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लैंड जिहाद का घिनौना सच, पहले अवैध कब्जा करेंगे फिर विक्टिम कार्ड खेलेंगे

मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले दलों की सरकारों द्वारा सरकारी जमीनों की सुरक्षा के प्रति घोर उदासीनता ने मुस्लिम वर्ग को सरकारी जमीनों पर कब्जा करने में खूब मदद की है। इसी कारण रेलवे स्टेशनों, बस स्टैंड और सड़कों के बीचो-बीच मस्जिद, दरगाह या मजार प्राय: देखने को मिल ही जाती है। बांग्लादेशी रोहिंग्या मुसलमानों द्वारा या सुदूर क्षेत्रों से आकर मुसलमानों द्वारा शहरों के निकट सरकारी जमीनों पर बनाये गए स्थाई/अस्थाई निर्माण इन्हीं सरकारों की उदासीनता और वोट की राजनीति के कारण ही संभव हो पाया है।

मुस्लिम वर्ग द्वारा योजनाबद्ध रूप से सरकारी जमीनों पर कब्जे का अभियान वर्षों से चला आ रहा है। इनके लैंड जिहाद का यह एजेंडा बिलकुल साफ है कि पहले सरकारी जमीनों पर अवैध कब्जे करो फिर उसी सरकारी जमीन पर मस्जिद या दरगाह बनाकर इबादत करो। फिर धीरे धीरे उस पूरे क्षेत्र में घनी मुस्लिम आबादी को बसाने का काम करना है। सरकारों को अतिक्रमण के विरुद्ध कार्रवाई करने से रोकने कि लिए राजनैतिक दबाव बनाओ और उसके बाद भी यदि सरकार कार्रवाई करती है तो असहाय व पीड़ित बनकर अत्याचार का मजहबी रोना धोना शुरू कर दो।

हाल ही में हिन्दू धार्मिक संगठनों के द्वारा हरिद्वार, धारावी, मंडी और शिमला में अवैध रूप से निर्मित मस्जिदों के विरोध में हुए जबरदस्त प्रदर्शनों के बाद हुई कार्रवाई के साथ यह भी सवाल उठने लगा कि आखिर इसी समुदाय के द्वारा अवैध रूप से जमीनों पर कब्ज़ा क्यों किया जाता है। इसके पीछे मुस्लिम वर्ग की मानसिकता बिल्कुल साफ है क्योंकि इन्हें मालूम है कि यदि प्रतिकूल कब्जे पर सरकार कोई प्रतिक्रिया नहीं देती है तो वह जमीन कब्जेधारी की हो जाती है और इसी कारण इस समुदाय ने सुनियोजित ढंग से सरकारी जमीनों पर कब्जे करने शुरू कर दिए।

‘प्रतिकूल कब्जे का कानून’ यानी ‘द लॉ ऑफ एडवर्स पजेशन’ (The Law of Adverse Possession) एक कानूनी अवधारणा है जिसके तहत अगर किसी व्यक्ति का एक निजी जमीन पर 12 साल या फिर एक सरकारी जमीन पर 30 साल से अधिकार है लेकिन वो उसका मालिक नहीं है, तो इस अवधि के बाद वह उस जमीन का मालिक हो जाएगा। परिसीमा अधिनियम, 1963 (The Limitations Act, 1963) के अनुच्छेद 65 की अनुसूची 1 में ‘प्रतिकूल कब्जे’ का कानून निहित है। यह एक ऐसा कानून है जो एक मालिक से ज्यादा हक कब्जेदार को देता है।

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि केंद्र सरकार को इस कानून के प्रावधानों पर नए तरीके से विचार करने की जरूरत है और इसमें बदलाव करने की भी आवश्यकता है। जिसके बाद 22वें विधि आयोग (Law Commission of India) ने हाल ही में ‘प्रतिकूल कब्जे के कानून’ (The Law of Adverse Possession) पर अपनी 280वीं रिपोर्ट तैयार की, रिपोर्ट में कहा गया कि सरकारों और स्थानीय प्राधिकारियों को कब्जे के लिए मुकदमा दायर करने के लिए 30 साल की अवधि से ज्यादा कोई उदारता नहीं हो सकती। विधि आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष, जस्टिस ऋतुराज अवस्थी ने ‘लॉ ऑफ एडवर्स पजेशन’ पर अपने सप्लीमेंट्री नोट में यह भी लिखा है कि प्रतिकूल कब्जे का कानून देश या सरकार के फायदे के लिए नहीं बल्कि देश के नागरिकों के फायदे के लिए है। उनका कहना है कि सरकारी जमीन के लिए अगर ‘प्रतिकूल कब्जे का कानून’ हटा दिया जाएगा तो देश में स्थिति बहुत अस्त व्यस्त हो सकती है और इससे लोगों में अस्थिरता देखी जा सकती है।

हाल के दिनों में हिन्दू संगठनों की सर्क्रियता से अब सरकारों पर अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई करने का नैतिक दबाव बढ़ने लगा है। उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में श्री कृष्ण जन्मभूमि के पास रेलवे की जमीन पर कब्जा कर बसाई गई अवैध मुस्लिम बस्ती को नोटिस के बाद भी अतिक्रमणकारी जब जमीन खाली करने को तैयार नहीं हुए तब मथुरा प्रशासन व पुलिस ने एक साथ संयुक्त अभियान चलाकर अवैध मकानों को बुलडोजर से ध्वस्त करा दिया। उतराखंड सरकार अवैध निर्माण खोज खोज कर ध्वस्त करके सरकारी जमीनों को खाली कराने का काम कर रही है तो वहीँ गुजरात सरकार ने अक्टूबर में 2022 में बेट द्वारका में अवैध घर, माजर, दरगाह के निर्माणों को ध्वस्त कर दिया था। बेट द्वारका कराची के निकट होने कारण शुरू से ही संवेदनशील रहा है और यहां पाकिस्तानी तस्करों को शरण का आरोप भी लगता रहा है। यहाँ पहले हिंदुओं की आबादी के अधिक होने के कारण उन्हें दिक्कत होती थी। एक अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र के अंतर्गत यहां मुसलमानों को अवैध रूप से बसाया गया और आज उनकी आबादी 85 प्रतिशत हो गई है।

ताजा प्रकरण गुजरात के सोमनाथ का है। गुजरात के सोमनाथ के स्थानीय प्रशासन ने वर्ग विशेष के लैंड जिहाद के खिलाफ के बड़ा अभियान चलाकर अवैध रूप से बने कई मजहबी निर्माणों को ध्वस्त कर दिया। इस कार्रवाई में 36 बुलडोजर, 70 ट्रैक्टर-ट्रॉली, और 1500 से अधिक पुलिसकर्मियों की तैनाती की गई थी। गिर सोमनाथ में विशेष रूप से समुद्री इलाकों और पूजा स्थलों के आसपास के अवैध निर्माणों को हटाने के लिए यह बड़ा अभियान चलाया गया। प्रशासन ने ईदगाह और मस्जिद सहित कई अवैध मजहबी स्थलों को हटाया, जिससे कुछ स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोग विरोध में एकत्रित हो गए। विरोध के बावजूद, प्रशासन ने सख्ती से स्थिति को नियंत्रण में ले लिया। हाजी मंगरोलीशा पीर दरगाह, हजरत माईपुरी, सीपे सालार और मस्तानशा बापू जैसी प्रमुख दरगाहों को भी इस कार्रवाई के दौरान हटाया गया। प्रशासन ने यह सुनिश्चित किया कि इस प्रक्रिया के दौरान शांति व्यवस्था बनी रहे और विध्वंस कार्य सफलतापूर्वक पूरा हो सके।

गुजरात के सोमनाथ शहर में अब तक की की गई इस सबसे बड़ी अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई ने तुष्टिकरण की राजनीति करने से बाज न आने वाले स्थानीय कांग्रेसी नेताओं को मौका दे दिया। अब कांग्रेस पार्टी इसके विरोध में उतर आई है। 28 सितंबर को गुजरात के कांग्रेस पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और वर्तमान विधायक अमित चावड़ा ने अवैध इबादतगाहों को तोड़ने का विरोध अपने X हैंडल के जरिए किया है। उन्होंने लिखा, “विकास के नाम पर बुलडोज़र की राजनीति दुर्भाग्यपूर्ण है। वेरावल में सुप्रीम कोर्ट की मनाही के बावजूद शासकों के द्वारा धार्मिक स्थानों, घरों पर बुलडोजर चला के डर-भय का शासन प्रस्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। शासकों द्वारा संविधान को तार-तार कर मनमानी हो रही है।”

कांग्रेस के नेताओं ने इस कार्रवाई के बाद कब्जेदारों के बजाय सरकारी कार्रवाई में ही कमी निकालनी शुरू कर दी है। इस कार्रवाई के खिलाफ अमित चावड़ा की ही तरह एक अन्य कांग्रेसी विधायक विमल चूड़ास्मा ने भी बुलडोजर एक्शन के खिलाफ मुस्लिम समुदाय को भड़काया। कांग्रेस विधायक ने कहा, “जब कोई बुलडोजर लेकर आए तो अपना मोबाइल फोन ऑन करके उसके आगे लेट जाना।” हालाँकि सोमनाथ में ध्वस्तीकरण के इस एक्शन का सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों से कोई संबंध नहीं है। भले ही अमित चावड़ा व विमल चूड़ास्मा संविधान का हवाला देकर अत्याचार का रोना रो रहे हों पर सच्चाई यही है कि वहां कई वर्षों से करोड़ों रुपयों की सरकारी जमीन पर कब्जा किया गया था। प्रशासन का भी दावा है कि कार्रवाई जांच के बाद जरूरी नियमों के तहत हुई है।

काफी समय से वर्तमान केंद्र सरकार के विरुद्ध सक्रिय इकोसिस्टम अवैध निर्माणों को प्रोत्साहन देते हुए, मुस्लिम वर्ग को पीड़ित बताकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर विक्टिम कार्ड खेलने का भी काम कर रहा है जिसका फायदा मुस्लिम वर्ग उठाता आ रहा है। बेट द्वारका सहित देश के अन्य भागों में अवैध निर्माणों के ध्वस्तीकरण के बाद एमनेस्टी इंटरनेशनल का यह बयान कि भारत में पक्षपातपूर्ण कारवाई हुई है, इसी विक्टिम कार्ड का हिस्सा है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

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