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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पिछले 50 वर्षों के प्रस्तावों में छिपा है बांग्लादेश में होने वाले ‘हिन्दुओं के रेडिकल इस्लामिक उत्पीडन’ की समस्या का समाधान

हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले की ओर से एक वक्तव्य जारी करके भारत सरकार से बांग्लादेश के हिन्दुओं की रक्षा करने का हर संभव प्रयास करने तथा इसके समर्थन में वैश्विक अभिमत बनाने हेतु यथाशीघ्र कदम उठाने का आह्वान किया गया है।

भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में हिन्दुओं का उत्पीडन चरम पर है। अपने ट्रैक रिकॉर्ड के अनुसार रेडिकल इस्लामिस्टों द्वारा काफिरों (हिन्दुओं) पर अत्याचार किये जा रहे हैं। अफगानिस्तान और पाकिस्तान में हिन्दुओं के सफाए के बाद अब इस्लामिक देश बांग्लादेश में भी हिन्दुओं के सफाए के लिए रेडिकल इस्लाम का अत्याचार पूरी दुनिया के सामने हैं। बांग्लादेश के जन्म के बाद से ही वहाँ के हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहे थे, लेकिन इन दिनों इस्लामिक अत्याचारों की गति और प्रवृति बहुत ज्यादा बढ़ गयी है। बांग्लादेश का हिन्दू रेडिकल इस्लाम के अत्याचारों से बुरी तरह से पीड़ित है।

भारत में फिलिस्तीन, ईरान और दूसरे रेडिकल इस्लामिक देशों पर रुदाली रुदन करने वालों के मुंह से बांग्लादेश के हिन्दुओं के लिए एक भी शब्द नहीं निकल रहा है। बांग्लादेश के हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए भारत सरकार भी अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठा पायी है और यदि ऐसा कोई ठोस कदम उठाया भी गया है तो धरातल पर उसका कोई असर नहीं दिख रहा है।

हाल ही में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले की ओर से एक वक्तव्य जारी करके भारत सरकार से बांग्लादेश के हिन्दुओं की रक्षा करने का हर संभव प्रयास करने तथा इसके समर्थन में वैश्विक अभिमत बनाने हेतु यथाशीघ्र कदम उठाने का आह्वान किया गया है। यह पहली बार नहीं है जब संघ ने बांग्लादेश के हिन्दुओं के प्रति अपने प्रस्तावों अपनी चिंता प्रकट की है। सुप्रसिद्ध लेखक श्री रतन शारदा की पुस्तक ‘कॉन्फ्लिक्ट रेजोल्यूशन: द आरएसएस वे’ इसके लिए पढ़ी जा सकती है। संघ सन 1971 से ही बांग्लादेश के प्रति भारत के कर्तव्य पर सरकार का ध्यान आकर्षण कराता रहा है। इस हेतु संघ ने सन 1971 में अपनी अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया था। इसके बाद संघ ने सन 1978 में बांग्लादेश में हिन्दु उत्पीड़न पर एक और प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव में संघ ने भारत सरकार से बांग्लादेश सरकार पर दबाव डालने तथा वहाँ की वस्तुस्थिति को समझने के लिए एक प्रतिनिधि-मंडल भेजने का आग्रह किया था।

इसके बाद संघ ने अपनी अ. भा. प्रतिनिधि सभा की 1982 में हुई बैठक में पश्चिम बंगाल और बिहार में बढ़ती बांगलादेशी घुसपैठ पर चिंता प्रकट करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था। संघ ने 1988 में भी बांग्लादेश में बढ़ते मुस्लिम कट्टरवाद और सन 1989 में बांग्लादेशी धर्मान्धता के कारण हिन्दुओं पर हो रहे अत्याचारों को लेकर प्रस्ताव पारित किये थे। संघ के वर्तमान सरकार्यवाह अपने वक्तव्य में जो आज कह रहे हैं वही सब 1989 के प्रस्ताव में भारत सरकार को अपने कर्तव्य की याद कराते हुए संघ ने कहा था, “प्रतिनिधि सभा भारत सरकार से आग्रह करती है कि वह संयुक्त राष्ट्रसंघ एवं सार्क जैसे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर इस समस्या को उठाकर विश्व जनमत जगाये और उन सभी उपायों को अपनाये जिससे बांग्लादेश के शासको को वहाँ के हिन्दु एवं अमुस्लिम मतावलम्बियों के प्रति न्याय करने तथा 1947 के विभाजन के समय भी दिये गये अपने वचनों का पालन करने के लिए बाध्य किया जा सके।”
इसके बाद संघ ने सन 1989 में ही बांग्लादेशी चाकमा शरणार्थियों का मुद्दा उठाया और प्रस्ताव पारित किया था। फिर 1991 में बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या पर चिंता प्रकट करते हुए प्रस्ताव पारित किया था। इसी तरह सन 1992 में भारत सरकार द्वारा तीन बीघा-नवीनतम समर्पण का मुद्दा उठाया और प्रस्ताव के माध्यम से अपनी चिंता प्रकट की थी।

इसके बाद संघ ने सन 1993 में बांग्लादेश में हिंदुओं और बौद्ध चाकमाओं पर मुसलमानों द्वारा किये जा रहे अत्याचारों पर चिंता प्रकट करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव में संघ ने भारत सरकार को अविलम्ब निम्नलिखित तीन कदम उठाने के सुझाव भी दिए थे:

• संयुक्त राष्ट्र संघ से आग्रह कर भारत में आश्रय लिये चाकमा व अन्य हिन्दु शरणार्थियों को शरणार्थी स्तर प्रदान करवाना।
• पर्वतीय चट्टग्राम की चाकमा व अन्य जनजातियों तथा बांगलादेशी हिन्दुओं की हृदयद्रावक परिस्थिति को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठाना तथा उन्हें वापस भेजने पर तभी सहमत होना जब बांग्लादेश में उनके सम्मानपूर्ण एवं शान्तियुक्त जीवनयापन को आश्वस्त करने वाले समझौतों पर हस्ताक्षर होकर उनके कार्यान्वयन की प्रक्रियाएं भी तय कर ली जायें।
• बांग्लादेशी सरकार को चेतावनी देना कि यदि वह चाकमा सहित हिन्दुओं के विरुद्ध अपनी नापाक योजनाओं से बाज नहीं आती तो भारत को उससे जमीन माँगने का अधिकार रहेगा जिस पर इन शरणार्थियों को बसाया जा सके।
इसके बाद संघ ने वर्ष 1994 में ‘बांग्लादेश का अपने ही हिन्दू व अन्य अल्पसंख्यकों के विरुद्ध जेहाद’ शीर्षक से एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें भारत सरकार का आवाहन करते हुए कहा गया था कि ‘भारत सरकार का यह दायित्व है कि वह बांग्लादेश में हिन्दू व अन्य अल्पसंख्यकों के साथ हो रहे दुर्व्यवहार के विरुद्ध अपनी आवाज बुलन्द करे क्योंकि देश के विभाजन के समय और उसके बाद भी उसने उनकी हित रक्षा करते रहने का अभिवचन दिया था। उसे चाहिए कि वह उभयपक्षीय स्तर, अंतर्राष्ट्रीय स्तर तथा मानवाधिकार संगठनों के स्तर पर सर्वतोमुखी प्रयत्नों के द्वारा बांग्लादेश में अनुकूल वातावरण पैदा करवाने हेतु सचेष्ट हो और किसी निष्पक्ष अभिकरण द्वारा सतत निगरानी की व्यवस्था करवाये जिससे मानव त्रासदी के इस दु:खद इतिहास की पुनरावृत्ति न हो।’
आज मीडिया और सोशल मीडिया के माध्यम से हमें #BycotBangladesh ट्रेंड देखने को मिल रहा है और पश्चिमी बंगाल और दुसरे पूर्वोत्तर राज्यों सहित भारत के अन्य हिस्सों में बांग्लादेश के बायकोट करने को लेकर लोगों की प्रतिक्रिया भी मिल रही है। भारत का हिन्दू समाज भारत सरकार से बांग्लादेश के रेडिकल इस्लामवादी सरकार और जिहादियों के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की अपेक्षा भी कर रहा है। संघ की अ. भा. प्र. स. द्वारा वर्ष 2002 में बांग्लादेशी हिन्दुओं पर होने वाले अत्याचारों पर चिंता प्रकट करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया था जिसमें संघ ने भारत सरकार को बांग्लादेशी हिन्दुओं के प्रति उसके कर्तव्य की याद दिलाते हुए सुझाव दिया था कि:

• जो हिन्दू भारत में आए हैं उन्हें शरणार्थियों का दर्जा दिया जाना चाहिए और जब तक वे भारत में रहते हैं तब तक उन्हें संयुक्त राष्ट्र संघ के मानदण्डों के अनुसार सभी सुविधाएँ दी जानी चाहियें। देश विभाजन के समय अपने देश के सभी प्रमुख नेताओं ने यह आश्वासन दिया था कि वहाँ के हिन्दुओं की सुरक्षा का दायित्व भारत निभाएगा।
• बांग्लादेश की सरकार को यह बात दृढ़तापूर्वक तथा स्पष्ट शब्दों में बताना होगा कि वह इन हिन्दू बन्धुओं को सम्मान एवं सुरक्षा के साथ वापस बुला ले और उनके मूल स्थानों पर पुन: बसा दे।
• बांग्लादेश सरकार को होश में लाने के लिए कुछ कठोर कदम उठाए जाने चाहिए, जैसे चावल, आलू, प्याज, मांस आदि खाद्य पदार्थों का हमारे देश से बांग्लादेश में निर्यात बंद कर देना। अस्थायी रूप से फरक्का बाँध से बांग्लादेश को दिये जाने वाले जल के प्रवाह को भी रोक देना चाहिए।
• इसके साथ ही संघ ने यह माँग की थी कि यदि बांग्लादेश की सरकार तब भी नहीं मानती तो सरदार पटेल द्वारा 1949 में की गई माँग का अनुसरण करते हुए भारत सरकार बांग्लादेश से अलग भूखण्ड की माँग करे ताकि वहाँ के हिन्दू नागरिकों को सम्मान एवं सुरक्षा सहित बसाया जा सके।


इस प्रस्ताव के चारों बिन्दुओं को ध्यानपूर्वक पढ़ने से पता चलता है कि बांग्लादेशी हिन्दुओं की समस्याओं का समाधान संघ बहुत पहले दे चुका है। लेकिन, भारत की सरकारों ने संघ के प्रस्तावों पर उदासीन रख अपनाया। इसके बाद संघ ने वर्ष 2013 में प्रस्ताव पारित करके बांग्लादेश और पाकिस्तान के उत्पीड़ित हिन्दुओं की समस्याओं का निराकरण करने की मांग की। अपने प्रस्ताव में संघ ने भारत सरकार से कहा था कि “सरकार यह कह कर बच नहीं सकती कि यह उन देशों का आन्तरिक विषय है।”

इसके बाद संघ ने वर्ष 2021 में बांग्लादेश में हिंदुओं पर हुए उन्मादी इस्लामिक आक्रमण की कड़ी भर्त्सना करते हुए एक प्रस्ताव पारित किया। इस मुद्दे पर सविस्तार प्रकाश डालते हुए संघ ने विश्वास दिलाते हुए कहा कि “राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ सहित संपूर्ण हिंदू समाज बांग्लादेश के हिंदू और अन्य प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के इस कठिन एवं चुनौतीपूर्ण समय में उनके साथ डटकर खड़ा है ।”
संघ के वर्तमान सरकार्यवाह का वक्तव्य बांग्लादेश के हिन्दू समाज को दिलाये गए उस विश्वास का पुनः प्रकटीकरण है तथा भारत सरकार को बांग्लादेशी हिन्दुओं के प्रति उसके कर्तव्य को याद कराने का उद्यम भी है। काश! भारत की सरकारों ने संघ के प्रस्तावों को गंभीरता से लिया होता और उनके अनुसार कदम उठाये होते तो आज बांग्लादेश में हिन्दुओं की ऐसी दुर्दशा नहीं होती जैसी आज हो रही है। वर्तमान भारत सरकार से अपेक्षा है कि वह संघ के प्रस्तावों में दिए गए सुझावों पर अमल करेगी और बांग्लादेश में हिन्दुओं को रेडिकल इस्लामिस्टों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने के लिए हरसंभव प्रयास करेगी ।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

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