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Bengal Election: बंगाल की राजनीति में सिर चढ़ा चुनावी रंग, थिएटर आर्टिस्ट ने ज्वाइन की BJP, तो निदेशक ने प्ले से हटाया

नई दिल्ली। एक तरफ जहां पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों की तारीख जैसे-जैसे करीब आती जा रही है। वहीं दूसरी ओर सियासी पारा पर भी लगाातर बढ़ता जा रहा है। सभी सियासी दल चुनाव जीतने के लिए जी तोड़ कोशिश करने में जुटा हुआ है। साथ ही एक दूसरे पर हमला बोल रहे है। इतना ही नहीं चुनाव में जीत हासिल करने के लिए पार्टियां अब क्षेत्रीय कलाकार को भी सहारा ले रही है और पार्टी में शामिल करवा रही है। हालांकि अब बंगाल चुनाव का रंग केवल राजनीतिक स्तर तक ही नहीं सीमित है। बल्कि अब इसका असर हर तरफ देखने को मिल रहा है। ताजा मामला कौशिक कार नामक एक थिएटर आर्टिस्ट से जुड़ा हुआ है, जिन्हें भाजपा ज्वाइन करने के चलते से सौरव पलोधी के आगामी प्ले ‘घुम नेई’ से हटा दिया गया। जिसके बाद से बंगाल के सांस्कृतिक सर्किल दो धड़ों में बंटती दिख रही है। वहीं सोशल मीडिया पर भी इस बात को लेकर काफी गहमागहमी है।

थिएटर आर्टिसट को निकाले जाने की इस घटना को कई लोगों ने समर्थन दिया है। वहीं कई लोगों ने इसे असहिष्णुता करार दिया है। नाटक का मंचन कर रहे सौरव पलोधी के अनुसार कार का वर्तमान राजनीतिक जुड़ाव ही उन्हें हटाये के लिए पर्याप्त है। 2019 में पलोधी के ग्रुप इच्छेयमोटो में कैरेक्टर प्ले करने के लिए कार को इनवाइट किया गया था।

सौरव ने बताया’ ‘उत्पल दत्त के इस प्ले को अडॉप्ट करते समय मैंने और कौशिक ने ही मिलकर उनका कैरेक्टर रचा और उसका नाम अखलाक दिया था। इस नाम का चुनाव 2015 में दादरी में हुई मॉब लिंचिंग की घटना से है, जहां बीफ के शक के आधार पर उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी। अब अगर ऐसा व्यक्ति ही भाजपा से जुड़ जाए, तो यह नाटक की आत्मा पर प्रहार करना होगा।’

वहीं दूसरी तरफ कौशिक कार ने अखलाक का कैरेक्टर लिखने के लिए किसी तरह की क्रेडिट लेने से इनकार कर दिया कर दिया। उन्होंने कहा कि सौरव इस तरह के बयान देकर अपनी गलती को छुपा रहे हैं। कौशिक ने कहा, ‘कुछ वामपंथी माइंडसेट के लोग जो धर्मतला और ब्रिगेड के बीच घूमते रहते हैं और फेसबुक पर ही ऐक्टिव रहते हैं। वे मामले को कंट्रोल करने की कोशिश कर रहे हैं। जमीन पर उनका कोई कनेक्शन नहीं है। प्ले से मुझे निकाल देना केवल एलिट तबके के कुछ लोगों की असुरक्षा की भावना को दिखाता है, जिन्हें असल मायने में कम्युनिज्म की मूल भावना का ही पता नहीं है।’

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