News Room Post

विपक्ष नहीं चाहता कि एससी—एसटी में निचले पायदान पर आने वाले समुदाय व्यवस्था का हिस्सा बनें और तरक्की करें

बंद का समर्थन करने वाला विपक्ष उन लोगों को मुख्य व्यवस्था का हिस्सा नहीं बनने देना चाहता जो एससी और एसटी वर्ग में होने के बावजूद आरक्षण का लाभ नहीं ले सके हैं और आज तक निचले तबके में ही बने हुए हैं, वंचित हैं।

सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी एसटी आरक्षण में उप-वर्गीकरण के फैसले और क्रीमीलेयर लागू करने के सुझाव को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा करने की कोशिश की गई। संभवत: इसलिए ही आज 21 अगस्त के इस बंद का कोई खास असर नहीं देखा गया। मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तर पूर्वी राज्य जहां बहुसंख्यक आबादी आदिवासी है, वहां बंद का असर नहीं दिखा। उत्तर प्रदेश भी भारत बंद सफल नहीं रहा।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद आरक्षण वर्गीकरण के विरोध में कई तरह के भ्रामक तर्कों से वर्गीकरण की बहस को भटकाने की कोशिश की गई। तमाम विपक्ष ने इसको लेकर भ्रम फैलाया। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने जो फैसला दिया था वह अनुसूचित जाति—जनजाति में सबसे निचले पायदान पर आने वाली जातियों और समुदायों की चिंता को ध्यान में रखकर यह फैसला दिया था।

जिसकी जितनी भागीदारी उसकी उतनी हिस्सेदारी की बात कहने वाला विपक्ष जब भाजपा पर आरोप लगाता है कि वह जानबूझकर जातिगत जनगणना नहीं करवाना चाहती। वही विपक्ष इस तरह के बंद का समर्थन करता है और भ्रम फैलाकर यहां पर राजनीति करता है। यह विपक्ष का दोहरा चरित्र नहीं है तो और क्या है ?

इससे पहले वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि एससी एसटी मामले में केस दर्ज पर बिना जांच के गिरफ्तारी नहीं होगी, इसके बाद देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए थे। जब भाजपा ने संसद में बिल लाकर न्यायालय के आदेश को बदल दिया था, और फैसले की समीक्षा की मांग की थी। तब देशभर में भारत बंद सफल भी हुआ था, लेकिन 21 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी एसटी आरक्षण उप-वर्गीकरण के फैसले और क्रीमीलेयर लागू करने के सुझाव के फैसले के खिलाफ अनुसूचित जाति जनजाति प्रकोष्ठ मोर्चा ने जिस तरह भारत बंद का आह्वान किया वह सफल नहीं हो सका। बंद का समर्थन कर रहे विपक्ष के मंसूबे पूरे नहीं हुए।

दरअसल इस मामले में भ्रम फैलाने वाला विपक्ष उन लोगों को मुख्य व्यवस्था का हिस्सा ही नहीं बनने देना चाहता है जो एससी और एसटी वर्ग में होने के बावजूद आज आरक्षण का लाभ नहीं ले सके हैं। वे वंचित हैं, गरीब हैं और कोटे में आने के बावजूद समाज में बेहद निचले पायदान पर हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले विरोध करना और बंद बुलाना उन लोगों के साथ अन्याय है।

केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी ने भी बंद का समर्थन नहीं किया और कहा कि कुछ संपन्न दलित झूठी बात करके आरक्षण खत्म करने का भ्रम फैला रहे हैं। इस आंदोलन को लोग अपने स्वार्थ के लिए चला रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला अनुसूचित जाति—जनजाति मे निचले पायदान पर आने वाले लोगों के हितों के मद्देनजर दिया गया है, ऐसे में इस फैसले का विरोध कर राजनीति करना इस तबके पर कुठाराघात करना है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

Exit mobile version