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बांग्लादेश की तर्ज पर भारत को अस्थिर करने की कई साजिशें रची गईं पर मोदी के मजबूत नेतृत्व ने देश पर आंच नहीं आने दी

बांग्लादेश में जो विपक्ष बोल रहा था उसी तर्ज पर राहुल गांधी लोकसभा चुनावों से पहले बोल रहे थे। राहुल ने लंदन में जर्नलिस्ट एसोसिएशन नाम के संगठन की ओर से आयोजित कार्यक्रम में कहा था कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो चुका है और इसकी रक्षा

बांग्लादेश में आरक्षण के मुद्दे पर जिस तरह से भीड़ तंत्र ने वहां तख्तापलट कर दिया। ऐसी ही साजिश भारत में पिछले कई सालों से की जा रही है। ये अलग बात है कि मजबूत नेतृत्व होने के चलते ऐसी साजिशें नाकाम साबित हो रही हैं, लेकिन यदि भारत में पिछले चार सालों में हुए घटनाक्रमों को देखें तो इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता ‘अमेरिकी डीप स्टेट फोर्सेज’ और चीन तमाम तरह की कुटिल चालें भारत को अस्थिर करने के लिए लगातार चल रहे हैं। फिर चाहें वह किसान आंदोलन के नाम पर हो, सीएए और एनआरसी के नाम पर हो, चाहे आरक्षण के नाम पर हो या फिर लोकतंत्र बचाने के नाम पर। हर बार कुटिल चालें चली गईं। टूल किट गैंग सक्रिय भी हुए। लगातार फंडिंग भी की गई लेकिन फिर भी देश विरोधी ताकतों को कामयाबी नहीं मिली।

इसी साल की शुरुआत में बांग्लादेश में चुनाव हुए थे। चुनावों में वहां की मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनल पार्टी ने हिस्सा नहीं लिया था। बीएनपी ने आरोप लगाया था कि चुनाव में धांधली की जा रही है और विपक्षियों को जेल में डाला जा रहा है। विपक्ष ने बार—बार अमेरिका से निष्पक्ष चुनाव कराने की मांग को उठाया था। अमेरिका का भी बयान आया था कि वह बांग्लादेश के चुनाव पर नजर जमाए हुए है। अमेरिका खुले तौर पर ये कहता आ रहा था कि बांग्लादेश में स्वतंत्र रूप से चुनाव नहीं हुए हैं। विपक्ष जो चाह रहा था अमेरिका उसे हवा दे रहा था। इसका नतीजा बांग्लादेश में तख्तापलट के रूप में सामने आया।

बांग्लादेश में जो विपक्ष बोल रहा था उसी तर्ज पर राहुल गांधी लोकसभा चुनावों से पहले बोल रहे थे। राहुल ने लंदन में जर्नलिस्ट एसोसिएशन नाम के संगठन की ओर से आयोजित कार्यक्रम में कहा था कि भारत में लोकतंत्र खत्म हो चुका है और इसकी रक्षा करने का दावा करने वाले अमेरिका और यूरोप चुपचाप देख रहे हैं। यह एक तरह से अमेरिकी और यूरोप देशों की ‘डीप स्टेट फोर्सेज’ को आमंत्रण देने जैसा था। ऐसा हुआ भी भारत के चुनावों को प्रभावित करने की कोशिश भी की गई। इससे विपक्ष को कुछ फायदा तो जरूर पहुंचा लेकिन देश के लोगों ने मजबूत नेतृत्व को चुना और फिर से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनें।

दरअसल जो बांग्लादेश में हुआ। इससे ठीक दो साल पहले श्रीलंका में भी ऐसा ही हुआ था। आठ जुलाई 2022 को श्रीलंका के दिवालिया होने की घोषणा के साथ लाखों श्रीलंकाई सड़कों पर उतर आए थे। उन्होंने श्रीलंका के राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के भवन को घेर लिया नतीजतन गोटबाया को वहां से भागना पड़ा था।। इसी तरह 5 अगस्त को बांग्लादेश में हजारों की संख्या में भीड़ प्रधानमंत्री शेख हसीना के आवास में घुस गई। उन्हें देश छोड़कर भागना पड़ा। भारत के एक पड़ोसी देश म्यांमार में लगातार हिंसा हो रही है। एशियाई देशों का लगातार अस्थिर होना किसी गहरी साजिश की तरफ इशारा करता है। वैश्विक स्तर पर चीन अमेरिका के सामने सबसे बड़ी चुनौती है वहीं भारत भी लगातार विकास की ओर अग्रसर है। चीन और अमेरिका प्रतिद्वंद्वी होने के बाद भी नहीं चाहते हैं कि भारत आर्थिक तौर पर समृद्ध हो, क्योंकि यदि ऐसा होता है कि अमेरिका का जो एक छत्र साम्राज्य है उसे चुनौती मिलेगी।

भारत को भी लगातार अस्थिर करने की लगातार कोशिशें की जा रही हैं। मणिपुर में उच्च न्यायालय के मैतई लोगों को आरक्षण देने के फैसले के बाद जो हिंसा भड़की वह तब से अभी तक भी पूरी तरह शांत नहीं हो पाई है। चीन लगातार इसे मुद्दे को हवा दे रहा है। इसको लेकर पूर्व सेना प्रमुख जनरल एम एम नरवणे ने भी बयान दिया था कि राज्य में जगह-जगह हो रहे विद्रोह के पीछे चीनी समूहों का हाथ है। देश के सीमावर्ती राज्यों में इस तरह की अस्थिरता होना, पूरे देश की सुरक्षा के लिए खतरा साबित हो सकता है।

इसी तरह से कभी किसान आंदोलन के नाम पर कभी आरक्षण के नाम पर तो कभी छात्रों के आंदोलन के नाम पर लगातार भारत में भी एक झूठा नैरेटिव गढ़कर लोगों में अंसतोष फैलाने की लगातार कोशिशें की जा रही हैं। लोकसभा चुनावों में लगातार विपक्ष बोलता रहा कि संविधान खतरे में है। यदि भाजपा सत्ता में आई तो संविधान बदल दिया जाएगा। बांग्लादेश में जो हुआ वैसा ही करने का प्रयास भारत में किया गया ये बात अलग है कि अभी तक ऐसा करने में ‘डीप स्टेट फोर्सेज’ कामयाब नहीं हो सके हैं। पड़ोसी देशों में जो हो रहा है उसको देखते हुए भारत को अपनी आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था और खुफिया तंत्र पर और ध्यान देने की जरूरत है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

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