े मंदिरों में वीवीआईपी व्यवस्था की जाती है। सरकारी अधिकारी, नेता, व्यवसायी और समाज के अन्य प्रमुख लोगों को यहां पर वीवीआईपी ट्रीटमेंट मिलता है। इनके लिए आम श्रद्धालुओं से अलग प्रवेश द्वार बनाए जाते हैं। इन्हें मंदिर के अंदर तक बिना किसी लाइन में लगे प्रवेश करने दिया जाता है। यहां तक कि उन्हें गर्भगृह में विशेष अनुमति के साथ प्रवेश दिया जाता है। इनके लिए समय भी अलग रखा जाता है।

बड़े मंदिरों में वीवीआईपी लोगों के लिए वीआईपी लॉन्ज भी हैं। जहां उन्हें बिठाया जाता है, जलपान और अन्य सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। यहां तक कि बड़े मंदिरों में वीवीआईपी दर्शन या विशेष पूजा के लिए शुल्क देने की भी व्यवस्था है। भारत के कुछ बड़े मंदिरों में से एक तिरुपति बालाजी मंदिर में वीवीआईपी दर्शन के लिए विशिष्ट व्यवस्था है। इसके लिए विशेष पास जारी किए जाते हैं। श्री सिद्धिविनायक मंदिर (मुंबई), जगन्नाथपुरी, केदारनाथ, बद्रीनाथ, काशी विश्वनाथ मंदिर, महाकाल उज्जैन, आदि सभी बड़े तीर्थ स्थानों पर ऐसी व्यवस्था है।

वीवीआईपी व्यवस्था की आलोचना कई बार की जाती है, लेकिन इसको बंद फिर भी नहीं किया जाता। सरकार और प्रशासन को इस संबंध में सोचना चाहिए। यदि ऐसा संभव न हो तो विशेष दिनों और विशेष अवसरों पर तो कम से कम इस तरह की व्यवस्था नहीं ही होनी चाहिए। महाकुंभ में हुए इस हादसे से सबक लेते हुए हमें इस वीवीआईपी संस्कृति को दूर करना जरूरी है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

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