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Afghan Crisis: काबुल में भारत के लिए अब हैं ऐसे हालात, विदेश मंत्री जयशंकर ने किया खुलासा

नई दिल्ली। तालिबान के कब्जे में अफगानिस्तान के आने के बाद भारत के सामने बड़ी मुश्किल आ गई है। यह बात विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने विपक्षी दलों के साथ बैठक में मानी। जयशंकर ने कहा कि अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण पर भारत ने काफी पैसा लगाया। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस निवेश का नतीजा निकलेगा, लेकिन फिलहाल अफगानिस्तान में भारत का वैसा प्रभाव नहीं रह गया है जो तालिबान के कब्जे से पहले था। विदेश मंत्री ने बैठक में ककहा कि तालिबान से संबंधों पर बात करने का अभी कोई मतलब नहीं है क्योंकि दुनिया के बाकी देश भी अभी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठा रहे हैं।

सर्वदलीय बैठक में 31 दलों क  37 नेता शामिल हुए थे। इसमें मोदी सरकार की ओर से एस. जयशंकर ने जानकारी दी। उन्होंने साफ कहा कि तालिबान के कब्जे से पहले अफगानिस्तान में जारी अंतरराष्ट्रीय कूटनीति के केंद्र में भारत था और वहां की अशरफ गनी सरकार से उसके रिश्ते बहुत बेहतर थे, लेकिन अब भारत सरकार का सारा फोकस अफगानिस्तान में फंसे भारतीयों, हिंदू और सिखों को बचाने पर है।

जयशंकर ने ये भी बताया कि तालिबान की वजह से अफगानिस्तान और खासकर काबुल में हालात हर पल बदलते रहते हैं। ऐसे में दोनों देशों के रिश्तों पर अभी कोई फैसला नहीं किया जा सकता। विदेश मंत्री ने सभी दलों के सवालों के जवाब दिए। उनसे पहले विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने अफगानिस्तान में जारी मदद और बचाव कार्यों के बारे में बताया। मोदी सरकार के इस कदम का सभी दलों के नेताओं ने स्वागत किया। अकाली दल ने सीएए की समयसीमा को 2014 से बढ़ाकर 2021 करने की भी मांग की है। ताकि अफगानिस्तान से अभी आ रहे सिखों और हिंदुओं को भी नागरिकता दी जा सके।

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