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Book Review: ‘संघी हू नेवर वेंट टू अ शाखा’- राहुल रौशन की किताब के बारे में जानते हैं आप, यहां पढ़ें

Rahul Raushan Book Sanghi Who Never Went to a Shakha

नई दिल्ली। राहुल रौशन की किताब ‘संघी हू नेवर वेंट टू अ शाखा’ ने बाजार में आने से पहले ही बेस्टसेलर का खिताब हैसिल कर लिया। किताब की प्रतियां बाजार में आने से पहले ही अमेजन से आउट ऑफ स्टॉक दिखने लगी। लोगों को इस किताब के बारे में जानने की बड़ी जल्दी थी। वह जानना चाहते थे कि आखिर किताब में संघ के बारे में ऐसा क्या है जो एक संघ की शाखा में नहीं गए व्यक्ति की परिश्रम से कलम के जरिए संघ की सोच को पन्ने पर उकेरा गया है। लोग इस बात को भी जानना चाह रहे थे कि क्या संघ के खिलाफ जो विष बोया गया है। संघ का स्वरूप भी कुछ ऐसा ही है या उससे उलट संघ के शाखाओं की तस्वीर है। हालांकि संघ को जानने और समझने वाले भी संघ को पूरी तरह से समझने का दावा नहीं करते। लेकिन एक ऐसा लेखक जिसने संघ की शाखा नहीं देखी उसकी राय कभी भी एकतरफा नहीं होगी यह तो निश्चित था। ऐसे में इस किताब ने लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया।

राहुल रौशन व्यंग्य समाचार वेबसाइट- ‘द फेकिंग न्यूज़’ के संस्थापक और ऑपइंडिया के सीईओ हैं। यह उनकी कलम से शब्दों के जरिए कागज पर उकेरी गई पहली किताब है। यह किताब राहुल रौशन की अपनी यात्रा है। जिसमें यह स्पष्ट झलकता है कि एक व्यक्ति जो ‘संघी’ शब्द से ही नफ़रत करता था से लेकर गर्व करने तक से इस शब्द को किस-किस मायने से देखता रहा।


इस किताब का प्रकाशन रूपा पब्लिकेशन्स के द्वारा किया गया है। इस किताब में राहुल रौशन का वह पागलपन अपने काम के प्रति, हिंदुत्व को एक विचारधारा में अंगीकार करने के प्रति से लेकर संघी होने तक के पेचीदा यात्रा तक को उन्होंने बेहतरीन तरीके से साझा किया है। किताब को आधिकारिक तौर पर 10 मार्च को लॉन्च किया गया है। लेकिन इससे पहले ही किताब ने ऐसा कमाल किया कि किताब का संस्करण आउट ऑफ स्टॉक हो गया।

‘संघी हू नेवर वेंट टू अ शाखा’ इस किताब के शीर्षक से आप अंदाजा लगा चुके होंगे। किताब के लेखक राहुल रौशन की यह जीवन गाथा ही समझ लीजिए जो जो एक ‘हिंदू’ परिवार में पैदा हुआ। जिसके परिवार में समर्थन कांग्रेस का था, लेकिन समय के साथ विचारों में बदलाव ने राहुल को मोदी समर्थक ‘संघी’ बना दिया। मजे की बात है कि राहुल रौशन तब संघी सोच के धनी हो गए जबकि उन्होंने एक भी आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) की शाखा में हिस्सा नहीं लिया। राहुल अपने प्रारंभिक जीवन में कभी भी संघ या पीएम मोदी के प्रशंसक नहीं रहे उसके बाद भी उन्होंने जिस तरह से संघ को जाना समझा और शब्दों के जरिए उसकी आत्मा का जिक्र किया वह सच में आश्चर्य का विषय है।

यह एक लेखक के ‘वामपंथी’ से ‘संघी’ तक होने के संक्रमण काल की कहानी है। यह राहुल रौशन के भूत से वर्तमान और फिर आज के राजनीतिक इतिहास का एक सशक्त दस्तावेज है। वह भी एक ऐसा ‘संघी’ जिसकी यात्रा की शुरुआत एक पत्रकार के रूप में हुई, इस क्षेत्र में राहुल रौशन कोई नया नाम नहीं है। उनके दोनों संस्थान ‘द फेकिंग न्यूज़’ और ऑपइंडिया बेहतरीन काम कर रहे हैं। ऐसे में इस किताब को पढ़ने का अपना अनुभव है। जो संघ को बेहतर तरीके से जानना चाहते हैं वह राहुल रौशन की इस किताब ‘संघी हू नेवर वेंट टू अ शाखा’को पढ़कर समझ सकते हैं, जान सकते हैं।

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