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Health System of Tribes: जनजाति समाज के जीवन और स्वास्थ्य को उम्दा बनाने की दिशा में पहल, 2 दिवसीय ‘संवाद कार्यक्रम’ का हुआ आयोजन

जब जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की बात आती है तो उसके साथ बहुत सी चीजें जुड़ जाती हैं। उदाहरण के तौर पर ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा बेहतर होगी तभी स्वास्थ्य सेवाएं भी वहां बेहतर तरीके से पहुंचेगी। मेरा मानना है कि सभी को इस विषय पर मिलकर काम करने की जरूरत है।

नई दिल्ली। जब जनजाति समाज के स्वास्थ्य की बात आती है तो कई बार यह भी बात आती है कि अनुसूचित जनजाति — समाज के लोग अंधविश्वासी हैं। दरअसल ऐसा नहीं है जब उन तक सुविधाएं नहीं पहुंचती हैं तब वह दूसरा रास्ता तलाशता है। आप उन तक सुविधाएं पहुंचाएंगे तो वह जरूर लेंगे। उदाहरण के तौर पर जब कोरोना की वैक्सीन उन तक पहुंची तो उन्होंने ली। किसी ने मना नहीं किया। आप उन तक सुविधाएं पहुंचाए तो। दो दिवसीय इस संवाद को करने का उद्देश्य भी यही था कि हम समस्याओं के समाधान पर बात करें न कि समस्याओं पर। जब जनजातीय क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाओं की बात आती है तो उसके साथ बहुत सी चीजें जुड़ जाती हैं। उदाहरण के तौर पर ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा बेहतर होगी तभी स्वास्थ्य सेवाएं भी वहां बेहतर तरीके से पहुंचेगी। मेरा मानना है कि सभी को इस विषय पर मिलकर काम करने की जरूरत है। यह बातें  “अनुसूचित क्षेत्रों में जनजातियों के स्वास्थ्य एवं  स्वास्थ्य प्रणाली का मूल्यांकन ” विषय पर 15-16 मार्च को  इंडिया हैबिटेट सेंटर में आयोजित हुए संवाद कार्यक्रम में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष हर्ष चौहान ने कहीं।

 

जनजातियों की समस्याओं को समझना जरूरी

उन्होंने कहा कि  जनजातियों को समझने के लिए उनसे संवाद की आवश्यकता है। जनजाति स्वास्थ्य संरचना कमजोर है। स्वास्थ्य की समस्याओं के कारण जनजाति समाज के लोगों पर कर्जा है। आंकड़ों की बात करें तो एक सामान्य जनजाति परिवार के ऊपर एक से तीन लाख का कर्ज होता है। जनजातियों के पलायन का मुख्य कारण स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता होने से जनजाति विकास के क्षेत्र में सकारात्मक परिणाम आएंगे। जनजातियों के पारंपरिक गांव का ज्ञान भी बाहर आना चाहिए और बाहर का ज्ञान गांव के अनुकूल बनकर गांव में पहुंचना चाहिए। सबके प्रयास से ही सबका विकास संभव है।

 

आयोग द्वारा आयोजित संवाद में  स्वास्थ्य प्रणाली और परंपराओं के पुनर्जीवन पर विचार किया गया। इसमें पारंपरिक औषधियों के डॉक्यूमेंटेशन के प्रयासों की जानकारी देते हुए आधुनिकता के नाम पर पारंपरिक ज्ञान के लोगों ने औषधि ज्ञान वाले लोगों को मान्यता न दिए जाने और ज्ञान का हस्तांतरण न हो पाने, पेटेंट तथा इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स के मुद्दों को रेखांकित किया गया।कार्यक्रम में जनजाति कार्य मंत्रालय के स्टेट मिनिस्टर श्री विश्वेश्वर टुडू  ने भी अपने अनुभव साझा किए। कार्यक्रम के अंत में राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के सदस्य अनंत नायक ने सभी प्रतिभागियों एवं विशेषज्ञों का धन्यवाद ज्ञापन किया।

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