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चुनाव में आसन्न हार देखकर ममता बनर्जी खो रहीं आपा

mamta abhishek

पहले हिंदू संतों और सेवा कार्य में जुटे मठों के खिलाफ बयान देना। फिर मामला को तूल पकड़ता देख बैकफुट पर जाकर बचाव की मुद्रा में आकर सफाई देना। यह पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए भारी पड़ने वाला है। हार सामने देख बौखलाहट में दिए गए इस बयान का खामियाजा ममता को इस लोकसभा चुनाव में तो भुगतना पड़ेगा ही, आगे भी यह बयान उनका पीछा नहीं छोड़ेगा।

ममता बनर्जी का मुस्लिम प्रेम तो जगजाहिर है। अपने बयानों से वह ऐसा जाहिर करती ही रहती हैं। अपनी राजनीति को बचाए रखने के लिए ममता दीदी ने हिंदू साधु संतों और मठों को लेकर जो बयान दिया, वह उन पर भारी पड़ने वाला है। अभी तक पांच चरणों में हुए लोकसभा चुनाव में स्पष्ट नजर आ रहा है कि बंगाल में भाजपा राज्य की 42 सीटों में से सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें जीतकर वहां सबसे बड़ा राजनैतिक दल बनने वाली है।

दरअसल ममता बनर्जी ने बली और आरामबाग की एक जनसभा में कहा था कि वह भारत सेवाश्रम संघ के प्रदीप्तानंद महाराज जिन्हें कार्तिक महाराज भी कहा जाता है उन्हें वह संत नहीं मानती हैं, क्योंकि वह दिल्ली के इशारे पर काम कर रहे हैं। वह भारत सेवाश्रम संघ का सम्मान भी नहीं करती हैं। इस बयान के बाद सेवाश्रम संघ ने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को कानूनी नोटिस भेजकर माफी मांगने की मांग की है।

बता दें कि भारत सेवाश्रम संघ की स्थापना 1917 में आचार्य प्रणवानंद जी महाराज ने की थी। संगठन के संन्यासी उन्हें शिव का अवतार मानते हैं। संस्था के लिए गुरु ही सर्वोच्च हैं। बाबा गंभीरनाथ के शिष्य रहे प्रणवानंद स्वतंत्रता आंदोलन में भी शामिल रहे। उनका जन्म बंगाल के बाजितपुर में हुआ था। यह इलाका अब बांग्लादेश का हिस्सा है। उनका पहला नाम बिनोद था। मठ के लोग मानते हैं कि बचपन में उनकी रुचि अध्यात्म में थी और वह घंटों साधना में लीन रहते थे। आगे चलकर उन्होंने 6 वर्ष तक नींद त्यागकर साधना की, फिर उन्हें दैवीय शक्ति हासिल हुई। फिर उन्होंने सनातन धर्म के सिद्धांतों के आधार पर संगठन की नींव रखी।

ममता ने रामकृष्ण मिशन और इस्कॉन को लेकर भी कुछ टिप्पणी की थी। बता दें कि रामकृष्ण मिशन के बंगाल में लाखों अनुयायी हैं। रामकृष्ण मिशन और शारदा मिशन द्वारा संचालित स्कूलों में लाखों छात्र भी पढ़ते हैं। पूरे बंगाल में इसका प्रभाव है। रामकृष्ण मिशन की स्थापना स्वामी विवेकानंद ने की थी।

ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी ने ऐसा बयान पहले भी दिया है। अपने बयानों से वह पहले भी हिंदू आस्था पर प्रहार कर चुकी हैं। राम मंदिर उद्घाटन के दिन कोलकाता में एक रैली को संबोधित करते हुए सीएम ममता बनर्जी ने विवादित बयान दिया था। उन्होंने तब कहा था कि हम हम निर्दोष लोगों के शवों पर बने पूजा स्थल को कैसे स्वीकार कर सकते हैं। इसके बाद ममता ने फिर इस तरह का बयान दिया है। कोलकाता हाईकोर्ट में वकालत करने वाले अधिवक्ता राजर्षि हलधर ने कहा कि ममता बनर्जी बौखला कर जिस तरह के बयान दे रही हैं, इसका जवाब जनता उन्हें वोट से देगी। इस बयानों से आस्था पर चोट पहुंचती है। बंगाली मानुष को भद्रलोक कहा जाता है वह भूलता नहीं याद रखता है। पश्चिम बंगाल में भी 15 सीटें और बची हैं जिन पर चुनाव होना है। ममता बनर्जी को जनता जवाब जरूर देगी। यह बयान ममता बनर्जी पर निश्चित ही भारी पड़ने वाला है।

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो इस तरह के बयान ममता बनर्जी की बौखलाहट का नतीजा हैं। मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करना ममता बनर्जी का पहले से शगल रहा है। इस बार पश्चिम बंगाल के नतीजे चौंकाने वाले रहने वाले हैं। 2019 के चुनाव में 42 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य में तृणमूल कांग्रेस को 22 सीटें मिली थीं। वहीं कांग्रेस पार्टी केवल दो सीटों पर सिमट कर रह गई थी। जबकि 2014 में दो सीटें जीतने वाली भाजपा ने यहां पर 18 सीटें जीती थीं। इस बार भाजपा 2019 के मुकाबले कहीं ज्यादा सीट जीतने वाली है। माना तो यह भी जा रहा है कि भाजपा पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा लोकसभा सीटें जीतेगी और तृणमूल कांग्रेस को काफी पीछे छोड़ देगी। बाकी पार्टियों के यहां पर खाता खुलने की भी गुंजाइश नजर नहीं आ रही हैं।

डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।

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