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Sherdil: The Pilibhit Saga Movie Review : गांव वालों के लिये, पंकज त्रिपाठी ने डाल दिया अपनी जान जोखिम में

Sherdil: The Pilibhit Saga Movie Review : गांव वालों के लिये पंकज त्रिपाठी ने डाल दिया अपनी जान जोखिम में, श्रीजीत मुखर्जी एक नेशनल अवार्ड विनिंग निर्देशक हैं। जिन्होंने हमेशा अपनी फिल्म के जरिए सामाजिक मुद्दों और उनसे जुड़ी कठिनाइयों पर बात की है। फिल्म शेरदिल भी ऐसे ही घटना से जुड़ी हुई सामजिक मुद्दे पर बनी फिल्म है।

नई दिल्ली : श्रीजीत मुखर्जी के डायरेक्शन में बनी शेरदिल : द पीलीभीत सागा 2017 में उत्तर प्रदेश में हुई एक घटना पर आधारित है। फिल्म में पंकज त्रिपाठी, सयानी गुप्ता और नीरज काबी मुख्य रोल की भूमिका में है। फिल्म मुख्यतः पंकज त्रिपाठी के आसपास घूमती है। पंकज त्रिपाठी ओटीटी की दुनिया के स्टार हैं और शेरदिल में गंगाराम बने पंकज त्रिपाठी अपने कन्धों पर पूरी फिल्म का भार उठाए हुए हैं। डायरेक्टर श्रीजीत मुखर्जी एक नेशनल अवार्ड विनिंग निर्देशक हैं। जिन्होंने हमेशा अपनी फिल्म के जरिए सामाजिक मुद्दों और उनसे जुड़ी कठिनाइयों पर बात की है। फिल्म शेरदिल भी ऐसे ही घटना से जुड़ी हुई सामजिक मुद्दे पर बनी फिल्म है।

कहानी क्या है
गंगाराम बने पंकज त्रिपाठी गांव के सरपंच हैं और वो अपनी गांव में होने वाली समस्याओं को सुनते हैं और गांव वालों की खुशियों का हमेशा ख्याल रखते हैं। गंगाराम जिस गांव के मुखिया हैं वो टाइगर रिज़र्व के पास है। गांव में पहले से कई समस्या हैं और कुछ दिन से एक बाघ लोगों को परेशान कर रहा है जिसके कारण बहुत सारे लोगों को जान भी गंवाना पड़ा है और गांव की फसल भी बर्बाद हो गयी है। इसके अलावा गांव में बाढ़ आने के कारण भी भुखमरी और गरीबी के हालात हैं ऐसे में गंगाराम, अपने गांव के लोगों के उज्ज्वल भविष्य के लिए, बाघ के द्वारा खुद का शिकार कराने के लिए जंगल चले जाते हैं । जिसके लिए सरकारी स्कीम के तहत 10 लाख रुपये भी मिलेंगे और सरकार का ध्यान भी गांव की समस्या की ओर आकर्षित होगा । वो अपने पीछे अपनी पत्नी सयानी गुप्ता और 2 बच्चों को छोड़ जाते हैं। सयानी गुप्ता उन्हें ऐसा करने से रोकती हैं पर गंगाराम (पंकज त्रिपाठी ) रुकने वालों में से नहीं हैं। जंगल पहुँचने पर गंगाराम को जंगल से जुडी परेशानियां तो देखने को मिलती ही हैं इसके अलावा उनको वहां मिलते हैं “शिकारी जिम” ।  जिसका किरदार नीरज काबी ने निभाया है। “शिकारी जिम” से मिलने पर गंगाराम को पता चलता है कि जिस बाघ से गंगाराम खुद का शिकार करवाना चाहते हैं, उस बाघ का शिकार करने के लिए वहां पर पहले से मौजूद है एक शिकारी- जिसका नाम है “जिम” यानी नीरज काबी। अब इसके आगे क्या होता है ये स्पॉइलर हो जाएगा इसलिए आगे जानने के लिए आपको फिल्म देखना जरूरी होगा।

कैसी है फिल्म
अगर फिल्म की बात करें तो फिल्म का लेखन साधारण है क्यूंकि श्रीजीत मुखर्जी अपने किरदारों का निर्माण करने में काफी वक़्त ले लेते हैं। इसके अलावा गरीबी , पर्यावरण , जीव-जंतु , संबंधित मुद्दों पर श्रीजीत मुखर्जी का लेखन उतना कमाल नहीं दिखा पाता है। फिल्म में व्यंग्य माध्यम से राजनीति, व अन्य मुद्दों पर बात की गयी है। जहाँ फिल्म का पहला हाल्फ धीरे चलता है वहीँ सेकंड हाफ काफी तेज़ चलता है और इंट्रेस्ट बनाता है। अगर मनोरंजन की बात करें तो पंकज त्रिपाठी के चुटकुले अच्छे हैं और जिस तरह से उन्होंने उसे निभाया है उसे बहुत कम कलाकार ही निभा पाते हैं. गंगाराम की पत्नी के रूप में सयानी गुप्ता और सेकंड हाल्फ में आने वाले शिकारी “जिम” यानी नीरज काबी का काम भी उम्दा है। इसके अलावा फिल्म की सिनेमाटोग्राफी और एडिटिंग लेवल पर फिल्म बहुत खूबसूरत है जिसके जरिए इमोशन को बेहतर ढंग से कैप्चर किया गया है। मुख्य रूप से जंगल के सीन अच्छे से दर्शाये गये हैं। फिल्म का म्यूजिक और गाने मेलोडियस  हैं जो आपको सुकून के पल देकर जाते हैं। ओवरआल फिल्म पंकज त्रिपाठी के कंधे पर चलती है, और सेकंड हॉफ में नीरज काबी, आकर फिल्म में चार-चाँद लगा देते हैं। फिल्म का फर्स्ट हाफ ठीक है और सेकंड हॉफ मजेदार है। ओवरआल फिल्म एंटरटेन करती है और खूब हंसाती है लेकिन कुछ जगह पर यह भावुक करके भी जाती है। हाँ फिल्म का लेखन कमजोर है, जो और बेहतर हो सकता था।

आज फिल्म थिएटर में रिलीज़ हो गयी है अब देखना यह है कि बॉक्स ऑफिस पर कितना कलेक्शन करती है

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