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Manoj Muntashir B’Day: ‘तेरी मिट्टी में मिल जावां’ गाने के लेखक के जन्मदिन पर जानें, मनोज शुक्ला से मनोज मुंतशिर बनने की कहानी

नई दिल्ली। बॉलीवुड के मशहूर गीतकार मनोज मुंतशिर जिन्होंने ‘बाहुबली’ जैसी शानदार फिल्मों में जानदार डायलॉग लिखे और ‘तेरी गलियां’, ‘कौन तुझे यूं प्‍यार करेगा’, ‘तेरी मिट्टी’ जैसे खूबसूरत गीतों को रचकर युवाओं के दिलों पर राज किया। आज उस जबरदस्त कलाकार का जन्मदिन है। मनोज को बचपन से ही लिखने का शौक था। इसी सपने को पूरा करने के लिए मात्र 700 सौ रूपये लेकर वो मुंबई आए। इस दौरान उन्हें मुंबई के फुटपाथों पर भी सोना पड़ा था। मनोज का जन्म 27 फरवरी 1976 को यूपी के अमेठी के गौरीगंज में हुआ था। एक इंटरव्यू के दौरान वो बताते हैं कि उन्हें लिखने का शौक बचपन से ही था, जब वो 7वीं या 8वीं कक्षा में थे तो ‘दीवान-ए-ग़ालिब’ किताब पढ़ी, लेकिन उन्हें उर्दू नहीं आती थी, इसलिए वो ये किताब समझ नहीं पाए। वो मानते थे कि गाना लिखने के लिए उर्दू की जानकारी बहुत जरूरी है, लेकिन वो ब्राम्हण परिवार से थे, इसलिए उर्दू सीखना उनके लिए आसान नहीं था। इस समस्या को हल करने के लिए एक दिन मस्जिद के नीचे से उन्होंने 2 रुपए की उर्दू की किताब खरीदी ताकि वो इससे ऊर्दू सीख सकें। इस किताब में हिंदी के साथ उर्दू भी लिखी हुई थी।

एक इंटरव्यू में मनोज अपनी जिंदगी से जुड़ा एक और दिलचस्प किस्सा बताते हैं, ‘वो कहते है कि ‘साल 1997 में एक सर्दी की रात में मैं अपने घर से चाय की तलाश में निकला और एक टपरी पर पहुंच गया। टपरी पर रेडियो बज रहा था और उस पर उन्होंने पहली बार एक शब्द सुना ‘मुंतशिर’। मनोज को ये शब्द इतना भा गया कि उन्होंने अपना नाम ही मनोज मुंतशिर कर लिया। अब समस्‍या थी कि पिता जी को इसके बारे में कैसे बताया जाए। इसके लिए उन्होंने एक तरकीब निकाली और घर की नेम प्‍लेट पर मनोज मुंतशिर लिखवा दिया। पिता जी को लगा कि कहीं मनोज ने धर्म परिवर्तन तो नहीं कर लिया।

मनोज आगे बताते हैं कि “उनके पिता जी ने उनसे पूछा आखिर क्या चाहते हो? जवाब में पिता जी ने कहा 300 रुपये, मुंबई की ट्रेन का टिकट लेना है और राइटर बनने के अपने सपने को पूरा करना है। उन्होंने मुझे 700 रुपये दिए, वो इस चीज को लेकर श्योर थे कि मैं फेल हो जाऊंगा और वापस आना चाहूंगा। अब मुंबई मेरा घर है।” इरादों के पक्के मनोज ने एक बार तय कर लिया कि उन्हें फिल्मों में गाने ही लिखने हैं तो उनका ये फैसला खुद उनके पिताजी भी चाह कर भी बदल न पाए।

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