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किसान आंदोलन में वामदलों की है ‘घुसपैठ’, प्रदर्शन को ‘Hijack’ करने की है साजिश….ये रहे सबूत

Farmer Leader punnu and other

नई दिल्ली। कृषि कानूनों को लेकर किसान आंदोलन अब प्रतिदिन तेज होता जा रहा है। शनिवार को किसान संगठनों ने ऐलान कर दिया है कि, 14 दिसंबर को पूरे देश के डीसी ऑफिस में विरोध प्रदर्शन करेंगे। हमारे प्रतिनिधि 14 दिसंबर को सुबह 8 से 5 बजे तक अनशन पर बैठेंगे। इसके अलावा अब किसानों ने सरकार से स्पष्ट कर दिया है कि कृषि कानूनों को वापस करने पर ही प्रदर्शन वापस होगा, संशोधन पर कोई विचार नहीं होगा। ऐसे में सवाल उठता है कि अगर सरकार किसानों को बार-बार उनके हित को ध्यान में रखते हुए भरोसा दिला रही है तो फिर किस आधार पर किसानों की जिद अभी भी बनी हुई है। अगर गौर करें तो सरकार किसानों की मांगों को देखते हुए बिल में संशोधन करने का प्रस्ताव भी दे चुकी है लेकिन किसान संशोधन नहीं बल्कि सीधे तौर पर कानूनों को वापस कराने पर तुले हुए हैं। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि कहीं किसान को अपनी जिद पर बने रहने के लिए प्रेरित तो नहीं किया जा रहा?

बता दें कि सवाल उठने शुरू हुए हैं कि कहीं कृषि कानूनों के खिलाफ शुरू हुए इस आंदोलन को हाईजैक तो नहीं कर लिया गया? ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है कि, क्योंकि इस आंदोलन में जिन लोगों को देखा जा रहा है, उनमें से अधिकतर लोगों के संबंध वामपंथी दलों से हैं। इतना ही नहीं किसानों के हित की बात करने वालें इन नेताओं का अगर खेती में अनुभव देखें तो पता चलता है कि इनका खेती से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है।

आइए, डालते हैं इन नेताओं पर एक नजर…

भारतीय किसान यूनियन से संबंध रखने वाले जगमोहन सिंह पटियाला का खेती में अनुभव नहीं है लेकिन किसानों की आवाज उठाते रहते हैं। इनका रिश्ता सीपीआई(माओवादी) से भी। ऐसे में लोगों का कहना है कि किसानों के इस प्रदर्शन में माओवादी विचारधारा का शामिल होना लाजिमी है।

प्रेम सिंह भंगू ऑल इंडिया किसान फेडरेशन से संबंध रखते हैं। पेशे से वकील हैं लेकिन खेती से इनका कितना वास्ता है, ये किसी को नहीं पता।

हन्नन मोल्लाह ऑल इंडिया किसान सभा से जुड़े हैं। पूर्व सांसद भी रह चुके हैं। सीपीआई(मार्क्सवादी) से रिश्ता रहा है। सरकार के खिलाफ अक्सर बयान देते रहते हैं। DYFI के जनरल सेक्रेटरी भी हैं। खेती में इनका अनुभव- नहीं पता।

नव निर्माण विकास संगठन के अक्षय कुमार के मीडिया से अच्छे रिश्ते हैं। अन्ना हजारे और मेधा पाटकर से भी जुड़े रहे। नर्मदा और आदाजी बचाओ आंदोलन में हिस्सा ले चुके हैं। खेती किस तरह की करते हैं, इसकी जानकारी नहीं मिल पाई है। हालांकि किसान आंदोलन में प्रमुख रूप से भाग ले रहे हैं।

योगेंद्र यादव, खुद में एक जाना पहचाना नाम है। कभी आम आदमी पार्टी से जुड़े रहे। इनके बारे में लोगों की आम राय है कि चुनावी मौहाल में खुद को ढाल मे महारत हासिल है इन्हें। किसानों के मुद्दे पर अक्सर सरकार के खिलाफ बोलते रहते हैं। आजकल संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य हैं।

समाससेवा कार्यों से जुड़ी कविता कुरुगंती दो NGO से जुड़ी हैं। जिसमें महिला किसान अधिकार मंच और ASHA हैं। लेकिन खेती में कितना अनुभव है, ये जानकारी नहीं मिल पाई।

किसान आंदोलन में आवाज बुलंद करने वाले क्रांतिवीर किसान यूनियन पंजाब के दर्शन पाल पंजाब स्वास्थ्य विभाग के रिटायर्ड डॉक्टर हैं। इनका भी रिश्ता सीपीआई(माओवादी) से है।

किसानों के हक की बात करने वालें इन लोगों की लिस्ट देख आपको भी अंदाजा हो गया होगा कि, इनमें से तो अधितकर वामपंथी विचारधारा से जुड़े हैं, तो कई लोगों के पास खेती का अनुभव शून्य के बराबर है लेकिन फिर किसान आंदोलन पर सेहरा खुद पर लिए घूम रहे हैं। इन्हीं सब बातों से कहा जा रहा है कि किसानों के इस प्रदर्शन को हाईजैक कर लिया गया है।

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