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Aditya L-1 Of ISRO: चंद्रयान की सफलता के बाद अब शनिवार को सूरज की ओर इसरो भेजेगा ‘आदित्य एल-1’, जानिए अन्य देशों के भेजे यानों से बेहतर क्यों

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बेंगलुरु। चांद पर चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर को सफलता से उतारने के बाद अब इसरो की नजर सूरज की तरफ घूमी है। इसरो अब सूरज के अध्ययन के लिए अपना आदित्य एल-1 यान 2 सितंबर को सुबह 11.50 बजे पीएसएलवी रॉकेट से सूरज की दिशा में भेजने वाला है। आदित्य एल-1 यान करीब 4 महीने की यात्रा के बाद धरती से 15 लाख किलोमीटर दूर पहुंचेगा और वहां लैग्रेंज प्वॉइंट पर स्थित होकर सूरज पर अपने यंत्रों के जरिए निगाह गड़ाए रहेगा। अब तक वैसे सूरज के लिए दुनियाभर के तमाम देशों ने 22 यान भेजे हैं। इनमें से सबसे ज्यादा 14 यान अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भेजे। फिर भी भारत का आदित्य एल-1 यान काफी अलग किस्म से सूरज का अध्ययन करने जा रहा है।

धरती और सूरज के बीच दूरी करीब 15 करोड़ किलोमीटर है। अब आप ये जानना चाहते होंगे कि आखिर इसरो का आदित्य एल-1 यान धरती की कक्षा में रहकर भी तो सूरज का अध्ययन कर सकता था। फिर इसे 15 लाख किलोमीटर भेजने की जरूरत क्या है? आदित्य एल-1 यान को इसरो खास वजह से धरती से इतनी दूर भेज रहा है। जिस लैग्रेंज प्वॉइंट पर ये यान भेजा जा रहा है, वहां से सूरज साफ दिखता है और उसपर ग्रहण वगैरा भी नहीं लगता। जबकि, धरती की कक्षा में अगर यान होता, तो सूर्यग्रहण के दौरान वो सूरज को नहीं देख पाता। 15 लाख किलोमीटर दूर 5 लैग्रेंज प्वॉइंट हैं। इनमें से लैग्रेंज प्वॉइंट 1 पर आदित्य एल-1 यान को इसरो के वैज्ञानिक स्थापित करेंगे।

आदित्य एल-1 यान सूरज की तरफ भेजे गए अन्य यानों के मुकाबले अलग इस वजह से है, क्योंकि उसके यंत्र सिर्फ सूरज की बाहरी सतह का ही अध्ययन नहीं करेंगे। आदित्य एल-1 यान में ऐसे यंत्र लगे हैं, जो सूरज के प्लाज्मा, कोरोना और यहां तक की कोर के बारे में भी शोध कर सकते हैं। सूरज का कोर वो जगह है, जहां से वो परमाणु संलयन के जरिए असीमित ऊर्जा पैदा करता है। सूरज इतना चमकदार है कि उसका कोर देखना आसान नहीं है। आदित्य एल-1 के यंत्र सूरज के इसी कोर को देखेंगे और वहां हीलियम गैस के संलयन पर शोध कर सकेंगे। इसके अलावा आदित्य एल-1 के उन्नत कैमरों के जरिए सूरज के और बेहतरीन फोटो भी दुनियाभर के वैज्ञानिकों को मिल सकेंगे।

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