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बिहार चुनाव में मिली हार के बाद दिग्विजय ने नीतीश को दिया ऑफर, राहुल के बारे में कही ये बात

नई दिल्ली। बिहार चुनाव (Bihar Election) के नतीजे सामने आ चुके हैं। बिहार की जनता ने एक बार फिर नीतीश कुमार (Nitish Kumar) के नेतृत्व वाले एनडीए गठबंधन को अगले 5 सालों के लिए सत्ता सौंप दी है। एग्जिट पोल में जीत रही महागठबंधन असल नतीजे में बहुमत के आंकड़े को छू नहीं पाई। महागठबंधन में सबसे बुरा प्रदर्शन कांग्रेस का रहा। 70 सीटें लड़कर कांग्रेस महज 19 सीटें जीत पाई। इस बीच बिहार में मिली करारी हार के बाद अब कांग्रेस ने नीतीश कुमार को अपने पाले में करने की कोशिश में लग गई है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह (Digvijaya Singh) ने बुधवार को ट्वीट करके नीतीश कुमार को तेजस्वी यादव के साथ आने की अपील की। इतना ही नहीं उन्होंने नीतीश कुमार को संघ और भाजपा का साथ छोड़ने की नसीहत दी है।

दिग्विजय सिंह ने कहा, ‘भाजपा/संघ अमरबेल के समान हैं, जिस पेड़ पर लिपट जाती हैं वह पेड़ सूख जाता है और वह पनप जाती है। नीतीश जी, लालू जी ने आपके साथ संघर्ष किया है आंदोलनों मे जेल गए हैं। भाजपा/संघ की विचारधारा को छोड़ कर तेजस्वी को आशीर्वाद दे दीजिए। इस अमरबेल रूपी भाजपा/संघ को बिहार में मत पनपाओ।’

दिग्विजय सिंह ने नीतीश कुमार को बिहार छोड़कर भारतीय राजनीति में आने की सलाह दी है। उन्होंने कहा, ‘नीतीश जी, बिहार आपके लिए छोटा हो गया है, आप भारत की राजनीति में आ जाएं। सभी समाजवादी धर्मनिरपेक्ष विचारधारा में विश्वास रखने वाले लोगों को एकमत करने में मदद करते हुए संघ की अंग्रेजों के द्वारा पनपाई ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति ना पनपने दें। विचार जरूर करें।’

उन्होंने बिहार के मुख्यमंत्री को देश को बर्बाद होने से बचाने की अपील करते हुए कहा, ‘यही महात्मा गांधी जी व जयप्रकाश नारायण जी के प्रति सही श्रद्धांजलि होगी। आप उन्हीं की विरासत से निकले राजनेता हैं वहीं आ जाइए। आपको याद दिलाना चाहूंगा जनता पार्टी संघ की डुअल मेंबरशिप (दोहरी सदस्यता) के आधार पर ही टूटी थी। भाजपा/संघ को छोड़िए। देश को बर्बादी से बचाइए।

दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी को लेकर भी टिप्पणी की है। उन्होंने लिखा, ‘आज देश में एक मात्र नेता राहुल गांधी हैं जो विचारधारा की लड़ाई लड़ रहे हैं। NDA के सहयोगी दलों को समझना चाहिए राजनीति विचारधारा की होती है। जो भी व्यक्ति अपनी महत्वाकांक्षा के कारण विचारधारा को छोड़कर अपने स्वार्थ के लिए समझौता करता है वह अधिक समय तक राजनीति में ज़िंदा नहीं रहता।’

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