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हमेशा भ्रष्ट्राचारियों और आरोपियों की ढाल क्यों बनती है कांग्रेस और उसके सिब्बल जैसे परित्यक्त नेता !

ये वही सिब्बल हैं जिन्होंने कभी 2G घोटाले पर कहा था—'जीरो लॉस'। यानी इस घोटाले में कोई नुकसान नहीं हुआ, ऐसा उनका कहना था। इन्हीं सिब्बल ने रामसेतु के अस्तित्व पर सवाल उठाया था और कांग्रेस की तरफ से न्यायालय में पैरवी की थी।

कांग्रेस नेता हमेशा से भ्रष्ट्राचारियों और आरोपियों की ढाल बनते आए हैं। अगर कांग्रेस के हिसाब से न्याय हुआ तो न्यायपालिका ठीक है, नहीं तो तत्काल आरोप लगा दिया जाता है कि न्यायपालिका दबाव में काम कर रही है। न्याय व्यवस्था की निष्पक्ष प्रक्रिया को कटघरे में खड़ा किए जाने लगता है। हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रहे यशवंत वर्मा के विरुद्ध महाभियोग प्रस्ताव की बात पर राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने विरोध किया है। वह इसे गैर संवैधानिक बता रहे हैं। भले ही आज वे सपा के राज्यसभा सांसद हैं, लेकिन आते तो कांग्रेस के ही विचार-परिवार से ही हैं।

सिब्बल ने महाभियोग प्रस्ताव को पक्षपातपूर्ण बताते हुए न्यायपालिका की स्वतंत्रता पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिए। उन्होंने न्यायमूर्ति वर्मा के मामले को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव से जोड़ते हुए राजनीति करनी शुरू कर दी है। वह कह रहे हैं कि न्यायमूर्ति यादव के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई? दोनों ही मामले बिल्कुल अलग हैं, यह सवाल उठाने से पूर्व उन्हें यह स्पष्ट करना चाहिए था कि क्या दोनों मामलों की प्रकृति, आरोपों की गंभीरता और जांच की स्थिति एक जैसी है? सच्चाई यह है कि यशवंत वर्मा पर लगे आरोपों की पुष्टि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति द्वारा की गई है, और इसके बाद संवैधानिक प्रक्रिया के तहत महाभियोग प्रस्ताव लाया जाना है। न्यायमूर्तियों को भ्रष्टाचार जैसे किसी मामले में हटाए जाने के लिए महाभियोग लाए जाने का प्रावधान है। यह अधिकार संसद को संविधान ने दिया है। ऐसे में सिब्बल इसे असंवैधानिक कैसे बता सकते हैं।

जिन न्यायमूर्ति वर्मा का वह पक्ष ले रहे हैं उनके विरुद्ध शीर्ष अदालत की जांच में उन्हें दोषी पाया गया है। ऐसे में वह कैसे प्रक्रिया पर सवाल उठा सकते हैं। बता दें कि ये वही सिब्बल हैं जिन्होंने कभी 2G घोटाले पर कहा था—’जीरो लॉस’। यानी इस घोटाले में कोई नुकसान नहीं हुआ, ऐसा उनका कहना था। इन्हीं सिब्बल ने रामसेतु के अस्तित्व पर सवाल उठाया था और कांग्रेस की तरफ से न्यायालय में पैरवी की थी।

बहरहाल सिब्बल से इतर बात करें तो कांग्रेस की यह परंपरा रही है कि उसने हमेशा भ्रष्टाचारियों, राष्ट्रविरोधियों का बचाव किया है। इसी कांग्रेस ने आपातकाल के दौरान न्यायपालिका को दबाने का प्रयास किया। बोफोर्स घोटाले में जांच को भ्रमित करने की लिए पूरी ताकत झोंकी। वहीं जब कांग्रेस के किसी नेता पर आंच आती है तो वह ‘राजनीतिक प्रतिशोध’ का राग अलापने लगती है। न्यायपालिका के दबाव में होने की बात कही जाने लगती है। इसका सबसे ताजा उदाहरण यह है कि जब मानहानि मामले में सूरत की एक अदालत ने राहुल गांधी को दो साल की सजा सुनाई तो कांग्रेस के तमाम नेता गला फाड़कर चिल्ला रहे थे कि उन्हें दबाव में सजा दी गई है। न्यायपालिका पर सरकार का दबाव है।

कांग्रेस शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले को संसद में बिल लाकर पलट देती है, क्योंकि उसे कट्टरपंथियों के वोट चाहिए। अफजल गुरु जैसे आतंकियों के लिए ‘मानवाधिकार’ की दुहाई देती है। उदाहरण अफजल गुरु को फांसी होने के बाद वरिष्ठ कांग्रेसी नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा था कि अफजल के साथ नाइंसाफी हुई थी। उन्होंने यह बयान बाकायदा संसद के बाहर दिया था। उन्होंने कहा था कि उनका ऐसा मानना है कि अफजल गुरु के खिलाफ पर्याप्त सबूत नहीं थे, उसके साथ नाइंसाफी हुई थी।

कांग्रेस के नेता जिस प्रकार हर दोषी के लिए ढाल बनते हैं वह किसी से छिपा नहीं है। कांग्रेस की एक ही थ्योरी रहती है कि अपने लोग निर्दोष हैं। यदि वह कहीं फंसते हैं तो कहा जाता है उन्हें राजनीतिक साजिश का शिकार बनाया गया है। इस मुद्दे को तूल देने का कारण भी यही है क्योंकि न्यायमूर्ति यादव विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में एक भाषण दिया था। अब चूंकि न्यायमूर्ति विहिप के कार्यक्रम में शामिल हुए थे तो कांग्रेस को उन पर कार्रवाई चाहिए? एक कार्यक्रम में अपने निजी विचार रखना, और दूसरी तरफ भारी मात्रा में घर में नकदी मिलने जैसे दो मामलों को समान कैसे माना जा सकता है, लेकिन सिब्बल ऐसा कर रहे हैं, क्योंकि वह इस मुद्दे को तूल देना चाहते हैं, ताकि इस पर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों को राजनीति करने का मौका मिल सके।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

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