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Maharashtra: ‘हिंदुत्व’ का साथ छोड़ना पड़ा शिवसेना को भारी, भारत में पहली बार इस मुद्दे पर गिरी कोई सरकार

uddhav

मुंबई। पिछले करीब 10 साल से हिंदुत्व के मुद्दे ने भारत में जोर पकड़ा है। खासकर अयोध्या में राम मंदिर बनाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद हिंदुत्व की भावना ने जोर पकड़ा है, लेकिन फिर भी शायद किसी ने नहीं सोचा था कि भारत में इसी हिंदुत्व का विरोध किस सरकार के गिरने की वजह बन जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ। हिंदुत्व के मसले पर पहली बार भारत में सरकार गिरी और तीन पार्टियों शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी को महाराष्ट्र की सत्ता गंवानी पड़ी। खास बात ये भी है कि सरकार चला रहे इन तीनों दलों में शिवसेना एक समय प्रखर और उग्र हिंदुत्व का दूसरा नाम थी, लेकिन सत्ता के मोह ने इसके प्रमुख उद्धव ठाकरे को अपनी पुरानी लाइन से अलग हटकर सेकुलर पार्टियों का साथ लेने पर मजबूर कर दिया। फिर भी आखिरकार हिंदुत्व की वजह से ही उन्हें सरकार से हाथ धोना पड़ा।

बीजेपी और शिवसेना के बीच करीब 25 साल से ज्यादा वक्त का साथ इसी हिंदुत्व की वजह से रहा। शिवसेना के सुप्रीमो रहे बालासाहेब ठाकरे अपने उग्र हिंदुत्व और भगवा रंग की वजह से देश के साथ विदेश तक पहचान रखते थे। बालासाहेब ने तो ये भी दावा किया था कि 1992 की 6 दिसंबर को अयोध्या में बाबरी मस्जिद के ढांचे को शिवसैनिकों ने ही मटियामेट किया था। जब तक बालासाहेब जिंदा रहे, बीजेपी के साथ शिवसेना बनी रही। फिर बालासाहेब का निधन हो गया। इसके बाद उद्धव ने शिवसेना की कमान संभाली और फिर 2019 में हुए विधानसभा चुनाव के बाद सीएम की कुर्सी को लेकर बीजेपी से उद्धव की ऐसी ठनी कि उन्होंने हिंदुत्व का परित्याग कर सेकुलर बनते हुए शिवसेना के ही कट्टर विरोधी रही कांग्रेस और एनसीपी से हाथ मिला लिया। यहां तक कि जब पालघर में दो साधुओं की पीटकर हत्या की गई, तो उद्धव ठाकरे ने इसका जोरदार विरोध तक नहीं किया।

फिर भी शायद शिवसेना में अंदर ये सुगबुगाहट रही कि हिंदुत्व की वजह से जिस शिवसेना की पहचान थी, उसे अपना पुराना चोला छोड़ना नहीं चाहिए था। नतीजे में बीते दिनों जब राज्यसभा और विधान परिषद चुनाव हुए, तो शिवसेना के विधायकों ने ही उद्धव को झटका देते हुए बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग कर उसके एक्स्ट्रा उम्मीदवारों की जीत तय कर दी। फिर उद्धव ने इस पर नाराजगी जताई, तो उनके ही करीबी रहे एकनाथ शिंदे ने हिंदुत्व की बात कहते हुए सबसे पहले बगावत की और फिर इसी मुद्दे पर अपने साथ 39 शिवसेना विधायकों समेत करीब 50 विधायक जोड़ लिए। इसके साथ ही 9 दिन में हिंदुत्व ने आखिरकार उद्धव सरकार की बलि ले ली।

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