मुंबई। रतन टाटा का निधन हो गया है। इसके साथ ही अब ये चर्चा भी शुरू हो गई है कि रतन टाटा के बाद टाटा ग्रुप को कौन संभालेगा। रतन टाटा 2012 में टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद से हट गए थे, लेकिन उनको जीवन पर्यंत चेयरमैन का मानद पद मिला हुआ था। टाटा ग्रुप के दफ्तर भले ही रतन टाटा न जाते रहे हों, लेकिन कंपनी के हर फैसले पर अंतिम मुहर उनकी ही लगती थी। रतन टाटा ने टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद छोड़ने के बाद से ही अपनी कंपनी के भविष्य के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। खुद के बाद टाटा का कामकाज देखने के लिए वो सायरस मिस्त्री को भी लेकर आए, लेकिन उनसे विवाद हो गया। सायरस मिस्त्री को टाटा ग्रुप से हटाने के लिए रतन टाटा ने कानूनी लड़ाई भी लड़ी। रतन टाटा ने शादी नहीं की थी। हालांकि, उनके परिवार में और सदस्य भी हैं। माना जा रहा है कि रतन टाटा के इन्हीं रिश्तेदारों में से कोई अब टाटा ग्रुप की जिम्मेदारी संभालेगा।
रतन टाटा के सौतेले भाई का नाम नोएल टाटा है। उनके तीन बच्चे, लीया टाटा, नेविल टाटा और माया टाटा हैं। रतन टाटा के एक सगे भाई जिमी टाटा भी हैं। नोएल टाटा की बेटी माया टाटा कंपनी में ही कामकाज देखती हैं। वहीं, नेविल टाटा भी टाटा ग्रुप से ही जुड़े हैं। लीया टाटा भी टाटा ग्रुप में हैं। टाटा ग्रुप के इंडियन होटल्स का कारोबार देखन का जिम्मा लीया टाटा पर है। नोएल टाटा की भी काफी उम्र हो गई है। ऐसे में रतन टाटा के बाद ग्रुप की जिम्मेदारी शायद ही वो संभालें। बहुत संभावना है कि नेविल टाटा को ही टाटा संस और टाटा ट्रस्ट की जिम्मेदारी दी जाए। हालांकि, ये देखना होगा कि रतन टाटा ने इनमें से किसी को अपना उत्तराधिकारी बनाया है या नहीं। रतन टाटा की सोच ये रही है कि ग्रुप में अगर कोई बेहतर काम करता है, तो उसे बड़ी जिम्मेदारी जरूर दी जाए। इसी वजह से टाटा ग्रुप के चेयरमैन पद पर उन्होंने एन. चंद्रशेखर को बिठाया।
काम करने वाले हर कर्मचारी को रतन टाटा कितना पसंद करते थे, ये इसी से पता चलता है कि टाटा ग्रुप से जुड़े शांतनु नायडू को उन्होंने अपने साथ रखा। शांतनु नायडू को टाटा ग्रुप का सबसे युवा जनरल मैनेजर बनाया गया। रतन टाटा का सारा कामकाज देखने का जिम्मा शांतनु नायडू ही संभालते रहे। रतन टाटा खुद टाटा ग्रुप में सहायक के सामान्य ओहदे पर काम कर ग्रुप के चेयरमैन पद तक पहुंचे थे। रतन टाटा की नजर इतनी पारखी थी कि वो कर्मचारी को देखते ही समझ जाते थे कि उसमें कितना जज्बा और लगन है। इसके अलावा अलग-अलग बिजनेस में हाथ डालने से भी वो नहीं डरते थे। ऐसे में रतन टाटा की जगह अब जो भी ग्रुप को संभालेगा, उसमें ये सारी खूबियां होनी बहुत जरूरी होंगी। जिस तरह रतन टाटा ने ग्रुप के एकमात्र स्टील के बिजनेस से अलग-अलग क्षेत्रों में काम करने वाला बनाया, नए जिम्मेदार को भी ऐसा ही करते रहना होगा।