नई दिल्ली। सिंघम 3 थिएटर में रिलीज़ कर दी गई है। फ़िल्म को लेकर काफ़ी बज बनाया गया था। रोहित शेट्टी शुरू से ही इस फ़िल्म को एवेंजर्स यूनिवर्स की तरह अपनी कॉप यूनिवर्स कहकर परोसते आये हैं। वो अलग बात है कि फ़िल्म एवेंजर्स का सस्ता वर्जन भी नहीं बन पाती है। सिंघम जब आयी थी तो इसमें काफ़ी नया और यूनिक कॉन्सेप्ट था जिसने लोगों को सीटियां बजाने पर मजबूर किया था। लेकिन जैसे-जैसे रोहित इसके सिक्वल्स बनाते गये उन्होंने अपना सारा ध्यान बस गाड़ियां उड़ाने और बड़े-बड़े हीरोज़ से अपनी ही फ़िल्मों के कॉपिड एक्शन सीक्वेंस करवाने में लगाया। इस कश्मकश में वो फ़िल्म की कहानियों पर ध्यान नहीं दे पाये। तो चलिए सबसे पहले बात करते हैं फ़िल्म की कहानी की…
कैसी है कहानी!
सिंघम अगेन में अक्षय कुमार, रणवीर सिंह जैसे स्टार्स की लार्जर देन लाइफ एंट्री करवाने के चक्कर में रोहित ने फ़िल्म की कहानी में बिलकुल माथा नहीं लगाया और उठा-पुठा के रामायण की कहानी को कलयुग की रामायण कह कर जनता को बेच दिया है। पर्दे पर एक तरफ़ रामलीला चलाना और उसी की तर्ज़ पर फ़िल्म की कहानी का आगे बढ़ना ये डिटो कॉपी पेस्ट रोहित की फ़िल्म की नैया को ले डूबा। अब रोहित भाई जनता इतनी भी बेवक़ूफ़ तो नहीं है। ख़ैर बहरहाल, स्क्रीनप्ले ग्रिपिंग है और कुछ डायलॉग्स भी अच्छे हैं मगर ऐसा कुछ नहीं है जो थिएटर से निकलने के बाद आपको याद रह जाये।
एक्टिंग:
कहानी के बाद बात करें एक्टिंग की तो अजय देवगन OG सिंघम हैं ये उन्हें कहीं साबित करने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन इस बार उनके सामने जो खलनायक हैं वो अर्जुन कपूर हैं और कहना पड़ेगा कि ये एक अच्छा मौक़ा था अर्जुन के पास ख़ुद को साबित करने का जहां वो बुरी तरह फेल हुए हैं। फ़िल्म में उनका किरदार डेंजर लंका उर्फ़ ज़ुबैर का है जिसे ना ही जिहाद से मतलब है धर्म से ये बस अपने बाप – दादा का बदला लेने आया है और इसी चक्कर में ये सिंघम की बीवी अवनी यानी करीना को किडनैप कर लेता है। जहां एक तरफ़ आपने सिंघम के पहले और दूसरे भाग में प्रकाश राज और सोनू सूद जैसे खलनायकों को देखा था जिन्होंने नायक को कड़ी टक्कर दी थी। वहीं अर्जुन इस फ़िल्म में बतौर खलनायक कहीं भी ना डरावने लगे ना ही उनके एक्सप्रेशन में वो बात नज़र आई। फर्स्ट हाफ में फिर भी उन्होंने डर क़ायम करने की थोड़ी कोशिस की लेकिन सेकेंड हाफ़ में उन्हें पूरी तरह कॉर्नर किया गया। क्लाइमेक्स में भी उनका एंड बहुत ही बेचारगी से किया गया है। जिस तरह से फ़िल्म में अर्जुन के किरदार को बिल्डअप दिया गया था उस हिसाब से उनका एंड काफ़ी निराशाजनक था।
बाक़ी एक्टर्स में करीना अच्छी लगीं। टाइगर के पास करने को कुछ था नहीं हां उनके स्टंट सींस भले थोड़े यूनिक थे। दीपिका का स्क्रीन टाइम काफ़ी कम था और सच पूछिए तो उनके कैरेक्टर की ज़रूरत भी नहीं थी। ऊपर से ज़बरदस्ती दीपिका से साउथ के एक्सेंट में हिन्दी बुलवाना एक बुरा एक्सपेरिमेंट था। हां रणवीर सिंह की एंट्री ने फ़िल्म के ग्राफ़ को थोड़ा लेवल अप ज़रूर किया। उनकी एक्टिंग और कॉमेडी दोनों एंटरटेन करती है। लेकिन एक वक़्त के बाद वो भी ओवरेक्टिंग लगने लगती है। अक्षय कुमार के कैमियो वाली एंट्री बेहद शानदार है जिसपर तलीयां बजाई जा सकती है। लेकिन एक बुरी कहानी और रिपीटेड स्टंट के पीछे उनकी ये मेहनत बेकार चली जाती है।
बैकग्राउंड स्कोर:
रोहित शेट्टी ने हिन्दुइज्म और भारत-पाकिस्तान के मुद्दे को भुनाते हुई बहती गंगा में हाथ धोये हैं। फ़िल्म में ज़बरदस्ती शिव तांडव जैसे स्रोत घुसेड़े गये हैं। फ़िल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक और अच्छा हो सकता था इससे सिंघम वाली बात नहीं आती।
देखें या ना देखें :
ओवरऑल सिंघम अगेन रोहित शेट्टी की ही पुरानी फिल्मों का कॉपी पेस्ट है जिसे बस नये पैकेट में थोड़ा चमकीला और लाउड बनाकर परोसा गया है। अगर आप भी मसाला फ़िल्मों के शौक़ीन हैं तो ये फ़िल्म देख सकते हैं बिना ज़्यादा माथा लगाए।