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Fact: मायावती ने इन दलित अफसरों को दी थी अहम जिम्मेदारी, लेकिन सबने बहनजी से फेर लिया मुंह

mayawati bsp

लखनऊ। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार बताया था कि उनकी मां सोनिया ने कहा कि “सत्ता जहर है”। सत्ता के इस जहर को कांग्रेस से ज्यादा बीएसपी की सुप्रीमो मायावती को पीना पड़ा है। जिन दलित अफसरों को उन्होंने यूपी में अपनी सरकार के दौरान उच्च पदों पर बिठाया और अपना करीबी समझा, वे रिटायर होने के बाद मायावती से दूर हो गए। इन अफसरों में 4 लोगों का नाम है। पहला नाम है पन्नालाल पुनिया का। पुनिया दलित हैं। मायावती सरकार में वो चीफ सेक्रेटरी हुआ करते थे। मायावती के आंख-कान बन गए थे पुनिया। बगैर उनकी सलाह के मायावती कोई कदम नहीं उठाती थीं, लेकिन रिटायर होने के बाद पीएल पुनिया को कांग्रेस ज्यादा भा गई। वो कांग्रेस का हाथ थाम बैठे।

मायावती के शासन में प्रदेश पुलिस के सबसे बड़े ओहदे यानी डीजीपी के पद पर बृजलाल की तैनाती हुई। वो भी मायावती के करीबी अफसरों में शुमार किए जाते थे, लेकिन रिटायर होने के बाद बृजलाल कुछ दिनों की खामोशी के उपरांत बीजेपी के साथ हो लिए। अब बृजलाल कहते हैं कि अगर दलितों को किसी पार्टी और सरकार में सबसे बेहतर मौका मिल रहा है, तो वो बीजेपी है। बृजलाल फिलहाल बीजेपी की तरफ से राज्यसभा के सांसद हैं। तीसरे अफसर, जिसने मायावती को गच्चा दिया वो हैं पदम सिंह। पदम सिंह पीपीएस अफसर थे और मायावती के चीफ सिक्योरिटी अफसर का जिम्मा उन्हें मिला था। मायावती की जूती उठाने वाली फोटो से वो चर्चा में आए थे। रिटायर होने के बाद दलित वर्ग से आने वाले पदम सिंह भी बीजेपी के खेमे में चले गए।

मायावती सरकार में प्रमुख सचिव पद पर रहे एसडी बागला की भी यही कहानी है। वो भी दलित हैं और बहनजी की सरकार में उनकी तूती बोलती थी। सीनियर आईएएस बागला ने भी रिटायरमेंट के बाद बीजेपी का खेमा पसंद किया। अब एक और दलित आईपीएस अफसर ने भी वॉलेंट्री रिटायरमेंट के बाद बीजेपी में जाना पसंद किया है। उनका नाम है असीम अरुण। असीम अरुण एडीजी पद पर थे और उनके पिता श्रीराम अरुण यूपी के डीजीपी रहे। दलित होने के बाद भी असीम अरुण को बहनजी की पार्टी नहीं सुहाई। उन्हें बीजेपी रास आ गई। वजह ये भी है कि दलितों में मायावती से मोहभंग हो रहा है। बीते कई चुनाव इसकी बानगी हैं।

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