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Chhatrapati Shivaji Maharaj B’Day: मुगलों की नाक में दम करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती, जानें वीर सपूत का जीवन परिचय

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नई दिल्ली। देव-भूमि भारत को चारो ओर से संपन्न और समृद्ध बनाने के लिए बहुत से ऋषियों, मुनियों, साधु-संतों, सन्यासियों, महापुरुषों, वैज्ञानिकों, कलाविदों, साहित्यकारों, समाजसुधारकों, वीर सपूतों, शिक्षाविदों का सहयोग रहा है। इन्हीं वीर सपूतों में से एक हैं, छत्रपति शिवाजी महाराज। छत्रपति शिवाजी महाराज न केवल एक महान देशभक्त थे, बल्कि कुशल प्रशासक भी थे। साल 1670 में उन्होंने मुगलों की सेना को जमकर टक्कर दी और उन्हें हराकर सिंहगढ़ दुर्ग पर अपना परचम लहराया था। इसके बाद सन् 1674 में उन्होंने ही भारत के पश्चिम में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी। 19 फरवरी 1630 को शिवनेरी दुर्ग में जन्में शिवाजी महाराज की इस साल देश में उनकी 392वीं जयंती मनाई जा रही है, हालांकि उनके जन्म के विषय में स्पष्टता नहीं है, क्योंकि कुछ लोग उनका जन्म 1627 में बताते हैं। शिवाजी के पिता शाहजी भोसले एक शक्तिशाली सामंत थे। उनकी माता का नाम जीजाबाई था, जो कि काफी धार्मिक स्वभाव वाली स्त्री थीं। माता जीजाबाई की देखरेख में शिवाजी का पालन-पोषण धार्मिक ग्रंथों को सुनते-सुनते हुआ था, जिससे उनके अंदर अभूतपूर्व प्रतिभा जाग चुकी थी। बाहर से गंभीर और शांत दिखने वाले शिवाजी के अंदर बचपन में ही शासक वर्ग की क्रूर नीतियों के खिलाफ लड़ने की अग्नि धधकने लगी थी।

शिवाजी महाराज भारत के एक महान योद्धा और कुशल रणनीतिकार थे। उन्होंने अकबर के विरूद्ध महाराणा प्रताप द्वारा इस्तेमाल की गई गुरिल्ला वॉर का मुगल सेना के विरूद्ध सफल प्रयोग किया, जिसने मुगलों की सेना की नाक में दम कर दिया था। इस नीति का इस्तेमाल आज भी कई सेनाएं युद्ध में करती हैं। सन् 1674 में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ, जिसके बाद वो “छत्रपति” कहलाए। शिवाजी महाराज ने अपने राज-काज में फारसी के स्थान पर मराठी और संस्कृत को अधिक प्राथमिकता दी थी।

शिवाजी ने कई सालों तक मुगल शासक औरंगजेब से लोहा लिया था। शिवाजी महाराज और मुगलों की पहली मुठभेड़ 1656-57 में हुई थी, जिसमें उन्होंने मुगलों की ढेर सारी संपत्ति और सैकड़ों घोड़ों को अपने कब्जे में ले लिया था। कहा जाता है, 1680 में किसी बीमारी की वजह से शिवाजी की अपनी राजधानी पहाड़ी दुर्ग राजगढ़ में छत्रपति शिवाजी की मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उनके बेटे संभाजी ने राज्य की कमान संभाल ली थी।

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