नई दिल्ली। भाषा को लेकर देश में हमेशा से ही विवाद रहा है। कोई हिंदी की वकालत में मशगूल रहता है, तो कोई अंग्रेजी की, लेकिन विरले ही ऐसे लोग सामने आते हैं, जो खुलकर संस्कृत भाषा की पैरवी करें। शायद लोग इसलिए भी लोग इस भाषा की पैरवी करने से गुरेज करते हैं, क्योंकि इसे जानने वाले लोग ही अब विलुप्ति के कगार पर आ चुके हैं। अगर समय रहते कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया, तो यह भाषा भी अन्य भाषाओं की भांति इतिहास का रूप धारण कर लेगी, इसलिए समय रहते कोई ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
आज इसी आवश्यकता पर पूर्व प्रधान न्यायाधीश एसएस बोबडे ने बल दिया। उन्होंने संस्कृत भाषा की वकालत की। उन्होंने संस्कृत को आधिकारिक भाषा बनाए जाने की भी मांग की है। उन्होंने संविधान निर्माता डॉ आंबेडकर का जिक्र कर कहा कि उनका सपना था कि संस्कृत देश की आधिकारिक भाषा बने। वर्तमान में अधिकांश सरकारी काम हिंदी और अंग्रेजी में निष्पादित होते हैं, लेकिन अब समय आ चुका है कि हम अपनी प्राचीनतम संस्कृत भाषा को संरक्षित करने की दिशा में कदम उठाए।
उन्होंने अपने पुराने अनुभवों को साझा करते हुए कहा कि उन्हें कई ऐसे ज्ञापन मिले हैं, जिसमें लोगों ने सरकारी कामों को अपने क्षेत्रीय भाषा में निष्पादित करने की मांग की है, चूंकि आज भी हमारे देश में कई ऐसे लोग हैं, जो अंग्रेजी भाषा से परिचित हैं। उन्होंने आगे कहा कि वर्तमान में महज 4 फीसद ही लोग ऐसे हैं, जो कि अंग्रेजी भाषा से परिचित हैं। पूर्व न्यायाधीश ने कहा कि ऐसी स्थिति में हमें संस्कृत भाषा को विस्तारित करने की दिशा में कदम उठाने होंगे। उन्होंने आगे कहा कि इस राह में बेशुमार दुश्वारियां हैं, लेकिन इन सभी दुश्वारियों को विराम देते हुए हमें संस्कृत भाषा को विस्तारित करने की दिशा में कदम उठाने होंगे।
पूर्व प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि मैंने पुराने अखबारों में कई लेख पढ़े हैं, जिसमें संविधान निर्माता डॉ भीमराव आंबेडकर ने संस्कृत भाषा को विस्तारित करने की दिशा में अपनी इच्छा जाहिर की थी। उन्होंने आगे कहा कि संस्कृत भाषा को अपनाना इतना आसान नहीं है। यह काम रातोंरात नहीं हो सकता है। इसमें बहुत समय लगेंगे, लेकिन अगर हम दृढ़ इच्छा शक्ति जाहिर करें तो इस काम को किया जा सकता है।