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हमेशा देश विरोधी ताकतों के साथ खड़े नजर क्यों आते हैं राहुल गांधी !

राहुल गांधी द्वारा देश से बाहर जाकर दिए गए बयानों की एक लंबी फेहरिस्त है जो यह बताने के लिए काफी है कि राहुल गांधी कभी एक परिपक्व नेता नहीं हो सकते। वह नेता सिर्फ अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि के चलते ही बने हैं, उनकी सोच और उनकी समझ और उनके शब्दों में भारत और भारतीयता जैसा कुछ नजर नहीं आता है। शायद इसलिए आज तक भारतीय जनमानस राहुल गांधी को एक अपरिपक्व और भ्रमित नेता ही मानता आया है।

आपके द्वारा कहे गए शब्द आपके संस्कार, आपकी शिक्षा और पालन—पोषण का परिचय भी देते हैं। कुछ शब्द समाज के लिए नजीर बन जाते हैं। कुछ शब्द ऐसे होते हैं जो जहर का काम करते हैं। इसलिए कहा जाता है कि बोलने से पहले सोचना चाहिए, लेकिन राहुल गांधी सोचते नहीं हैं। 2014 में विपक्ष में जाने के बाद से अभी तक उन्होंने अपने विदेशी दौरों के दौरान जब भी बोला जहर ही उगला। राजनीतिक शुचिता की बात करना तो बेमानी है। देश विरोधी ताकतों के साथ खड़े रहने वाले राहुल गांधी आखिर किस तरह की राजनीति कर रहे हैं? देश को बांटने की साजिश करने वाली ताकतों के साथ खड़ा होना और देश विरोधी बयान देना राहुल गांधी और उनकी कांग्रेस की आदत में शुमार हो चुका है।

चाहे विदेश में जाकर भारत विरोधियों से मुलाकात करना हो, विदेशी मंचों पर भारत विरोधी बयान देना हो, विपक्ष में जाने के बाद से लगातार राहुल गांधी ऐसा ही कर रहे हैं। अपने अमेरिका के दौरे के दौरान उन्होंने जो भी कहा और जिन लोगों के साथ वह खड़े नजर आए वैसा करना दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के नेता विपक्ष के पद पर आसीन व्यक्ति को कतई शोभा नहीं देता, लेकिन राहुल गांधी को इससे कोई फर्क नही पड़ता। सत्ता पाने की छटपटाहट उनमें इस कदर है कि इसके लिए वह कुछ भी कर गुजरने को तैयार हैं।

अपने अमेरिका दौरे के दौरान उन्होंने पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान की कट्टर समर्थक अमेरिकी सांसद इल्‍हान उमर से मुलाकात की है, वही इल्‍हान उमर जो पाकिस्तान अधिकृत कश्‍मीर के दौरे पर गई थीं। पीओके में उन्होंने भारत के खिलाफ बयानबाजी की थी। इल्‍हान उमर हिंदूफोबिया से ग्रसित हैं और अक्सर हिंदुओं को लेकर विवादित बयान देती रहती हैं। राहुल गांधी ने 10 सितंबर को अमेरिका के सांसदों के दल के साथ वाशिंगटन में रायबर्न हाउस में मुलाकात की। इस दौरान इल्‍हान उमर वहां मौजूद थीं।

इल्हान ने पीएम मोदी के अमेरिकी संसद में दिए गए भाषण का बहिष्कार भी किया था। वह भारत के खिलाफ कई बार विदेशी मंचों से आलोचना कर चुकी हैं। वे भारत को अल्पसंख्यक विरोधी बताती हैं। बावजूद इसके राहुल गांधी उनके साथ खड़े नजर आते हैं। ऐसे में राहुल गांधी से यह सवाल पूछा जाना लाजमी है कि इल्हान उमर जो कश्मीर और खालिस्तान को अलग देश बनाने का समर्थन करती हैं उनके साथ खड़े होकर राहुल गांधी आखिर दुनिया को क्या संदेश देना चाहते हैं? क्या यह देशविरोधी ताकतों का समर्थन करना नहीं हुआ?

राहुल ने जॉर्जटाउन यूनिवर्सिटी में भाषण दिया, लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था में 99 सीटें जीतने के बाद और नेता विपक्ष बनने के बाद भी राहुल गांधी दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के चुनावों पर सवाल उठाने से नहीं चूके। उन्होंने चुनाव की निष्पक्षता पर भी सवाल उठाए और कहा कि इस बार जो चुनाव हुए वो पूरी तरह स्वतंत्र नहीं थे, बल्कि नियंत्रित थे। मुझे नहीं लगता कि अगर निष्पक्ष चुनाव होते तो भाजपा को 246 सीटें मिलती। यह एक तरह से पूरे देश का अपमान नहीं है तो और क्या है?

ऐसा पहली बार नहीं है कि जब राहुल गांधी ने विदेश में जाकर यहां की संवैधानिक संस्थाओं को बदनाम किया हो, अपने हर दौरे में राहुल गांधी ऐसा ही करते आए हैं। 2023 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में राहुल गांधी ने कहा था, ”भारत में लोकतंत्र खतरे में है। भारत में बड़े पैमाने पर असमानता और आक्रोश नजर आ रहा है जो लोकतंत्र के गिरावट का सूचक है।” उन्होंने भारत की तुलना पाकिस्तान से भी कर दी थी। जर्मनी के अपने दौरे के दौरान राहुल गांधी ने कहा था, ”2014 में आई मोदी सरकार दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों को दबाने का काम कर रही है। इससे पहले जितनी सरकारें थी इन लोगों के उत्थान का काम किया था, लेकिन मोदी सरकार इन्हें दबा रही है।”

अमेरिका के डल्लास में राहुल गांधी ने जो जहर उगला, भारत में सिखों की स्थिति को लेकर बेतुकी बातें कहीं, क्या इसको खालिस्तानियों की जबान नहीं कहा जाएगा? उन्होंने यह तक कह डाला कि चीन ने भारत की 4,000 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर रखा है। सरकार इस मामले से निपटने में विफल रही है। देश के बाहर जाकर इस तरह बयान देकर क्या राहुल गांधी देशविरोधी ताकतों, डीप स्टेट के लोगों को भारत के खिलाफ जहर उगलने का मौका नहीं दे रहे हैं? राहुल गांधी के बेतुके बयान हमेशा से देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था को अस्थिर करने वाले ही होते हैं। वह खुद विदेशों में जाकर इस तरह की बयानबाजी करते हैं जो देशवासियों की भावनाओं को ठेस पहुंचाती है।

राहुल गांधी को बोलने से पहले सोचना चाहिए। खासकर विदेशी मंचों पर बोलने से पहले। उन्हें यह याद रखना चाहिए कि वह दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के नेता विपक्ष हैं। ऐसे में कुछ भी अनर्गल बोलना उनके लिए ही घातक सिद्ध होगा जिसका जनता उन्हें जवाब देगी। अभी तक कि दस बरस की सत्ता से दूरी कहीं अगले 20 बरस तक की न बन जाए।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

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