News Room Post

आखिर गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण पर कोहराम क्यूं मचा रहा विपक्ष !

ममता बनर्जी हों या तेजस्वी यादव, असदुद्दीन ओवैसी हों या डेरेक ओ ब्रायन, सबकी तकलीफ का कारण सिर्फ यही है कि चुनाव आयोग अब मतदाता सूची की सफाई करने चला है। ठीक उसी तरह जैसे शाम ढलते ही सियार हुंआ-हुंआ करने लगते हैं, वैसे ही बिना किसी बात के ही ये राजनीतिक सियार भी चुनाव से पहले ही मतदाता सूची पुनरीक्षण पर हुंआ-हुंआ करने लगे हैं

भारत निर्वाचन आयोग ने बिहार से शुरू करते हुए छह राज्यों में विशेष गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान की घोषणा की है। बिहार समेत छह राज्यों में चुनावों से पहले यह प्रक्रिया पूरी की जाएगी। आयोग ऐसा मतदाता सूची को अधिक सटीक और विश्वसनीय बनाने के लिए कर रहा है। ताकि फर्जी मतदाताओं को सूची से बाहर किया जा सके और चुनाव निष्पक्ष हों, लेकिन जैसे ही यह पहल आयोग ने शुरू की वैसे ही विपक्षी खेमे में बौखलाहट फैल गई क्यूं ? इस कदम का तो उन्हें स्वागत करना चाहिए था, लेकिन ऐसा हुआ नहीं।

यह वही विपक्ष है जो हर चुनाव के बाद निर्वाचन आयोग पर पक्षपात, साजिश और सरकार के इशारे पर काम करने जैसे आरोप मढ़ता है। हाल ही में राहुल गांधी ने महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों पर सवाल उठाए थे। अब जबकि आयोग स्वयं पहल कर रहा है कि हर नागरिक की पहचान स्पष्ट हो, मतदाता सूची शुद्ध हो, फर्जी नाम हटें और असली मतदाता ही अपने मताधिकार का प्रयोग करे तो विपक्षी नेताओं की सांसें फूलने लगी हैं।

तेजस्वी यादव कह रहे हैं कि इस प्रक्रिया से भाजपा—आरएसएस गरीबों का मतदान अधिकार छीनना चाहती है। क्या तेजस्वी यह मानते हैं कि गरीब व्यक्ति की पहचान नहीं हो सकती ? क्या उन्हें लगता है कि गरीबी का मतलब है कि व्यक्ति भारतीय नागरिक नहीं है ? ऐसे में तो वह गरीबों का अपमान कर रहे हैं। आयोग ने स्पष्ट कहा है कि जिनके पास जन्म प्रमाणपत्र नहीं है, वे अन्य मान्य दस्तावेजों से भी अपनी नागरिकता और जन्मतिथि प्रमाणित कर सकते हैं। लेकिन तेजस्वी यादव इस जनहित प्रक्रिया पर राजनीति कर रहे हैं।

असदुद्दीन ओवैसी कह रहे हैं कि इस प्रक्रिया का नतीजा ये होगा कि बिहार के गरीबों की बड़ी संख्या को वोटर लिस्ट से बाहर कर दिया जाएगा। ओवैसी बताएं यह कैसे संभव है। बाहर तो वही होगा जिसकी नागरिकता संदिग्ध है, और उसने फर्जी दस्तावेजों के आधार पर मतदाता सूची में नाम दर्ज कराया है, फिर चाहे वह गरीब हो या अमीर इससे क्या फर्क पड़ता है।

आयोग के अनुसार यदि कोई भारत का नागरिक है और उसकी उसकी जन्मतिथि 2 दिसंबर 2004 के बाद की है, तो उसे जन्म प्रमाण पत्र जमा करना होगा, यदि व्यक्ति का जन्म गांव में हुआ हो और उसके पास जन्म प्रमाण पत्र नहीं है और उसके माता—पिता का नाम सूची में है तो भी कोई परेशानी नहीं है।

इस मुद्दे पर सबसे ज्यादा आक्रोश ममता बनर्जी को है। उन्हें तो पहले से ही एनआरसी शब्द से घबराहट होती रही है। वह स्पष्ट कह भी चुकी हैं कि मैं किसी भी कीमत पर पश्चिम बंगाल में एनआरसी लागू नहीं होने दूंगी। अब जब यह विशेष पुनरीक्षण अभियान शुरू हुआ है, जोकि सिर्फ अवैध वोटरों की पहचान के लिए है, वह इसे एनआरसी से भी खतरनाक बता रही हैं। एनआरसी भी देश हित में होनी है और ये भी देशहित में ही हो रहा है, लेकिन ममता बनर्जी को इससे दिक्कत है क्यूं ? क्योंकि पश्चिम बंगाल ऐसा राज्य है जहां लाखों की संख्या में आकर बांग्लादेशी घुसपैठिए रह रहे हैं। इसको लेकर कई बार कितने ही सवाल उठ चुके हैं। ऐसे में संभवत: ममता बनर्जी को यह डर लग रहा होगा कि यदि उनके यहां पुनरीक्षण हुआ तो उनके वोट बैंक को करारा झटका लग सकता है। यही कारण है कि इस पर सवाल उठा रही हैं।

टीएमसी सांसद डेरेक ओ ब्रायन तो इस पूरी प्रक्रिया की तुलना नाजियों से कर रहे हैं। वह कह रहे हैं कि 1935 में जर्मनी में नाजियों ने भी ऐसा किया था। क्या डेरेक यह कहना चाहते हैं कि मतदाता सूची में जन्मतिथि और नागरिकता का प्रमाण मांगना ‘फासीवाद’’ है ? यदि ऐसा है तो पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, राशन कार्ड, बैंक अकाउंट खोलने के समय मांगे जाने वाले दस्तावेजों को भी ‘नाजियों की सोच’ कहा जाना चाहिए।

इससे पहले मतदाता सूची में सुधार के लिए गहन मतदाता सूची पुनरीक्षण 2003 में किया गया था, तब किसी को आपत्ति क्यों नहीं थी ? आज जब तकनीकी माध्यम से, आधार और जन्म प्रमाण जैसे दस्तावेजों के जरिए सूची को दुरुस्त किया जा रहा है तो विपक्षी नेताओं को दर्द क्यों हो रहा है ?

जबकि चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया है कि जिनका नाम 2003 से पहले की सूची में है, उन्हें केवल सत्यापन ही कराना होगा। जो मतदाता 2003 के बाद जोड़े गए हैं, उन्हें अपनी नागरिकता और जन्मतिथि का प्रमाण देना होगा। वह भी अनेक प्रकार के दस्तावेजों के विकल्प के साथ। 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे नागरिकों को जन्म प्रमाणपत्र देना अनिवार्य होगा — जो पूरी तरह तार्किक है क्योंकि उस उम्र के नागरिक पहली बार वोटर बनने जा रहे हैं।

क्या चुनाव आयोग अपनी ड्यूटी पूरी न करे ? क्या आयोग मतदाता सूची में फर्जी नामों की भरमार रहने दे ? किसी भी लोकतंत्र के लिए मतदाताओं का निष्पक्ष होना सबसे ज्यादा जरूरी होता है। भारत जैसे बड़े देश में, जहां दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है, वहां घुसपैठियों के होने से इंकार नहीं किया जा सकता। आए दिन विभिन्न राज्यों में घुसपैठिए पकड़े जा रहे हैं। ऐसे में यह कदम उठाया जाना बेहद जरूरी है, लेकिन विपक्ष पहले से ही हाए—तौबा मचाने में लगा है। यह ठीक उसी तरह है जैसे जैसे शाम ढलते ही सियार हुंआ-हुंआ करने लगते हैं, वैसे ही चुनावों से पहले ये राजनीतिक सियार भी बिना किसी बात के ही हुंआ-हुंआ करने लगे हैं। इनके शोर से यह और स्पष्ट होता है कि सफाई किया जाना बेहद जरूरी है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

Exit mobile version