News Room Post

Happy B’Day Dr. Sarvepalli Radhakrishnan: देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णनन का जन्मदिन आज,जानिए भारत के लिए क्यों खास है 5 तारीख?

Happy B'Day Dr. Sarvepalli Radhakrishnan: तिरुपति और वेल्लोर में स्कूलों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और अंततः दर्शनशास्त्र की पढ़ाई करने के लिए मद्रास के प्रतिष्ठित क्रिश्चियन कॉलेज में शामिल हो गए। उनका कहना था कि भारतीय दर्शन का अध्ययन हीन भावना को दूर करेगी

नई दिल्ली। भारत के इतिहास में 5 सितंबर की तारीख काफी अहम माना जाता है। दरअसल, इस दिन देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णनन का जन्म हुआ था। इस दिन टिचर्स डे के रुप में मनाया जाता है। 5 सितंबर 1888 तमिलनाडु में जन्मे डॉ. राधाकृष्णनन को भारतीय संस्कृति के संवाहक, प्रख्यात शिक्षाविद् और महान दार्शनिक के तौर पर जाना जाता है। साल 1882 में आंध्र प्रदेश के तिरुतानी नामक शहर में जन्मे उनके पिता चाहते थे कि वह एक पुजारी बनें। लेकिन उनकी प्रतिभा ने उन्हें तिरुपति और वेल्लोर में स्कूलों में शामिल होने के लिए प्रेरित किया और अंततः दर्शनशास्त्र की पढ़ाई करने के लिए मद्रास के प्रतिष्ठित क्रिश्चियन कॉलेज में शामिल हो गए। उनका कहना था कि भारतीय दर्शन का अध्ययन हीन भावना को दूर करेगी और देशवासियों के मन में सम्मान की भावना लाएगी। आइए जानते है डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णनन के जीवन के बारें में कुछ खास बातें-

राधाकृष्णनन की छात्रों के बीच लोकप्रियता

मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज और कलकत्ता विश्वविद्यालय में राधाकृष्णनन को छात्रों द्वारा काफी पसंद किया जाता है, जहां उन्होंने एक प्रोफेसर की भूमिका निभाई। बाद में उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय और आंध्र विश्वविद्यालय दोनों के कुलपति के रूप में काम किया और ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय की ओर से मान्यता भी प्राप्त थी। साल 1939 में, उन्हें ब्रिटिश अकादमी का फेलो चुना गया था।

भारती शिक्षा में योगदान

स्वतंत्रता के ठीक बाद डॉ राधाकृष्णन ने 1948-49 में विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की अध्यक्षता की। सर्वपल्ली का कहना था कि आज हमें जिस चीज की जरूरत है, वह है संपूर्ण मनुष्य की शिक्षा- शारीरिक मानसिक,बौद्धिक, प्राणिक और आध्यात्मिक विकास है। राधाकृष्णन ने भी धर्मों के आध्यात्मिक और नैतिक पहलुओं के शिक्षण की जोरदार मांग की थी, जैसा कि विश्वविद्यालय शिक्षा आयोग की रिपोर्ट में साफ है, जिसके वे अध्यक्ष थे। रिपोर्ट में बताया गया है कि जब तक नैतिकता को बड़े अर्थ में नहीं लिया जाता है, यह पर्याप्त नहीं है। यदि हम अपनी संस्थाओं में आध्यात्मिक प्रशिक्षण को छोड़ दें, तो हमें अपने संपूर्ण ऐतिहासिक विकास के प्रति झूठा होना पड़ेगा।

Exit mobile version