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जब भी कांग्रेस और उसके शाही परिवार पर उंगली उठती है तो कांग्रेसी सारी संसदीय मर्यादाएं ताक पर रख देते हैं

हंगरी-अमेरिकी मूल के मशहूर अरबपति जॉर्ज सोरोस के कांग्रेस से संबंधों पर भाजपा ने कहा है कि राहुल के पड़नाना और बीके नेहरू से शादी करने वाली फोरी हंगरी की रहने वाली थीं। जाहिर तौर पर इस लिहाज से वह राहुल की पड़नानी ही लगीं। राज्यसभा में यह मुद्दा क्या उठा कांग्रेस ने हंगामा काट दिया और राज्यसभा की कार्रवाई एक बार फिर स्थगित करनी पड़ी। यहां तक कि कांग्रेस ने राज्यसभा के सभापति भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रस्ताव पेश कर दिया। यह संविधान से चलने वाले देश के लोकतंत्र और संविधान दोनों का अपमान नहीं तो और क्या है?

भारत के इतिहास में आज तक कभी राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया गया है। भारत के संविधान के तहत, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव की कोई प्रक्रिया नहीं है। उनके खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया का प्रावधान है। महाभियोग भी तभी लाया जा सकता है जब राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति ने संविधान का उल्लंघन किया हो। यह प्रक्रिया काफी जटिल है इसके लिए संसद के दोनों सदनों में विशेष बहुमत की जरूरत होती है।

बहरहाल जिस अमेरिकी अरबपति जॉर्ज सोरोस को लेकर भाजपा ने आरोप लगाया है वह खुद बोल चुका है कि मोदी को हराने के लिए वह कितने भी मिलियन डॉलर खर्च करेगा। वामपंथी सोरोस पर दुनिया के देशों की राजनीति को प्रभावित करने के लिए एजेंडा चलाने का आरोप नया नहीं है। हाल ही में जॉर्ज सोरोस की एजेंडाबाज संस्था नॉन-प्रॉफिट ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एंड करप्शन रिपोर्टिंग प्रोजेक्ट (OCCRP) ने अदानी समूह को लेकर हिंडनबर्ग की तरह से कई आरोप लगाए हैं। इसके बाद कांग्रेस भाजपा पर हमलावर है और शीतकालीन सत्र में हंगामा काट चुकी है।

हिंडनबर्ग मामले में भी कांग्रेस ने ऐसा ही किया था, ये बात दीगर है कि बाद में हिंडनबर्ग के सारे आरोप झूठे साबित हो गए थे, कांग्रेस को कोई ऐसा मुद्दा नहीं मिल रहा था जिससे फिर से हंगामा काटा जा सके। अब फिर उसे मुद्दा मिला तो उसने फिर से अपनी सदन न चलने देने वाले थ्योरी पर काम करते हुए हंगामा काट दिया। भाजपा ने तमाम पक्ष रखते हुए कांग्रेस और गांधी परिवार की सोरोस के नजदीकी पर सवाल उठाए हैं। यदि कांग्रेस के पास इसका कोई माकूल जवाब है तो वह सदन में देती क्यों नहीं है ? बात यह है कि कांग्रेस के पास इसका कोई जवाब ही नहीं है। हंगामा भी इसलिए खड़ा किया गया ताकि इस मुद्दे पर से सबका ध्यान हट जाए। यही कांग्रेस पिछले दस सालों से करती आ रही है।

दरअसल यह पिछले दस सालों से सत्ता से दूर कांग्रेस की हताशा है। बिना किसी बाद के वितंडा कर खुद को सुर्खियों में रखना ही कांग्रेस का असल मकसद होता है। देशहित के बहुत मुद्दों पर सदन में चर्चा हो सकती है लेकिन बिना किसी बात के कांग्रेस पिछले दस सालों से कितनी ही बार सदन को ठप कर चुकी है। 2014 में भाजपा ने पहली बार पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई थी। शुरुआत से ही कांग्रेस ने सदन में हंगामा कर उसे ठप करने की नीति अपनाई थी, जिस पर कांग्रेस आज तक चलती आ रही है।

उदाहरण के तौर पर 2014-15 में मॉनसून सत्र में कांग्रेस ने ललित मोदी विवाद और व्यापम घोटाला को मुद्दा बनाया था। कांग्रेस ने सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे, और शिवराज सिंह चौहान के इस्तीफे की मांग करते हुए संसद को ठप किया था। 2016 में शीतकालीन सत्र में नोटबंदी के फैसले पर कई दिनों तक संसद की कार्यवाही बाधित रखी थी। जबकि इससे पहले इंदिरा गांधी भी नोटबंदी कर चुकी थी। 2017 के मानसून सत्र में किसान आंदोलन और मॉब लिंचिंग की घटनाओं को मुद्दा बनाकर सदन को ठप किया गया था। 2018 के बजट सत्र में पीएनबी से कर्जा लेकर भागे कारोबारी नीरव मोदी और मेहुल चौकसी की संलिप्तता को लेकर विपक्ष ने सदन में लगातार हंगामा किया था। यहां तक कि राहुल गांधी ने मोदी सरनेम को लेकर विवादित टिप्पणी की थी, जिसका खामियाजा उन्हें अदालत से सजा पाकर और अपनी सदस्यता खोकर भुगतना पड़ा, हालांकि बाद में सुप्रीम कोर्ट से उन्हें राहत मिल गई और उनकी सदस्यता बहाल हो गई थी।

2019 में मॉनसून सत्र में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के मुद्दे पर कांग्रेस और उसके साथी दलों से सदन में जमकर हंगामा किया था। 2020 में मानसून और शीतकालीन सत्र में नए कृषि कानूनों के खिलाफ संसद में हंगामा किया गया। 2021 के मॉनसून सत्र में पेगासस स्पाइवेयर के जरिए नेताओं, पत्रकारों, और अन्य महत्वपूर्ण लोगों की जासूसी कराए जाने को लेकर हंगामा किया गया। हालांकि बाद में सारे आरोप निराधार निकले। 2022 में बजट सत्र और शीतकालीन सत्र में महंगाई और बेरोजगारी को मुद्दा बनाकर विपक्ष ने कई बार सदन को ठप किया। 2023 में मणिपुर हिंसा और राहुल गांधी की सदस्यता बहाली को लेकर हंगामा किया गया। जबकि राहुल गांधी की सदस्यता उन्हें अदालत से सजा सुनाए जाने के चलते गई थी। इसमें सरकार की कोई भूमिका नहीं थी।

पिछले 10 वर्षों में बिना बात के कई मुद्दों पर संसद ठप होने से महत्वपूर्ण विधायी कार्य बाधित हुए लेकिन कांग्रेस को इसकी कोई परवाह कभी नहीं रही। कांग्रेस के हंगामा करने, सदन को ठप करने और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा को तमाम बार घेरने के प्रयास के बाद भी जनता ने कांग्रेस को भाव नहीं दिया। एक बार केंद्र में फिर से राजग सरकार है और नरेंद्र मोदी देश के तीसरी बार प्रधानमंत्री हैं। अधिकतर सत्ता में रहने या सत्ता के केंद्र में रहने की आदी कांग्रेस को यह बर्दाश्त नहीं हो रहा है, इसलिए वह बेकार के मुद्दों पर सदन ठप करने का कोई न कोई बहाना तलाशती रहती है। जो पिछले दस वर्षों से कांग्रेस करती आई इस बार भी कांग्रेस वही कर रही है। ये बात दीगर है कि कांग्रेस न दस साल पहले कुछ कर पाने की स्थिति में थी और न अब है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

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