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Bihar: बिहार कैबिनेट का हुआ विस्तार, लेकिन RJD ने JDU के कई नेताओं की उम्मीदों पर फेरा पानी, बढ़ी नीतीश की मुश्किलें

नई दिल्ली। आज बिहार में जिस तरह से मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ है, उसे देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि आगामी दिनों में बीजेपी द्वारा की गई भविष्यावाणी कि यह महागठबंधन सरकार ज्यादा दिनों तक नहीं चलने वाली है, लगता है सच होने वाली है। जी बिल्कुल…जो भी पढ़ रहे हैं आप…बिल्कुल सही पढ़ रहे हैं….दरअसल, बिहार के मंत्रिमंडल विस्तार के स्वरूप और संरचना को देखकर यह कहना बिल्कुल भी गलत नहीं होगा कि राजद ने नीतीश कुमार की मजबूरी का फायदा उठाया है और नीतीश कुमार अब अपनी मजबूरी में इस तरह घिर चुके हैं कि अब उन्हें इस बात का डर सता रहा है कि कहीं पार्टी के नेता उनके खिलाफ ही मोर्चा ना खोल दें । खैर, छोड़िए, उन बातों को, हम आपको बिहार मंत्रिमंडल के बारे में सबकुछ विस्तार से बताते हैं।

 

दरअसल, बिहार मंत्रिमंडल में राजद का दबदबा नीतीश की तुलना में ज्यादा है। नीतीश की बाध्यता का अंदाजा आप महज इसी से लगा सकते हैं कि उनके एकदम खासमखास रहे उपेंद्र कुशवाहा को भी मंत्रिमंडल में जगह नहीं दी गई। बेचारे कुशवाहा साहब ने महागठबंधन सरकार बनते ही ना जाने कितने ही सपने देख लिए थे, लेकिन अफसोस उनके सभी सपने अधूरे रह गए। बता दें कि पहले कुशवाहा राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष थे, लेकिन साल 2020 में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय जेडीयू में करा लिया था, जिसके बाद वे नीतीश कुमार के खास आदमी बन गए थे। यही नहीं, नीतीश ने कुशवाहा को संसदीय बोर्ड का अध्य़क्ष भी बनाया था, लेकिन बिहार में बीते दिनों सत्ता का उलटफेर होने के बाद माना जाने लगा कि कुशवाहा को सरकार में बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है, लेकिन अफसोस ऐसा कुछ हुआ नहीं है, जिसे देखते हुए माना जा रहा है कि आगामी दिनों में उनके खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका जा सकता है।

कांग्रेस में भी बवाल

उधर, कांग्रेस की बात करें, तो विगत महागठबंधन सरकार की तुलना में कांग्रेस का कद घटा है। जिन उम्मीदों के साथ कांग्रेस ने महागठबंधन के साथ हाथ मिलाया था, पार्टी की वो उम्मीदें पूरी नहीं हो पाई हैं। जिन नेताओं को मंत्री पद की जिम्मेदारी दी जानी थी, उन जिम्मेदारी से उन्हे वंचित करके रख दिया गया। कांग्रेस के दिग्गज नेता मदन मोहन झा मंत्री नहीं बन सके. मुस्लिम चेहरे के तौर पर कैबिनेट में आफाक आलम को एंट्री मिली है, जिसके चलते शकील अहमद के मंत्री बनने के अरमानों पर पानी फिर गया है। उधर, दलित नेता को मंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है। अजित शर्मा को मंत्री नहीं बनने का मौका मिला है।

राजद को भी नहीं मिली कोई खास तवज्जो

उधर, राजद की बात करे, तो पार्टी को कोई खास तवज्जो नहीं दी गई है। राजद में भी कई नेताओं के मंत्री बनने के अरमानों पर पानी फिर गया है। मंत्रिमंडल गठन के दौरान जातिगत समीकरण का विशेष ध्यान रखा गया है, लेकिन सियासी प्रेक्षकों की मानें तो कई नेताओं के हितों पर कुठाराघात किया गया है, जिससे यह साफ जाहिर होता है कि आगामी दिनों में सरकार के समक्ष कई तरह की चुनौतियां आ सकती है।


कैसे आया बिहार में सियासी तूफान

आपको बता दें कि बीते दिनों जदयू के नीतीश कुमार ने बीजेपी पर पार्टी तोड़ने का आरोप लगाने के बाद महागठबंधन संग सरकार बनी ली, जिसके बाद उन्हें राजनीति में मौका परस्त राजनेता की उपाधि दी जाने लगी, लेकिन नीतीश कुमार ने कहा कि बीजेपी बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान से ही उनकी पार्टी को तोड़ने की कोशिश कर रही है, जिसे ध्यान में रखते हुए उन्होंने फिर महागठबंधन संग सरकर बनाने का फैसला किया है। उधर, राजद नेता तेजस्वी यादव को मिली मंत्रिमंडल में बड़ी जिम्मेदारी के बाद वे अतित्साहित नजर आ रहे हैं। लिहाजा, उन्होंने अब बिहार के 10 लाख युवाओं को नौकरी देने का भी ऐलान कर दिया है। उधर, बीजेपी भी नीतीश कुमार पर हमला करने का एक भी मौका अपने साथ जाने नहीं देना चाह रही है। ऐसे में कोई गुरेज नहीं यह कहने में कि आगामी दिनों में महागठबंधन के लिए बिहार की राजनीति राह आसान नहीं होने वाली है। बहरहाल, अब आगामी दिनों में बिहार की राजनीति क्या कुछ रुख अख्तियार करती है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी। तब तक के लिए आप देश दुनिया की तमाम बड़ी खबरों से रूबरू होने के लिए आप पढ़ते रहिए। न्यूज रूम पोस्ट.क़ॉम

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