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मजहबी पहचान के लिए प्रदर्शन करेंगे लेकिन व्यापार पहचान छिपाकर करेंगे !

उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में कांवड़ यात्रा के दौरान रास्ते में पड़ने वाले ढाबों और खाद्य पदार्थ बेचने वालों को अपनी पहचान बताए जाने को लेकर सियासत हो रही है। कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी इसे संविधान पर हमला बता रही हैं। इसे संविधान पर हमला बताने वाली प्रियंका गांधी बताएं कि विशेषकर हिंदुओं को टारगेट कर एक समुदाय विशेष के कई लोगों के जब खाने में थूकने के वीडियो वायरल हुए तो वह क्या था। इस हिसाब से तो वह भी संविधान पर हमला ही होना चाहिए। घटना, अनुभव, स्मृति और फिर बनती है धारणा। किसी बात पर राय बनाने के लिए व्यक्ति या समाज यही सीढियां तो चढ़ता है। ऐसी घटनाएं होंगी तो समाज तो प्रतिक्रिया देगा ही। जाहिर है वह शक की नजर से देखेगा ही।

संदेह तो संदेह ही होता है, और यदि यहां आपकी पूरी आस्था परंपरा भी शामिल है तो फिर इस पर आपको कोई सवाल नहीं उठाना चाहिए। वैसे भी पहचान बताए जाने का यह अधिनियम तो यूपीए सरकार ने ही बनाया है। यूपीए सरकार के कार्यकाल के दौरान बनाए गए खाद्य सुरक्षा एवं मानक अधिनियम 2006 के अनुसार होटलों, रेस्टोरेंट, ढाबों और ठेलों समेत सभी भोजनालयों के मालिकों के लिए अपना नाम, फर्म का नाम और लाइसेंस नंबर लिखना अनिवार्य है। जब यूपीए सरकार ने यह अधिनियम बनाया था तो यह सबके लिए था, फिर यह संविधान पर हमला कैसे हो गया ?

जब सीएए और एनआरसी को लेकर देश भर में प्रदर्शन हुए, आगजनी हुई, दिल्ली में दंगे हुए तो वह क्या संवैधानिक थे ? सड़कों पर हिंसा का नंगा नाच करती हुई उन्मादियों की भीड़ जब पत्थरबाजी कर रही थी तो वह क्या संवैधानिक था? प्रियंका और तमाम कांग्रेसी बताए क्या वह संविधान पर हमला नहीं था? कनार्टक में हिजाब को लेकर हुए प्रदर्शन क्या वह संवैधानिक प्रदर्शन थे। वहां पर हिजाब को ड्रेस कोड को लेकर हुए प्रदर्शन में मुस्लिमों ने स्पष्ट कहा कि वह अपनी मजहबी पहचान चाहते हैं, चूंकि हिजाब उनके मजहब में है तो कॉलेज में भी मुस्लिम लड़कियां हिजाब पहनेंगी। हिजाब के मामले में मुसलमानों को अपनी पहचान चाहिए। शादी शरीयत के हिसाब से चाहिए। तलाक शरीयत के हिसाब से चाहिए। उनके अपने कानून हैं ? सर्वधर्म समभाव की बात कहने वाली कांग्रेस मुसलमानों को अलग नजरिए से क्यों देखती है। क्या सारे कानून सिर्फ हिंदुओं के लिए है।

तीन तलाक का कानून मुस्लिम महिलाओं की दशा और स्थिति सुधारने के लिए बना तो कांग्रेस ने इसका विरोध किया। 1986 में जब सर्वोच्च न्यायालय ने शाहबानो केस में गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया तो इसके लिए संसद में कांग्रेस कानून ले आई। तब भी कांग्रेस ने मुसलमानों का समर्थन किया था और अब भी कांग्रेस की टॉप लीडरशिप नाम और पहचान बताने को संविधान पर हमला बता रही है। जब भी देश में कोई कानून आता है तो सबसे ज्यादा दिक्कत मुसलमानों को होती है क्यों ? कांग्रेस मुसलमानों के मुद्दों पर हमेशा चुप्पी साध लेती है क्यों ?

मुसलमान यदि हलाल और हराम की बात कर ‘ हलाल’ खाने की मांग करता है तो फिर हिंदुओं को भी अपनी धार्मिक आस्था का पालन करने का पूरा अधिकार होना चाहिए। धार्मिक कार्यों में शुचिता होनी जरूरी है। हिंदू धर्म में सावन के महीने को बहुत पवित्र माना जाता है। हिंदू भी जो नॉनवेज खाते हैं वह इस माह में नॉनवेज छोड़ देते हैं। जैसे मुसलमानों के लिए रमजान हैं वैसे ही हिंदुओं के लिए नवरात्र और सावन का महीना है। यदि हिजाब के लिए, नमाज के लिए, आपके अपने नियम कायदे हैं तो वैसे ही हिंदुओं के अपने नियम और कायदे हैं। यदि हिंदू को पहचान से कोई दिक्कत नहीं है तो मुसलमानों को क्यों होनी चाहिए ? और सही मायनों में कहें तो कुछ मुसलमानों को है भी नहीं। ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना शहाबुद्दीन ने इस व्यवस्था का समर्थन किया है, तो कांग्रेस इसका विरोध क्यों कर रही है।

दरअसल कांग्रेस के विरोध की वजह सिर्फ वोट बैंक की राजनीति है। ऐसे मुद्दों को हवा देना, फिर उस पर राजनीति करना कांग्रेस की यही रीति और नीति है। मान लीजिए यदि ऐसा नहीं किया जाता और कांवड़ यात्रा के दौरान किसी की धार्मिक भावनाएं आहत हुईं और मामला बढ़ गया तो इसके लिए कौन जिम्मेदार होगा ? तब कांग्रेस फिर से उत्तर प्रदेश सरकार पर ठीकरा फोड़ देगी। कांग्रेस को इस मुद्दे पर बयानबाजी करने की बजाए इसे सकारात्मक कदम बताकर इसके पक्ष में बोलना चाहिए न कि इस पर राजनीति करनी चाहिए।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

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