News Room Post

‘हिंदी यूपी-बिहार जैसे पिछड़ों राज्यों की भाषा, ये लोगों को शुद्र बना देती है’, तमिलनाडु के नेता का विवादित बयान

tamilnadu

नई दिल्ली। यूं तो भारतीय राजनीति में हमेशा ही भाषा को लेकर बहस देखने को मिलती रही है, लेकिन बीते कुछ दिनों से एक बार फिर हिंदी को लेकर बहस अपने चरम पर पहुंच चुकी है। सिनेमाई जगत से लेकर राजनीति जगत की जानी मानी हस्तियां इस पर खुलकर अपनी राय जाहिर कर रही हैं, जहां कुछ लोग हिंदी की स्वीकार्यता बढ़ाने की वकालत कर रहे हैं, तो वहीं कुछ लोगों का तो ये तक कहना है कि हिंदी शुद्रों की भाषा है। ये तो बिहार, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश सरीखे राज्यों की भाषा है। जी हां… बिल्कुल सही पढ़ा आपने….अब आप यही जानने के लिए बेताब हो रहे होंगे न कि आखिर कौन है, वो शख्स जिसने इस तरह का विवादित बयान दे डाला है, तो आपको बता दें कि ये बयान किसी और ने नहीं, बल्कि डीएमके के सांसद टीकेएस एलनगोवन ने दिया है। ये विचार उन्हीं के हैं। उनका ही मानना है कि, ‘अगर हम अंग्रेजी की महत्ता को कम करते हुए हिंदी की स्वीकार्यता को बढ़ाते हैं, तो लोग शुद्र बन जाएंगे’।

ये उन्हीं का मानना है कि हिंदी पिछड़ो की भाषा है। इसके साथ ही मंत्री ने हिंदी और अंग्रेजी की पारस्परिक तुलना करते हुए कहा कि अंग्रेजी हिंदी की तुलना में अधिक मूल्यवान है। यह एक अंतरराष्ट्रीय भाषा है। इसकी स्वीकार्यकता हिंदी की तुलना में कहीं अधिक है। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी एक रोजगारपरक भाषा है। लिहाजा आप चाहकर भी अंग्रेजी की महत्ता को कम नहीं कर सकते हैं। बता दें कि उनका यह बयान ऐसे वक्त में सामने आया है, जब हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री ने एक कार्यक्रम में हिंदी की स्वीकार्यता अंग्रेजी की तुलना में बढ़ाने की बात कही थी। मंत्री ने आगे कहा कि हिंदी बोलने वाले लोग पानी पुरी बेचते हैं। वहीं, डीएमके ने अपनी ही पार्टी के नेता के बयान का विरोध किया था। उन्होंने कहा था कि मंत्री साहब जनसरोकारों से जुड़े मसलों से देश के ध्यान का भटकाने के लिए यह सब कर रहे हैं। लेकिन, मैं उन्हें साफ किए देता हूं कि उनका यह बयान किसी भी रीति कोई प्रतिफल नहीं वाला है।

बता दें कि इससे पहले भी कई लोग हिंदी पर बयान जारी कर चुके हैं। ध्यान रहे कि इससे पहले हिंदी को तीखी बहस देखने को मिली थी। तमिलनाडु के स्वास्थ्य मंत्री सुब्रमण्यम ने तो प्रदेश में कोरोना वायरस के मामले में तेजी की वजह उत्तर भारतीय के लोगों को बताया था, जिसे लेकर भी काफी विवाद देखने को मिला था। बहरहाल, अब भाषा को लेकर उपजा यह विवाद आगे चलकर क्या कुछ रुख अख्तियार करता है। इस पर सभी की निगाहें टिकी रहेंगी। तब तक के लिए आप देश-दुनिया की तमाम बड़ी खबरों से रूबरू होने के लिए आप पढ़ते रहिए। न्यूज रूम पोस्ट.कॉम

Exit mobile version