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राजस्थान के स्कूलों में नहीं है क्लासरूम…त्रस्त छात्रों ने सड़क पर आकर किया चक्काजाम..लेकिन सरकार खामोश !

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नई दिल्ली। ये वही सरकार है, जो सर्व शिक्षा अभियान की बात करती है, ये वही सरकार है, जो सब पढ़े व सब बढ़े का नारा देने से नहीं थकती है, इतना ही नहीं, अब तो यह सरकार सभी स्कूली छात्रों को ऑनलाइन शिक्षा से जोड़ने की बातें करने लगी है, लेकिन ये लगता है कि उन सूबों, कस्बों और इलाकों का दौर करने की जहमत नहीं उठाती है। ज़रा कहिए इनसे कि ये कभी उन इलाकों का दौर करने की जहमत उठाए, जहां बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा की तो बात ही छोड़िए, स्कूलों में अच्छे से बैठने के लिए कक्षाएं ही नसीब हो जाए, तो समझिए छात्रों के भाग्य खुल जाएंगे। ज़रा कहिए इनसे की कभी राजस्थान के भीलवाड़ा के फुलियाकला के कस्बे का दौरा कर जरा छात्रों की बदहाली पर गौर करें।

वही राजस्थान जहां गहलोत की सरकार है और कांग्रेस का राज है, लेकिन अब इसी कांग्रेसी राज में छात्रों का धैर्य जवाब दे रहा है। अब इनसे रहा नहीं गया। छात्रों ने कहा कि बस….! अब बहुत हो गया है…वो क्या कहते हैं अंग्रेजी में…’दिस इज टू मच नाउ’… जी हां…यही बोलकर छात्रों ने सरकार और प्रशासन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। छात्रों ने तनिक भी ये कहने से गुरेज नहीं किया कि आजादी के सात दशकों के बाद भी अगर हमें स्कूलों में बैठने के लिए ढंग के क्लासरूम नहीं मिल रहे हैं, तो ये कैसा विकास है। आखिर इस विकास का हम करे तो करे क्या। लिहाजा, छात्रों ने सड़कों पर निकलकर सरकार और प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी की। छात्रों ने अपने विरोध की नुमाइश करने के लिए बाजारों में चक्का जाम कर दिया। बाजारों में दुकानदारों की दुकानें बंद करवा दी। पूरे बाजार को वीरान कर दिया गया। मकसद….! मकसद मत पूछिए आप…मकसद तो बस इतना था कि उन्हें पढ़ने के लिए क्लासरूम मिल जाए, लेकिन सत्ता में बैठे सियासी सूरमा उनकी सुनने को बिल्कुल भी तैयार ही नहीं थे, लिहाजा छात्रों ने अपनी बात हुकूमत में बैठे उन सियासी सूरमाओं तक पहुंचाने के लिए इस तरह के रास्ते का अख्तियार किया जो इन्हें चुनावी मौसम में लुभावने सपने दिखाकर चुनाव खत्म होने के बाद अंडरग्राउंड हो जाते हैं।

आपको बता दें कि छात्रों ने कक्षाओं का बहिष्कार कर सरकार से खुद के लिए कक्षाओं के निर्माण की मांग की है। छात्रों का कहना है कि उन्होंने कई मर्तबा आधिकारिक गतिविविधियों का उपयोग कर अपनी बात सरकार तक पहुंचाने की कोशिश की है, लेकिन सरकार कभी इस पर ध्यान देने की चेष्टा नहीं करती है, जिसके परिणामस्वरूप अब वे इस तरह के कदम उठाने पर बाध्य हो रहे हैं। वहीं, भीलवाड़ा प्रशासन को जैसे ही छात्रों के आक्रोशित प्रदर्शन के बारे में पता चला, तो उन्होंने इस पर काबू पाने के लिए मौके पर पुलिसकर्मियों को भेजकर स्थिति पर काबू पाने का प्रयास किया। प्रदर्शनकारी छात्रों को समझाने का पूरा प्रयास किया गया और उन्हें आश्वस्त किया गया कि बहुत जल्द ही हालात दुरूस्त हो जाएंगे और स्कूलों में कक्षाओं का निर्माण शुरू हो जाएगा।

इस दौरान छात्रों के विरोध प्रदर्शन के बहाने स्थिति हिंसात्मक बनाने के ध्येय से उत्पात मचाने वाले तीन ग्रमीणों को भी हिरासत में ले लिया गया है, लेकिन प्रशासन के आश्वासन के समक्ष छात्र नरम होने को तैयार नहीं हैं। उनका साफ कहना है कि जब तक उनकी मांगों पर विचार कर कक्षाओं का निर्माण नहीं करवाया जाएगा, तब तक न ही वे पढ़ाई में शामिल होने वाले हैं और न ही अपने प्रदर्शन के सिलसिले पर विराम लगाने वाले हैं। खैर, अब देखना यह होगा कि सरकार छात्रों के मांगों पर पूर्ण रूप से कब तक विचार करती है। आखिर कब तक स्कूलों को सुधारने की दिशा में कदम बढ़ाए जाते हैं। लेकिन, भीलवाडा में छात्रों का यह प्रदर्शन वहां के सरकार के प्रति जनता के बेरुखी बयां करने के लिए काफी है लगता !

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