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जिन लोगों के बयानों को परोसकर दुश्मन देश अपने एजेंडे की तरह इस्तेमाल करता है, ऐसे लोगों पर कार्रवाई क्यूं न हो !

पाकिस्तान ने घुटने टेके लेकिन देश के अंदर रहकर ऐसे बयान देकर जिनको दुश्मन अपने एजेंडे के तहत इस्तेमाल करे, ऐसा करने वाले तमाम लोगों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती

भारतीय सेना के पराक्रम के आगे पाकिस्तान ने घुटने टेक दिए। यह होना ही था, लेकिन पहलगाम आतंकी हमले के बाद देश में ही कुछ लोगों ने ऐसे बयान दिए जिनको पाकिस्तानी ने अपने एजेंडे के तहत प्रस्तुत किया। पहलगाम हमले के बाद जब भारत ने जवाबी कार्रवाई की तो पाकिस्तानी सेना ने अपने दावों के समर्थन में जिन चार लोगों के बयान पेश किए उनमें शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद महाराज, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, किसान नेता राकेश टिकैत और एजेंडाधारी लोक गायिका नेहा राठौड़ के बयानों मीडिया के सामने परोसा। पाकिस्तानी सेना ने कहा ये लोग भी तो भारतीय हैं, देखिए ये क्या कह रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 3.0 के अपने कार्यकाल में इस मामले में खरे उतरे, लेकिन देश के अंदर रहकर देश के लिए जहर उगलने वालों पर आखिर कब कार्रवाई होगी कि वे जब बोलें तो सोच—समझकर बोलें। बोलने की स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन जब स्वतंत्रता स्वछंद हो जाए और आपका शत्रु उसका प्रयोग आपके लिए ही करे तो अपराध की श्रेणी में आती है। ऐसे लोगों को क्षम्य नहीं किए जाना चाहिए। पाकिस्तानी सेना ने हमारे ही देश के कुछ लोगों के बयानों को हथियार बनाकर अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को कटघरे में खड़ा करने का प्रयास किया।

जिन चार लोगों के बयानों को पाकिस्तान ने अपने पक्ष में परोसा उनमें शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, किसान नेता राकेश टिकैत और वामपंथी एजेंडे से ओतप्रोत लोक गायिका नेहा राठौर शामिल हैं। पाकिस्तानी सेना ने बाकायदा कहा कि देखिए ये भी तो भारतीय हैं, ये क्या कह रहे हैं! जबकि सच सबको मालूम है। यह उदाहरण बताता है कि आपकी नाराजगी या असहमति में बोले गए कुछ शब्द भी दुश्मन के एजेंडे का हिस्सा बन सकते हैं। देश सबसे पहले है इससे बड़ा कुछ नहीं।

लोकतंत्र में बोलने का अधिकार है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आप जब चाहें, जैसा चाहें, देश के खिलाफ बोलें। पाकिस्तान ने इसी कमजोरी का फायदा उठाया। शंकराचार्य महाराज से अपेक्षा है कि वे अपने पद की गरिमा का स्मरण करें। जब देश पर संकट हो, तब समाज को एक करने का एकजुट करने प्रयास करें, न कि देश में हुई आतंकी घटना पर बोलें और कहें कि जब आपके घर में कुछ होता है तो आप किसको पकड़ते हैं सबसे पहले, चौकीदार को न, उनका इशारा साफ तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए था। आप पूज्य हैं, जिस पद पर हैं उसकी एक मर्यादा है। किसान नेता राकेश टिकैत ने पहलगाम हमले के बाद कहा था कि चोर तो यहीं हैं। यही बयान पाकिस्तान ने अपने पक्ष में पेश किया। क्या किसानों के मुद्दे उठाने के लिए राष्ट्रविरोधी बयान दिए जरूरी हैं? टिकैत जैसे नेताओं को आत्ममंथन करना चाहिए कि उनकी आवाज राष्ट्र विरोधी शक्तियों का उपकरण न बने।

नेहा राठौर और ध्रुव राठी जैसे वामपंथी कलाकार और यूट्यूबर यह भ्रम न पालें कि कला और विचार की स्वतंत्रता के नाम पर राष्ट्र की जड़ें खोदना क्षम्य होगा। ‘यूपी में काबा’ जैसे गीत और ‘सारे आतंकी हमले भाजपा के समय हुए’ जैसे बयान वर्तमान सरकार का विरोध करने वालों की तालियां तो बटोर सकते हैं, लेकिन जब ऐसे बयान आपका सबसे घोर शत्रु पाकिस्तान उन्हें अपने प्रोपेगेंडा का हिस्सा बनाता है तो अपराध बन जाता है। आपने ऐसा बयान दिया ही क्यूं। विरोध सरकार से हो सकता है, किसी के विचार से हो सकता है, लेकिन देश से तो विरोध नहीं हो सकता। ध्रुव राठी जैसे यूट्यूबर भारत में रहते तक नहीं, लेकिन उनके वीडियो पाकिस्तान में भारत के खिलाफ प्रयोग होते हैं। इनकी दुकानदारी को बंद किए जाना बेहद जरूरी है। लोकतंत्र की स्वतंत्रता का अर्थ राष्ट्र विरोधी प्रोपेगेंडा का लाइसेंस नहीं है।

मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे वरिष्ठ नेताओं से भी यही अपेक्षा है कि वे विपक्ष की भूमिका निभाएं, बखूबी निभाएं। उन्हें इसके लिए किसी ने नहीं रोका, लेकिन जब देश पर संकट हो, आतंकवादी हमला हुआ तो तब तो कम से कम ऐसा बयान न दें कि सिक्योरिटी की कमी थी, इसलिए हमला हुआ। जब 26/11 का मुंबई हमला हुआ तब क्या सिक्योरिटी की कमी नहीं थी। कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने तो ‘भगवा आतंकवाद’ की थ्योरी तक गढ़ दी थी। तत्कालीन कांग्रेस सरकार इतने बड़े आतंकी हमले के बाद भी चुप बैठी रही। कोई कार्रवाई पाकिस्तान के खिलाफ करने की हिम्मत नहीं उठाई। अब जबकि यह तीसरी बार है कि भारत ने, पहले उरी, फिर बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक की, अब पाकिस्तान में अंदर तक जाकर उसके आतंकी संगठनों के ठिकानों को नष्ट किया। ऐसे में कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता को इस तरह का बयान देना शोभा नहीं देता।

जब बात राष्ट्र की सुरक्षा की हो तो राजनीति नहीं, एकता अपेक्षित होती है। मतभेदों के भीतर भी मातृभूमि के प्रति निष्ठा होनी चाहिए। यह समझना जरूरी है कि पाकिस्तान जैसे आतंक प्रायोजक देश भारत की आंतरिक असहमति को अंतरराष्ट्रीय मंच पर हमारे खिलाफ पेश करने का हर प्रयास करता है। राष्ट्र धर्म यही कहता है कि जब बात देश की हो तो सब एक हो जाएं। ऐसे मौके पर बोले गए शब्द शत्रु का हथियार बन सकते हैं, इसलिए सोच-समझकर बोलना जरूरी है। हम दुश्मन को हमारे ही घर से हथियार मुहैया करा रहे हैं। इस विकृति को समाप्त करना राष्ट्रहित की पहली शर्त है।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

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