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Research: 8 महीने में कम हो जाती है Covishield वैक्सीन से शरीर में बनी एंटीबॉडी, KGMU के शोध में खुलासा

KGMU Lucknow

Research: 8 महीने में कम हो जाती है Covishield वैक्सीन से शरीर में बनी एंटीबॉडी, KGMU के शोध में खुलासा

antibodies reduced by 84 percent after 8 months of covishield vaccination says kgmu research

 

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लखनऊ। ये खबर कोरोना को रोकने के लिए बनी कोविशील्ड वैक्सीन से जुड़ी है। इस वैक्सीन पर लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी KGMU में एक रिसर्च हुई। इस रिसर्च से पता चला कि कोविशील्ड वैक्सीन लेने वालों के शरीर में एंटीबॉडी तो बनी, लेकिन महज 8 महीने में ही ये कम हो गईं। यानी टीका लगवाने के 8 महीने बाद 84 फीसदी तक एंटीबॉडी कम होती देखी गई हैं। इस रिसर्च से कोविशील्ड का कोरोना से जारी जंग में उपयोगिता पर सवाल खड़े हो रहे हैं। केजीएमयू ने अभी सिर्फ इसी वैक्सीन पर रिसर्च की है। अन्य वैक्सीन का क्या असर बाकी रहता है, इस पर रिसर्च होनी बाकी है। कोविशील्ड की एंटीबॉडी के स्तर की रिसर्च केजीएमयू के ब्लड ट्रांसफ्यूजन विभाग ने की है। इस विभाग की प्रमुख डॉ. तूलिका चंद्रा के मुताबिक एंटीबॉडी कम होना बताता है कि वक्त के साथ कोविशील्ड का असर कम हो जाता है। ऐसे में बूस्टर डोज की जरूरत है।

 

कोविशील्ड वैक्सीन पुणे के सीरम इंस्टीट्यूट ने ब्रिटेन की एस्ट्राजेनेका से लाइसेंस लेकर तैयार की है। इस कंपनी के प्रमुख अदार पूनावाला हैं। केजीएमयू में कोविशील्ड की एफिकेसी पर रिसर्च करने वालों के मुताबिक वैक्सीनेशन के बाद पिछले 8 महीने से वे सैंपल ले रहे थे। इस रिसर्च को 500 लोगों के सैंपल पर किया गया। पहले ग्रुप में 5 महीने पहले टीके की दोनों डोज ले चुके 200 लोग थे। इनमें पाया गया कि एंटीबॉडी का स्तर 42 फीसदी कम हो गया है। दूसरे ग्रुप में 200 लोगों को रखा गया, जिन्होंने 7 महीने पहले कोविशील्ड वैक्सीन लगवाई थी। इनमें से 12 फीसदी से ज्यादा लोगों में पाया गया कि एंटीबॉडी का स्तर शरीर में करीब शून्य के स्तर तक पहुंच गया है। वहीं, 100 लोगों के तीसरे ग्रुप में 8 महीने पहले वैक्सीन ले चुके लोगों को रखा गया। इनकी जांच से पता चला कि 25 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी शून्य या निगेटिव हैं। कुल मिलाकर एंटीबॉडी के कुल स्तर में 84 फीसदी की कमी का खुलासा इस रिसर्च में हुआ है।

केजीएमयू की रिसर्च कहती है कि वैक्सीन लेने के बाद ज्यादातर लोगों में 40 हजार तक एंटीबॉडी बनी। इसमें वक्त के साथ कमी आती गई। एंटीबॉडी अगर 50 या कम है, तो उसे निगेटिव माना जाता है। कई मामलों में ये स्तर 50 तक भी नहीं पहुंचा। बता दें कि लखनऊ और देश में ज्यादातर जगह लोगों को कोविशील्ड वैक्सीन ही लगाई जा रही है। बहुत कम तादाद में कोवैक्सीन और रूस में बनी स्पूतनिक वैक्सीन लग रही हैं। जिन लोगों पर रिसर्च की गई, उनमें से ज्यादातर केजीएमयू में ही काम करते हैं। अब इन सभी को बूस्टर डोज दिया जाने वाला है। जिसके बाद रिसर्च टीम इनके शरीर में एंटीबॉडी का स्तर फिर से जांचेगी।

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