नई दिल्ली। सिंघम और गोलमाल जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों के निर्माता रोहित शेट्टी की मच अवेटेड डेब्यू वेब सीरीज ”इंडियन पुलिस फ़ोर्स” OTT प्लेटफार्म अमेजन प्राइम पर रिलीज की जा चुकी है। रोहित शेट्टी की पिछली फिल्म ”सूर्यवंशी” कई लोगों को काफी बोर और लंबी लगी थी। अब प्लॉट ट्विस्ट ये है कि भौकाली कॉप यूनिवर्स बनाने का दावा करने वाले रोहित शेट्टी की ”इंडियन पुलिस फ़ोर्स” देखने के बाद आपको उनकी ”सूर्यवंशी” अच्छी लगने लगेगी। रोहित जिस तरह के इंटरनेशनल लेवल का कॉप यूनिवर्स बनाने की बात कर रहे थे, इस सीरीज को देखने बाद आप कहेंगे कि रोहित की ये इच्छा- इच्छा ही रहे तो अच्छा है क्योंकि प्रक्टिकल झेलने योग्य नहीं है।
रोहित शेट्टी की ”इंडियन पुलिस फ़ोर्स” में दो चीज़ों की भारी कमीं दिखती है पहला तो एक्साइटमेंट और दूसरा लॉजिक। वेब सीरीज का प्लॉट वही है जहां दिल्ली में सिलसिलेवार 6 बम धमाके होते हैं जिसकी जिम्मेदारी इंडियन मुजाहिदीन लेता है। इन धमाकों में दिल्ली पुलिस के दो ऑफिसर विक्रम यानी विवेक ओबेरॉय और कबीर यानी सिद्धार्थ मल्होत्रा हीरोइक एंट्री लेते हैं, जहां वहीं 90 के दशक की तनातनी और डायलॉग बाजी चलती है। सीरीज में कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे देखने के लिए एक्साइटमेंट हो। बिना देखे बगल में कहानी चलती रहे तो आप अगले सीन का अंदाजा लगा लेंगे।
बहरहाल, रोहित की ये घिसी-पीटी कहानी की रेलगाड़ी अपने अगले स्टेशन पर पहुंचती है जहां दिल्ली पुलिस की मदद करने गुजरात ATS की तारा शेट्टी यानी शिल्पा शेट्टी कुंद्रा को भेजा जाता है। अब फिर से वही चीजी 90tees का कॉन्सेप्ट रिपीट होता दिखता है जहां तारा और विक्रम ट्रेनिंग में कभी साथ थे और दोनों की नहीं बनती थी क्योंकि दोनों के काम करने का तरीका अलग था। अब सालों बाद दोनों एक साथ एक टीम में हैं और दोनों की बातचीत को बड़े ही रूटीन घिसे-पिटे अंदाज में दिखाया गया है जो बोर करता है।
इतनी टशनबाजी के बाद भी इनकी ये टीम ब्लास्ट के मास्टरमाइंड को पकड़ने में गच्चा खा जाती है और वो आतंकवादी आगे के मिशन पर निकल पड़ता है। तो सवाल ये है कि क्या ये टीम उसे रोक पाएगी? इसी बीच कबीर की लव स्टोरी को जबरदस्ती बॉलीवुडिया स्टाइल में घुसेड़ा गया है। इतना ही नहीं विलेन की लव स्टोरी को भी दिखाया गया है। टिपिकल रोहित शेट्टी स्टाइल में कहानी आगे बढ़ती रहती है जहां हीरो की जिंदगी में स्यापा होगा, उसके साथी ऑफिसर की मौत हो जाएगी और तो और कहानी का विलेन भी इसलिए विलेन बना है क्योंकि उसने अपने अतीत में दंगे देखें और अपनों को खो दिया। ऐसा लगता है रोहित शेट्टी ने कॉप यूनिवर्स क्रिएट करने की जल्दबाजी में स्क्रिप्ट पर मेहनत करने की जहमत नहीं उठाई और टिपिकल 90 के फिल्मों की कहानी को चेप दिया है। लेकिन ये ऑडियंस है साहब इन्हें सब याद रहता है।
‘इंडियन पुलिस फोर्स’ में रोहित क्या दिखाना चाहते हैं ये सिर्फ वही बता सकते हैं क्योंकि इंडियन पुलिस के एफर्ट और उनके स्ट्रगल को दिखाने के नाम पर उन्होंने क्या परोसा है ये हमको तो नहीं पता चल पाया। यहां पुलिस वाले जिस तरह ऑपरेशन्स कर रहे हैं, उसमें किसी भी अपराधी से ज्यादा आम लोगों की जान जाने का खतरा है और लॉजिक का खून तो तब हो जाता है जब दिल्ली पुलिस एक अपराधी के पीछे बंगलादेश तक पहुंच जाती है, वो भी अंडरकवर और भाई साहब इनका कवर्ड ऑपरेशन भी ऐसा की आधा ढाका तहस-नहस हो गया। अभी भी हम इसमें लॉजिक ढूंढने की कोशिश कर ही रहे थे कि अगले पल रोहित के ये कॉप बांग्लादेशी इंटेलिजेंस ऑफिसर्स के सामने गाड़ी भगाते हुए, इंडियन बॉर्डर में घुस जाते हैं। बांग्लादेश की बॉर्डर फोर्स के लोग ऊपर बैठकर मजे में नीचे चल रही ये फिल्म देख रहे हैं। लगता है रोहित शेट्टी ने स्क्रिप्ट ही नहीं पुलिस फ़ोर्स की डिटेलिंग पर भी मेहनत नहीं की, बस अपनी फैंटेसी के हिसाब से कुछ भी बना दिया, जिसका लॉ और प्रोटोकॉल जैसी शब्दों से कोई लेना देना नहीं है।
कुल मिलाकर बात ये है कि ‘इंडियन पुलिस फोर्स’ से न तो भौकाली लेवल का सुपरकॉप निकलता है और न ही पुलिस फोर्स के स्ट्रगल और उनकी हालत पर शो कुछ कह पाता है। इस शो में पॉजिटिव के नाम पर बस इसके कलाकार हैं। सिद्धार्थ मल्होत्रा की बात करें तो पुलिस ऑफिसर के किरदार में वो एकदम फिट बैठते हैं। शिल्पा शेट्टी दमदार हैं और विक्रम के रूप में विवेक जचते हैं।