नई दिल्ली। फ़ोन भूत (Phone Bhoot) फिल्म सिनेमाघर में लग चुकी है और यहां हम आपके लिए इस फिल्म का रिव्यू (Phone Bhoot Movie Review) लेकर हाज़िर हैं। इस फिल्म में आपको दिखने वाले हैं कटरीना कैफ (Katrina Kaif), सिद्धान्त चतुर्वेदी (Siddhant Chaturvedi) और ईशान खट्टर (Ishaan Khatter)। फिल्म का निर्देशन गुरम्मीत सिंह (Gurmmeet Singh) ने किया है। इसके अलावा रवि शंकरन (Ravi Shankaran) ने इस फिल्म की पटकथा लिखी है। फिल्म को प्रोड्यूस रितेश सिधवानी (Ritesh Sidhwani) और फरहान अख्तर (Farhan Akhtar) ने किया है। फिल्म का छायांकन के यू मोहनन (K U Mohnan) ने किया है। इसके अलावा फिल्म का सम्पादन मनन आश्विन मेहता (Manan Ashwin Mehta) ने किया है। फ़ोन भूत एक हिंदी भाषा में बनी हॉरर कॉमेडी फिल्म है जिसे आज यानी 4 नवम्बर को रिलीज़ किया गया है। यहां हम आपके लिए इस फिल्म की समीक्षा (Film Review) करेंगे, फिल्म के कुछ अच्छे बिंदुओं और बुरे बिंदुओं के बारे में बताएंगे जिससे कि आप ये तय कर सकें कि आखिर आपको ये फिल्म देखनी चाहिए या फिर नहीं। तो चलिए शुरू करते हैं फिल्म फ़ोन भूत का रिव्यू (Phone Bhoot Movie Review)।
किरदारों की भूमिका
कटरीना कैफ फिल्म में भूतनी के किरदार में हैं जिनका नाम रागिनी है। ईशान खट्टर और सिद्धांत चतुर्वेदी गुल्लू और मेजर के किरदार में हैं और दोनों बेहद ख़ास दोस्त भी हैं। फिल्म में आपको अंत में जैकी श्रॉफ भी देखने को मिलते हैं जिनका नाम आत्माराम है और वो भूतों के आका बने हुए हैं। इसके अलावा शीबा चड्ढा और निधि बिष्ट ने भी अपने अपने किरदार निभाए हैं।
क्या है कहानी
कहानी बड़ी उलझी हुई है। कहानी अपना एक निश्चित लक्ष्य लेकर नहीं चलती है। दो लड़के हैं जो वेल्ले हैं और ख़ास दोस्त हैं। उनकी जिंदगी में करने के लिए कुछ नहीं है तो उनकी दिलचस्पी भूतों में है। आम तौर पर लोग भूत को देखकर डर जाते हैं पर ये लड़के भूत से डरते नहीं हैं बल्कि उन्हें मोक्ष दिलाने का काम करते हैं। इन दोनों लड़कों के ऊपर कमांड करती हैं रागिनी। जैसा की मैंने बताया गुल्लू और मेजर दोनों जिगरी दोस्त हैं और दोनों वेल्ले भी हैं। पापा के पैसे से ऐश करते हैं लेकिन अब दोनों के अप्पा ने पैसे देने बंद कर दिए हैं| ऊपर से अभी तक के खर्चे का 5 करोड़ रूपये अलग मांग लिया है। दोनों ही लड़के अपने-अपने पिता को 5 करोड़ रूपये कमा कर देने का एलान कर देते हैं| लेकिन कमाएंगे कैसे ? इनके पास तो दूधवाले के पैसे चुकाने के पैसे नहीं हैं।
ऐसे में रागिनी इन्हें बताती हैं कि ये दोनों भूत को भगाने का काम करे लें और उसके लिए लोगों से भूत भगाने का पैसे ले लें। ये उस काम चुन लेते हैं। पहले अकेले करते हैं फिर धीरे धीरे रागिनी भी साथ हो लेती है। लेकिन इन लोगों को पैसे कमाने हैं ऐसे में एक भूतनी यानी रागिनी इनकी मदद क्यों कर रही है। वो इसलिए क्योंकि रागिनी की अपनी लम्बी कहानी है। ये तीनों मिलकर औरों के भूत को भगाने और मोक्ष दिलाने का काम करते हैं और अंत में गुल्लू और मेजर रागिनी को भी मोक्ष दिलाते हैं, लेकिन खुद खाली हाथ रह जाते हैं।
कैसी है कहानी
मैंने आपको ऊपर कहानी के बारे में बताया है, आप तो वहीं से तय कर सकते हैं कि कहानी कैसी है। ऐसी ही है कहानी, “उलझी हुई”। कहीं के पेंचे, कहीं लड़ रहे हैं। पटकथा का कनेक्शन एक छोर से दूसरे छोर तक बिल्कुल भी नहीं है। संवाद और किरदार साथ ले जाने वाले बिल्कुल भी नहीं है। हां है तो थोड़ा बहुत – एंटरटेनमेंट। लेकिन क्या ये सब काफी है ? चलिए बिंदुवार फिल्म के बारे में बता देते हैं और आप खुद तय कर लीजिए कि क्या फिल्म देखने लायक है या नहीं।
- जब आप सिनेमाघर में अपनी सीट पर बैठते हैं तो भले ही थोड़ा सा उत्साहित हों लेकिन शुरुआत के कॉमेडी संवाद आपको उतना हंसा नहीं पाते हैं।
- एक जगह रागिनी यानी कटरीना, गुल्लू और मेजर को बताती हैं कि वो भूत हैं। ये सुनकर गुल्लू और मेजर हंसने लगते हैं और साथ में आपको भी हंसी आने लगती है| फिल्म के संवाद और दृश्य पर नहीं, बल्कि पटकथा पर।
- शुरुआत में दो से तीन बार आपका ध्यान स्क्रीन से हटता है और पटकथा लिखने वाले पर गुस्सा भी आता है कि आखिर इस तरह की फिल्म क्यों बनाई, इस तरह का लेखन क्यों लिखा ?
- थोड़ी देर बाद फिल्म की कहानी थोड़ा सा ध्यान खींचने लगती है जब पता चलता है कि ये दोनों लड़के अब भूत पकड़ने का काम करेंगे। भूत पकड़ने का काम, ये सुनकर ऐसी ही हंसी आ जाती है। लेकिन जब ये लड़के भूत पकड़ने के लिए जाते हैं और किसी के अंदर से भूत निकालने के लिए जाते हैं, उसके बाद के सीन ड्रामा और कॉमेडी बनाते हैं और आप कुछ देर के लिए हंसते है।
- फिल्म में एक जगह फुकरे मूवी की कास्ट भी आपको देखने को मिलती है और जब ये वाला सीन आता है तो आप अपने आप हंस देते हैं।
- भूत को भगाने के लिए जिस तरह के कॉस्ट्यूम तीनों किरदार पहनते हैं वो दिलचस्प और नये प्रयोग लगते हैं।
- फिल्म थोड़ी देर अपने विज़ुअल्स और कॉमेडी के सहारे आपको पकड़ कर भी रखती है।
- एक जगह कमरे में गुल्लू और मेजर एक बच्ची के भूत को भगाने जाते हैं। उस बच्ची के अंदर तमिलियन भूत घुसा होता है उस भूत को गुल्लू रजनीकांत की फोटो दिखाकर शांत करता है। इस दृश्य में आपका हंसना लाजमी है।
- फिल्म बीच में कुछ जगह पर थोड़ा इमोशनल करती है। जो भी भूत भगाने वाले सीन हैं और उन भूत की जो कहानी है कि वो क्यों भूत लोगों में घुसे हैं अपनी कहानी जब भूत बताते हैं तो थोड़ा इमोशनल पार्ट भी आपको देखने को मिलता है।
- फिल्म का पहला हॉफ कुछ कॉमेडी और कुछ कमजोर पटकथा के साथ खत्म हो जाता है लेकिन दूसरे हॉफ में फिल्म में न कॉमेडी होती है और न ही कोई भावनात्मक पल। बल्कि फिल्म के दूसरे भाग में कुछ भी, कहीं भी, बिना सिर पांव के हो रहा होता है।
- कहानी में भिड़ू यानी जैकी दा का भी अच्छा खासा इस्तेमाल है लेकिन उनके साथ न्याय देखने को नहीं मिलता है। कभी कभी ऐसे लगता है आखिर क्या सोचकर जैकी दा ने फिल्म के लिए हां की है।
- फिल्म बहुत सी चीज़ों की मिलावटी कहानी है। जिसमें कभी ख़ुशी कभी गम, मैं निकला गड्ड लेकर और हीरोपंती का बैकग्राउंड स्कोर भी है। मीम मटेरियल भी है। ओएलएक्स के विज्ञापन का भी प्रयोग है। इस हिसाब से फिल्म एक मीम मटेरियल लगने लगती है।
- फिल्म का दूसरे भाग में आपको नींद भी आती है आपको फिल्म छोड़कर निकल जाने का भी दिल करता है और एक बार फिर मेकर्स पर गुस्सा आता है कि आखिर क्यों ये फिल्म बनाई गई।
अगर आप मीम मटेरियल के शौकीन हैं और आपको अपने 2 घंटे 15 मिनट किसी मीम मटेरियल जैसी पटकथा को देने में कोई गुरेज़ नहीं है तो आप ये फिल्म देख सकते हैं। फिल्म में आपको कॉमेडी मिलेगी, जिस पर लोटपोट तो नहीं होंगे लेकिन हां पॉपकॉर्न खाते-खाते हंसते रहेंगे। अगर आप घर में बैठे ऊब रहे हैं करने के लिए कुछ नहीं है तो इस फिल्म को देख सकते हैं कुछ देर आपका टाइमपास हो जाएगा। अगर आपके बच्चे आपको परेशान कर रहे हैं तो उन्हें ये फिल्म दिखा सकते हैं क्योंकि उसके बाद बच्चे इस फिल्म में और इस फिल्म की कॉमेडी में खो जायेंगे और आप सिनेमाघर की कुर्सी पर थोड़ी सी नींद भी मार सकते हैं।
वैसे तो फिल्म के चंद संवाद हमेशा आपके हवाले करता हूं लेकिन इसमें ऐसे कोई संवाद हैं ही नहीं, जो आपने सुना न हो। ज्यादातर कॉमेडी डायलॉग तो मीम के रूप में अक्सर आपके सामने आ ही जाते हैं, बस वैसे ही संवाद का प्रयोग फिल्म में है। इस फिल्म को मेरी तरफ से मिलते हैं 2 सितारे, वो भी बहुत खींचतान के बाद। इस फिल्म में कटरीना कैफ, सिद्धांत चर्तुवेदी, ईशान खट्टर और प्रोड्यूसर रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर जैसे नाम तो बड़े हैं लेकिन फिल्म देखने पर आपको पता चलता है असल में ये फिल्म “नाम बड़े और दर्शन छोटे” जैसे मुहावरे पर फिट बैठती है।