नई दिल्ली। गुलमोहर ! क्या है ये गुलमोहर ? कैसा होता है गुलमोहर ? कहां है गुलमोहर ? ये सारे सवाल हो सकता है आपके दिमाग में भी चलते हों। मेरे दिमाग में भी चलते थे। दिल्ली की सड़कों और दिल्ली जैसी अन्य सड़कों पर आपको गुलमोहर के पेड़ देखने को मिल जाते हैं। लेकिन इन गुलमोहर के पेड़ों पर किसी का भी ध्यान नहीं जाता है। हालांकि इस गुलमोहर फिल्म पर आपका ध्यान जरूर जाएगा। क्योंकि इस फिल्म में मौजूदा दौर के समझदार एक्टर मनोज बाजपेयी ने काम किया है। मनोज बाजपेयी के अलावा इस फिल्म में हैं, शर्मिला टैगोर, सिमरन, सूरज शर्मा और अमोल पालेकर। इस फिल्म की कहानी अर्पिता मुखर्जी की है लेकिन अर्पिता के साथ में राहुल चित्तेला ने फिल्म की पटकथा को लिखा है, और उन्होंने ही फिल्म को डायरेक्ट भी किया है। यहां हम आपको फिल्म के बारे में बताएंगे कि आपको ये फिल्म देखनी चाहिए या नहीं।
ज्यादा समय न बताते हुए आपको बता दें फिल्म का नाम बहुत खूबसूरत है और उतनी ही खूबसूरत है ये फिल्म। इसके अलावा अगर आप इमोशन को महसूस करना चाहते हों। एंटरटेनमेंट की दुनिया से कोसों दूर हटकर सिर्फ कुछ देर के लिए एक एहसास को महसूस करना चाहते हों। या फिर अगर आप परिवार के बीच चल रही दूरियों की वजह को समझना चाहते हों तब आप इस फिल्म को देख सकते हैं। इस फिल्म में आपको एक बड़े से परिवार की कहानी देखने को मिलती है, जो टूटने वाला है। फिल्म की शुरुआत में जब आप इस गुलमोहर विला के परिवार से रूबरू होते हैं और आपको पता चलता है कि इस परिवार के टूटने से पहले ही इस परिवार के लोग लगभग टूट चुके हैं। जैसे गुलमोहर के पेड़ को देखकर आपको ठंडक का एहसास होता है वैसा ही कुछ एहसास देती है ये फिल्म भी।
राहुल चित्तेला का डायरेक्शन और अर्पिता मुखर्जी की कहानी ने कमाल का असर छोड़ा है, दोनों ने ही हर एक मोमेंट को आपके अंदर भरने का काम किया है। आप हर एक सीन को एन्जॉय करते हैं और फिल्म को चाहकर भी फ़ास्ट फॉरवर्ड नहीं कर पाते हैं, क्योंकि आपके अंदर ये प्रश्न होता है कि आगे क्या होगा ? हां अगर राहुल दिल्ली के खूबसूरत दृश्यों को, गुलमोहर के पेड़ों को और एक्स्प्लोर करते तो शायद और अच्छा होता। अर्पिता मुखर्जी की कहानी और पटकथा भी अच्छी है। उनकी इस पटकथा में गहराई है लेकिन कुछ जगहों पर आपको फिल्म की पटकथा से आपत्ति भी हो सकती है। फिल्म आज की जेनरेशन को “आजादी” जैसे टर्म से रूबरू कराती है। एक सीन के माध्यम से फिल्म में दो लड़कियों को आपस में प्यार करने का सीन दिखाया गया है और जिसे “आजादी” का नाम दिया गया है। इस सीन में कुछ गलत नहीं है लेकिन इससे एक लेखक की विचारधारा का परिचय होने लगता है। फिल्म लेखक के लिए हमेशा कहा जाता है कि आप अपनी विचारधारा से हटकर दोनों पक्षों को दिखाएं वो ही बेहतर है।
विचारधारा से जुड़ी समस्या फिल्म में सिर्फ इसी जगह पर नहीं बल्कि कई जगह पर है। ये किसी को अच्छी लग सकती है और किसी को खराब भी। इस कहानी को आप देख सकते हैं लेकिन क्या ये कहानी आपको जरूर देखनी चाहिए ऐसा कहना मैं उचित नहीं समझता। ओटीटी पर फिल्म मौजूद है आप जब दिल चाहें तब इसे देख सकते हैं लेकिन इतना ध्यान रहे जब भी आप इसे देखें तो समय निकालकर देखें। क्योंकि ये फिल्म कोई ऐसी फिल्म नहीं है जिसे आप सिर्फ आंखो से देख सकते हैं बल्कि ये एक ऐसी फिल्म है जिसके एहसास को आपको महसूस करना होगा। ये वो फिल्म है जो आपको अपने वर्ल्ड से जोड़ना चाहेगी और आपको भी उस वर्ल्ड से जुड़ने के लिए उस एहसास को महसूस करना होगा।
फिल्म में आपसी परिवारों के बीच होने वाली उलझने देखने को मिलती हैं|अगर आप भी वैसी उलझनों और दुश्वारियों को महसूस करते हैं तो आपको फिल्म पसंद आएगी। फिल्म का डायरेक्शन, सिनेमेटोग्राफी, लेखन और किरदारों की भूमिका अच्छी है। मनोज बाजपेयी ने एक अलग तरह का किरदार निभाया है और उस किरदार से उन्होंने आप पर छाप छोड़ी है। लेकिन क्या आप उनके किरदार को या इस फिल्म के किसी भी किरदार को खुद के साथ ले जा पाते हैं, तो ऐसा मुझे नहीं लगता है। सूरज शर्मा उभरते हुए कलाकार हैं, काम अच्छा किया है उम्मीद है जारी रखेंगे। जब भी काम करेंगे उस पटकथा को महसूस करेंगे। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूसिक भी अच्छा है जो आपको पटकथा के साथ चलाता है।
ओवरऑल फिल्म देखी जा सकती है लेकिन इसे और अच्छा होना चाहिए था | क्यूंकि आखिरी में क्लाइमैक्स में अचानक से सब अच्छा हो जाता है। ऐसा लगता है फिल्म को खत्म करने की जल्दी थी। इस फिल्म के आगे और भी पार्ट बनाए जा सकते हैं और बनाए जाएं तो आदमी देखना भी चाहेगा। हालांकि ये कहानी फैमली मैन की तरह सभी को बेहद पसंद आए, ऐसा नहीं है। ये फिल्म आपको बहुत कुछ सीखा कर जाए या अंत में कुछ देकर जाए, ऐसा भी नहीं है। लेकिन हां फिर भी आप इस कहानी को सुन सकते हैं आपके समय की इन्वेस्टमेंट कोई गलत जगह नहीं होगा। हमारी तरफ से फिल्म को 3 स्टार।