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Deoband: पहले भी विवादों में रहा है देवबंद का दारुल उलूम, जानिए किन फतवों पर उठे थे सवाल

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देवबंद। दुनियाभर में दारुल उलूम की पहचान इस्लामी शिक्षा के लिए है। देश-विदेश से हर साल तमाम छात्र यहां इस्लाम की शिक्षा लेने आते हैं, लेकिन दारुल उलूम अपने फतवा डिपार्टमेंट की वजह से विवादों में भी घिरता रहा है। गोद लिए बच्चे को अपने बच्चे जैसा हक न मिलने का फतवा देने पर उसके खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई है, लेकिन पहले भी दारुल उलूम के फतवों पर अंगुली उठी है। पहले ये जानना जरूरी है कि आखिर फतवा होता क्या है ? इसका जवाब है कि कुरान शरीफ और हदीस के आधार पर जो हुक्म जारी होता है, उसे फतवा कहते हैं। जबकि, पैगंबर मोहम्मद ने जिस तरह अपना जीवन बिताया, उसकी मिसालों को हदीस कहते हैं।

बता दें कि दारुल उलूम के फतवे साल 2005 से ऑनलाइन हो गए थे। तमाम महत्वपूर्ण फतवों को वेबसाइट पर डाला जाता है। साल 2018 में ही 44000 फतवे संस्था की वेबसाइट में डाले गए थे। अब आपको बताते हैं कि दारुल उलूम के वे कौन से फतवे रहे हैं, जिनकी वजह से विवाद खड़ा हुआ। दारुल उलूम ने तीन तलाक और हलाला पर फतवा जारी किया था। उसने कहा था कि प्रायोजित हलाला गैर इस्लामी है। बता दें कि तलाकशुदा महिला अगर अपने पहले के पति से दोबारा शादी करना चाहे, तो उसे दूसरे शख्स से शादी करके तलाक लेना होता है। इसी को हलाला कहते हैं। दारुल उलूम ने एक और फतवे में कहा था कि मुस्लिम महिलाओं को अंजान मर्द से मेंहदी नहीं लगवाना चाहिए। इसी तरह उसने सीसीटीवी को गैर इस्लामी बताया था। संस्था का कहना था कि इस्लाम में बगैर जरूरत फोटो खिंचवाना मना है। इसी तरह ईद से पहले फतवा आया था कि शिया मुसलमानों के यहां इफ्तार या शादी की दावत में जाना सुन्नी मुसलमानों के लिए नाजायज है।

इतना ही नहीं, दारुल उलूम ने जीवन बीमा कराने को भी ये कहते हुए नाजायज बताया था कि इससे मिलने वाला सूद लाभ की श्रेणी में आता है और इस वजह से गैर इस्लामी है। महिलाओं को दूसरे मर्द के हाथ से चूड़ी पहनने को भी उसने शरीयत के खिलाफ बताया। सोशल मीडिया पर महिलाओं की फोटो डालने के खिलाफ भी संस्था का फतवा आया था। इसके अलावा मुस्लिम महिलाओं के चुस्त कपड़े और तंग बुर्के पर भी दारुल उलूम ने रोक लगा दी थी। एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में दारुल उलूम के एक मुफ्ती ने कहा था कि अगर कोई टॉयलेट में है, तो उसे मोबाइल पर आयत या अजान वाली रिंगटोन या कॉलर टोन नहीं सुनना चाहिए। सऊदी अरब के उस फतवे को भी दारुल उलूम ने सही बताया था, जिसमें महिलाओं को मर्दों का फुटबॉल मैच देखना हराम बताया गया था।

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