News Room Post

Christmas: 25 दिसंबर को पहले होता था रोमन त्योहार, फिर यीशु का जन्मदिन मनाने लगे ईसाई

नई दिल्ली। आज रात 12 बजे दुनियाभर के चर्चों के घंटे बजने लगेंगे। प्रभु यीशु मसीह का जन्मदिन मनाने के लिए ईसाई समुदाय के लोग प्रार्थना करेंगे। सबसे बड़ा जलसा रोम के वैटिकन में होगा। यहां पोप मिडनाइट मास में हिस्सा लेंगे। लगातार दो साल से कोरोना की वजह से क्रिसमस का पर्व फीका पड़ रहा है, लेकिन फिर भी लोग इस पर्व को मनाने के लिए बहुत उत्साह में रहते हैं। क्रिसमस की शुरुआत तो वैसे प्रभु यीशु मसीह के जन्म से मानी जाती है। जिसे इस साल 2021 साल हो रहे हैं, लेकिन पहले भी 25 दिसंबर को एक बड़ा त्योहार मनाया जाता रहा है। ये त्योहार रोमन साम्राज्य के लोग मनाते थे।

यीशु मसीह के जन्म से पहले रोमन साम्राज्य में 25 दिसंबर को मनाए जाने वाले त्योहार का नाम डईस नातालिस सोलिस इन्क्विटी था। यानी अपराजेय सूर्य का जन्म दिन। इस दिन सूर्य और सूर्य से जुड़े रोमन देवी-देवताओं की पूजा की जाती थी। इन देवताओं में एल, सीरियन देवता सोल, द गॉड ऑफ इंपरर ऑरीलियन, सम्राट एलागाबलुस वगैरा थे। दरअसल, 25 दिसंबर को आम तौर पर काफी सर्दी होती थी। इस वजह से सूर्य देवता की पूजा कर रोमन सम्राट और आम लोग उनसे गर्मी देने की याचना करते थे। जब यीशु मसीह को सलीब की सजा दी गई, तो उसके बाद से ईसाइयों ने उनके जन्मदिन की याद में क्रिससम का पर्व मनाना शुरू किया। क्रिसमस भी रोमन शब्द है। इसका मतलब प्रभु यीशु के अवतरण का दिन है।

खास बात ये कि क्रिसमस पहले 25 दिसंबर की जगह मार्च में मनाया जाता था। बाद में क्रिसमस को 25 दिसंबर कर दिया गया। बहरहाल, आज के दिन से ईसाई समुदाय अगले एक हफ्ते तक क्रिसमस का त्योहार धूमधाम से मनाएगा। इस दौरान चर्च में विशेष प्रार्थनाएं होंगी और जैसा कि सबको पता है कि घरों में खास पकवान और केक भी बनाए जाएंगे। तो ये थी क्रिसमस की असली कहानी कि किस तरह रोमन साम्राज्य के एक पर्व को ईसाइयों ने मनाना शुरू किया और दुनियाभर में इसे किस तरह मनाया जाता है।

Exit mobile version