कांग्रेस समेत इंडी गठबंधन के जो दल लोकतंत्र बचाने की दुहाई देकर भाजपा पर संविधान बदलने और आरक्षण खत्म करने का आरोप लगा रहे हैं। दरअसल वह खुद ऐसा कर रहे हैं। पिछड़ों का हक मार रहे हैं। उनका मकसद सिर्फ जनता को बरगलाना और हर सूरत में सत्ता हासिल करना ही नजर आता है। इंडी गठबंधन की जहां जहां भी सरकारें हैं, वहां पर ओबीसी को आरक्षण देने नाम पर उनके आरक्षण को मुस्लिमों में बांटा जा रहा है। कोलकाता उच्च न्यायालय ने पश्चिम बंगाल में 2010 के बाद जारी ओबीसी प्रमाण पत्रों को रद्द कर दिया है। न्यायमूर्ति तपब्रत चक्रवर्ती और न्यायमूर्ति राजशेखर मंथा की पीठ ने कहा कि राजनीतिक उद्देश्य के लिए मुसलमानों की कुछ जातियों को ओबीसी में शामिल कर उन्हें आरक्षण दिया गया, जो लोकतंत्र और पूरे समुदाय का अपमान है।
ऐसा सिर्फ ममता बनर्जी ही नहीं कर रही बल्कि इंडी गठबंधन में शामिल अधिकतर दल ऐसा ही कर रहे हैं। जहां —जहां भी इंडी गठबंधन की सरकारें हैं वहां पर ऐसा किया जा रहा है। कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है। यहां पर 32% ओबीसी कोटा के भीतर मुस्लिमों को 4% उप-कोटा मिला हुआ है। केरल में वामपंथी सरकार है यहां पर भी 30% ओबीसी कोटे में 12% मुस्लिम कोटा है। तमिलनाडु में मुसलमानों को 3.5% आरक्षण दिया जा रहा है। मुसलमानों में जाति के आधार पर कुछ मुस्लिम जातियों को आरक्षण का लाभ दिया जाता है, लेकिन यहां पर तमाम नियम और कायदों को ताक पर रखकर वोट बैंक की राजनीति के लिए ओबीसी कोटे को मुस्लिमों में बांटा जा रहा है। तमिलनाडु में इस कोटे में मुसलमानों की 95% जातियां को रखा गया है।
तेलंगाना में भी कांग्रेस सरकार है। यहां पर भी ओबीसी कोटे के तहत मुस्लिमों को चार प्रतिशत आरक्षण दिया जा रहा है। इस तरह बिहार में जब नीतीश के साथ मिलकर राजद ने सरकार बनाई तो वहां पर बिहार में मुसलमानों की कुछ जातियों को ‘अति पिछड़ा वर्ग’ में शामिल किया गया था। बता दें अति पिछड़ा वर्ग में शामिल जातियों और उपजातियों को 18 फीसदी आरक्षण दिया जाता है। बिहार के जातिगत सर्वे में 73 फीसदी मुसलमानों को ‘पिछड़ा वर्ग’ माना गया था। मंशा यहां भी साफ है कि यदि सत्ता में आए तो ओबीसी का आरक्षण खाकर उसे वोट बैंक की राजनीति के लिए मुस्लिमों में बांट दिया जाएगा।
यदि भारत के संविधान की बात करें तो संविधान में समानता की बात की गई है। इसलिए देश में मुसलमानों को धार्मिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जाता है। संविधान का आर्टिकल 341 और 1950 का प्रेसिडेंशियल ऑर्डर धार्मिक आधार पर आरक्षण की व्याख्या करता है। देश में जातियों के आधार पर मिलने वाले आरक्षण के तहत, अनुसूचित जाति में सिर्फ हिंदू ही शामिल हो सकते हैं। हालांकि 1956 में सिख और 1990 में बौद्ध धर्म के लोगों को भी इसमें शामिल कर दिया गया। मुसलमान और ईसाई इस कैटेगरी में आरक्षण नहीं ले सकते हैं। बावजूद इसके ऐसा किया गया।
आरोपों की राजनीति कर रही कांग्रेस जब सत्ता में थी तो सच्चर कमेटी और रंगनाथ मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट के माध्यम से अपना एजेंडा पूरा करना चाहती थी। कमेटी की रिपोर्ट में कहा गया था कि मुस्लिम समुदाय पिछड़ा हुआ है। रंगनाथ मिश्रा कमेटी ने तो अल्पसंख्यकों के लिए 15 प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही थी जिसमें 10 प्रतिशत मुसलमानों के लिए था। ये बात दीगर है यह लागू नहीं हो पाया, लेकिन यह सोचने वाली बात है यदि ऐसा होता तो क्या होता ? वास्तव में पिछड़ों को अग्रिम श्रेणी में लाने के लिए आरक्षण की जो व्यवस्था की गई है उनका हिस्सा मुस्लिम तुष्टीकरण और वोट बैंक की राजनीति के लिए बांट दिया जाता। ऐसा ही प्रयास इस बार भी हो रहा है। भाजपा के सत्ता में आने पर जो भी दल आरक्षण खत्म कर दिए जाने की बात बोलकर जनता को बरगला रहे हैं, वह खुद पिछड़ों का हक मार रहे हैं।
डिस्कलेमर: उपरोक्त विचार लेखक के निजी विचार हैं ।