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Merry Christmas Movie Review: रात जितनी संगीन होगी सुबह उतनी रंगीन होगी… Merry Christmas देखने जाने से पहले यहां पढ़ें पूरा रिव्यू

नई दिल्ली। कैटरीना कैफ और विजय सेतुपति की ”मेरी क्रिसमस” ने सिनेमाघरों में धप्पा बोल दिया है। फिल्म का नाम जरूर ”मेरी क्रिसमस” है लेकिन इसे रिलीज पोंगल पर किया गया है क्योंकि बॉक्स ऑफिस के तिकड़म का कुछ कह नहीं सकते। इस फिल्म को श्रीराम राघवन ने डायरेक्ट किया है। जी हां, ये वही राघवन हैं जो ”अंधाधुन” जैसी क्रेजी फ़िल्में बनाने के लिए जाने जाते हैं। फिल्म में कैटरीना और विजय के अलावा संजय कपूर और अश्विनी कालसेकर ने भी अहम भूमिकाएं अदा की हैं। फिल्म को देशभर के 1000 स्क्रीन्स पर रिलीज किया गया है। फिल्म ”मेरी क्रिसमस” की कहानी उस समय की है जब मुंबई को बंबई कहा जाता था, तो चलिए बिना किसी बकैती के सीधा नजर डालते हैं फिल्म की कहानी पर।

क्या है कहानी?

”मेरी क्रिसमस” की कहानी एक रात में घटती है। जी हां क्रिसमस ईव पर यानी 24 दिसंबर को जहां मारिया नाम की एक महिला अलबर्ट नाम के आदमी से मिलती है। इस अलबर्ट का सरनेम आइंस्टाइन नहीं है नतीजन ये IQ की जगह आई लव यू वाले प्राणी हैं जो ग्रेविटेशन के बजाय मारिया के अट्रैक्शन में फिसल जाते हैं। अब क्या करे लड़की का चक्कर बाबू भैया। अब अलबर्ट बाबू मारिया के घर आते हैं। दोनों के बीच बॉन्डिंग भी बढ़िया हो जाती है लेकिन हमारे ठेठ में एक कहावत है कि ”कुशियार जब ज्यादा मीठा हो जाए तो फट जाता है” ठीक ऐसा ही कुछ अलबर्ट के साथ भी होता है जहां इस एक रात में अल्बर्ट और मारिया की जिंदगी में ऐसा कुछ हो जाता है कि इनदोनों की जिंदगी हमेशा के लिए बदल जाती है। अब ऐसा क्या होता है? ये भी हम ही बता दें क्या? इसी को जानने के लिए तो फिल्म बनाई गई है।

कैसी है एक्टिंग?

फिल्म में कैटरीना कैफ और विजय सेतुपति ने काम किया है। फिल्म देखते वक़्त ये अहसास जरूर होता है कि काश कैटरीना को थोड़ी और हिंदी आती लेकिन यहां ये कहना गलत नहीं है कि कैटरीना ने अपनी जिंदगी में जितनी भी फ़िल्में की हैं उस सबसे बेहतर परफॉर्मेंस उन्होंने इस फिल्म में दी है। वहीं विजय सेतुपति की बात की जाए तो उनके एक्सेंट की वजह से वो क्या बोल रहे हैं वो कई मौकों पर समझ नहीं आता है और ”एनिमल” की रश्मिका मंदाना याद आ जाती है लेकिन इस आदमी को इतनी ज्यादा एक्टिंग आती है कि वो अपने हाव-भाव से क्या कहना चाह रहा है समझा देता है, तो ये पार्ट ज्यादा खलता भी नहीं है।

फिल्म का सारा निचोड़ इसके अंतिम आधे घंटे में है। अगर आप सोचेंगे कि हमने आपके ढाई घंटे क्यों खर्च करवाए? तो इसी अंतिम आधे घंटे के लिए जहां पूरी फिल्म घटती है और इस तरह से घटती है कि पीछे के दो घंटों का सारा मलाल खत्म हो जाता है। श्रीराम राघवन की पिछली फिल्म ‘अंधाधुन’ की टैगलाइन थी- Dont miss the beginning और इस फिल्म की टैगलाइन होनी चाहिए Dont miss the Ending.

देखें या न देखें ‘

”मेरी क्रिसमस” को मिस्ट्री या थ्रिलर किसी भी जॉनर की बेहतरीन फिल्मों में गिना जा सकता है। फिल्म की रफ़्तार से थोड़ी शिकायत हो सकती है लेकिन ये फिल्म जिंदगी की तरह है जहां आगे क्या होगा इसका कोई आईडिया नहीं है। ये ठीक वैसा है जैसे आप तैयारी कुछ और कर के गए हों और सवाल आउट ऑफ़ सिलेबस कुछ और आ जाये। बाकी इस सिनेमा को एन्जॉय किया जाना चाहिए। इससे ज्यादा हम कहेंगे तो आपको लगेगा हम ओवर हाइप कर रहे हैं। इसलिए आप खुद देखिये और तय कीजिये।

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