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‘केवल पूंजी प्रवाह ही नहीं, एमएसएमई को बेहतर सरकारी नियमन की भी जरुरत’

MSME Workers

देश के समग्र आर्थिक विकास में मध्यम, लघु और सूक्ष्म उपक्रमों (एमएसएमई) की महत्वपूर्ण भूमिका से सभी परिचित हैं। इस सेक्टर में 6 करोड़ से ज्यादा क्रियाशील इकाइयां हैं, जिनमें 11 करोड़ से भी ज्यादा लोगों को रोजगार मिला हुआ है और देश की अर्थव्यवस्था में इसका लगभग 30 फीसदी योगदान है। यह सेक्टर अपने 40 फीसदी से भी ज्यादा उत्पादों का निर्यात करता है। एमएसएमई के प्रभारी मंत्री नितिन गडकरी यह पहले ही घोषणा कर चुके हैं कि सरकार का इरादा इस सेक्टर को भारतीय अर्थव्यवस्था में ‘विकास का एक इंजन’ बनाना है। सरकार का यह कदम निश्चित ही स्वागतयोग्य है। हाल ही में इस सेक्टर को ‘आत्मनिर्भर भारत’ योजना के तहत 3 लाख करोड़ रुपये का एक राहत पैकेज देने की घोषणा की गई है। सरकार ने अपनी नीतियों में थोड़ा सा परिवर्तन किया है, जिसके तहत आर्थिक दबाव झेल रहे इस सेक्टर को कुछ पूंजी मुहैया कराई जा सकती है। हालांकि पूंजी की मांग ही एकमात्र ऐसा क्षेत्र नहीं है, जिसमें सरकार का हस्तक्षेप अपेक्षित है।

नकदी का अभाव झेल रहे एमएसएमई में पूंजी का प्रवाह सुनिश्चित करने के लिए वित्त मंत्रालय और भारतीय रिजर्व बैंक ने उपयुक्त निर्णय लिए हैं। लेकिन नकदी की उपलब्धता से कुछ खास लाभ नहीं होगा अगर छोटे व्यवसायों को सख्त नियमों और कठोर कराधान के दायरे में रखा जाएगा, खासकर जब एमएसएमई ई-कॉमर्स के माध्यम से विक्रय कर रहे हों।

विकास को सुनिश्चित करने वाली व्यवस्था सुनिश्चित करना 

भारत की एमएसएमई इकाइयों की तत्काल जरूरत वह उपाय करने की है, जिसका अर्थशास्त्रियों ने और इस क्षेत्र के विशेषज्ञों ने आह्वान किया है, और वह है-नियमों के प्रावधान को शिथिल करना, उन्हें नरम करना।

फिलहाल एमएसएमई सेक्टर  ‘अति नियमन’ के बोझ तले दबा हुआ है। कर निर्धारण नीति के परिप्रेक्ष्य से  देखा जाए तो उन उपक्रमों को खासा नुकसान है, जो ऑनलाइन कारोबार करना चाहते हैं। कोविड-19  के बचाव में लाए गए लॉक डाउन ने ई-कॉमर्स की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर किया है, जिसने उपभोक्ताओं की जरूरतों के उत्पादों को सुरक्षित, समयबद्ध और सुविधाजनक तरीके से मुहैया कराया है। लॉकडाउन के दौरान एमएसएमई को कारोबार करने में काफी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। ऐसे में उसके लिए उपभोक्ताओं के पास पहुंचने में ई-कॉमर्स  एक प्रभावी, तेज और कम लागत वाला विकल्प साबित हुआ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत में विश्व स्तर की आपूर्ति श्रृंखला  बनाने के लिए विस्तार से अपने दृष्टिकोण के बारे में पहले ही बता चुके हैं। प्रधानमंत्री के बताए इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म ने तकनीक पर आधारित मजबूत आपूर्ति श्रृंखलाओं को स्थापित करने और विक्रेताओं, जिनमें छोटे कारोबारी और कारीगर शामिल हैं, उनको एक बड़ा बाजार सुलभ करा कर एक रास्ता दिखाया है।

हालांकि ई-कॉमर्स प्लेटफार्म पर एमएसएमई के विक्रय पर बढ़ता नियमन इस क्षेत्र के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है जो  ऑनलाइन कारोबार के जरिए हाल ही में विकास के पथ पर अग्रसर हुआ है और इससे उसके लिए प्रत्यक्ष  राजस्व का प्रवाह भी बन गया है। इस सेक्टर में लागू टीडीएस और टीसीएस संबंधी आवश्यकताओं के क्रियान्वयन के बाद, ई-कॉमर्स विक्रेता अब ‘कंट्री ऑफ ओरिजन’ के टैग को अपरिहार्य बनाने वाले नियमन को अपने लिए एक नई बाधा के रूप में देखते हैं।

ऑनलाइन  बाजार में उन उत्पादों के लिए, जो पहले से सूचीबद्ध हैं यां फिर सूचीबद्ध होने वाले हैं, के ‘कंट्री ऑफ ओरिजन’ की जानकारी देना बहुत मुश्किल है। इसका एक कारण यह है कि कंपनी के लिए उत्पादों को अंतिम रूप देने वाले देश और उसके निर्माता देश के बीच फर्क करना कठिन हो सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि किसी उत्पाद के कल—पुर्जे तो चीन या ताइवान में निर्मित किये गये हों, लेकिन उनको आपस में जोड़ने-मिलाने का काम भारत में किया गया हो।

इसके अलावा देश के दूरस्थ इलाकों में बहुत सारे उत्पादों को उनके शिल्पकारों, किराना दुकानदारों और छोटे कारोबारियों द्वारा सूचीबद्ध किया जाता है। सीमित संसाधन वाले इन विक्रेताओं ने हाल ही में ई-कॉमर्स चैनल पर काम करना शुरू किया है और इस माध्यम के सभी तौर-तरीकों के बारे में  उन्हें अभी बहुत कुछ सीखने की जरूरत है।

अगर सरकार विक्रय की जरूरतों में आड़े आने वाली दोहरी मुश्किलों (उपभोक्ताओं के हितों को संरक्षित करते हुए)  को ठीक नहीं करेगी तो डिजिटल विक्रय के नये माध्यम को अपनाने का इंतजार कर रहे छोटे कारोबारी अपने कारोबार के डिजिटल रूपांतरण का विचार स्थगित कर सकते हैं। उक्त दो चुनौतियां हैं  ऑनलाइन प्लेटफॉर्मों पर उत्पादों को बेचने पर लगाया गया टैक्स डिडक्टिबल एट सोर्स(टीडीएस) एवं ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर लगया गया टैक्स कलेक्टिड एट सोर्स (टीसीएस) जिनका हल निकालना जरुरी है। यह सेक्टर खासकर, लघु और सूक्ष्म उपक्रम सख्त जीएसटी नियमन से पहले से ही जूझ रहे हैं—मसलन जो भी कारोबारी ऑनलाइन व्यवसाय करना चाहते हैं, उनके लिए जीएसटी पंजीकरण अनिवार्य बना दिया गया है फिर भले ही उनकी आय कितनी हो।

एकीकृत दृष्टिकोण अपेक्षित

यह समय का तकाजा है एमएसएमई के संदर्भ में नोडल मंत्रालय सरकार के स्तर पर एक एकीकृत दृष्टिकोण लाए। एमएसएमई के मंत्री नितिन गडकरी, जिनका सड़क परिवहन और राजमार्ग के मंत्री के रूप में कामयाबी का एक शानदार रिकॉर्ड रहा है, को  वित्त, वाणिज्य, और उद्योग तथा उपभोक्ता मामलों के मंत्रालयों को एक प्लेटफार्म पर लाने का मुश्किल काम करना होगा। अगर एमएसएमई सेक्टर में कार्यबल को बढ़ाकर 5 करोड़ और देश के जीडीपी में इसका योगदान बढ़ाकर 50 प्रतिशत तथा निर्यात में 60 प्रतिशत करना है तो ये चुनौतीपूर्ण काम करना होगा। सरकार के विभिन्न मंत्रालयों को एक मंच पर लाने की गडकरी की क्षमता के चलते एमएसएमई मंत्रालय इस क्षेत्र के लिए एक नरम नियामक ढांचा लाने में सफल हो सकता है।

अगर नियमन के अनावश्यक बोझ से एमएसएमई सेक्टर को अप्रभावित रखा जाए तो यह क्षेत्र जो मौजूदा समय में विनिर्माण के क्षेत्र में 40 फीसदी योगदान दे रहा है, भारत को विनिर्माण का एक वैश्विक केंद्र बनाने की सरकार की परिकल्पना को सही मायने में मूर्त रूप दे सकता है।

सरकार एमएसएमई  के लिए वित्तीय पैकेज देकर और इस क्षेत्र को नए सिरे से परिभाषित करने  के लिए काम शुरू कर पहले ही अपने सहयोग का हाथ बढ़ा चुकी है। यह समय अंतिम चरण में अग्रसर होने और छोटी-मोटी अड़चनों को दूर करने का है। आगामी त्योहारों के मौसम में  जैसे ही मांग बढ़ती है, सरकार को एमएसएमई सेक्टर के कष्टों का निवारण करने और कारोबारी सुगमता को बढ़ाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देना चाहिए।

-लेखक, सोसाइटी ऑफ इंडियन लॉ फर्म्स (एसआईएलएफ) के अध्यक्ष हैं

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