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Ram vilas Paswan: जानिए कैसे 5 दशकों तक जनता की सेवा करते और लगातार चुनावों में जीत हासिल करते रहे रामविलास पासवान

नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री राम विलास पासवान का निधन हो गया है। वे 74 साल के थे। वे पिछले कुछ दिनों से बीमार थे और दिल्ली के एस्कॉर्ट हॉस्पिटल में भर्ती थे। उनके बेटे चिराग पासवान ने इस बात की जानकारी खुद ट्वीट कर दी। चिराग ने ट्वीट में लिखा कि पापा….अब आप इस दुनिया में नहीं हैं लेकिन मुझे पता है आप जहां भी हैं हमेशा मेरे साथ हैं। Miss You Papa… अपने ट्वीट में चिराग पासवान ने अपने पिता की एक तस्वीर भी शेयर की है जिसमें चिराग रामविलास की गोद में नजर आ रहे हैं।

रामविलास पासवान को राजनीति का रूख भांपना अच्छी तरह से आता था। उनको देश के सबसे अनुभवी नेताओं में से एक माना जाता था। उनके पास 5 दशक से भी ज्यादा का संसदीय अनुभव था जिसमें वह 9 बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा सांसद रहे। वह अभी बिहार से राज्यसभा सांसद और केंद्रीय मंत्री थे।

ramvilas paswan

रामविलास पासवान को भारतीय राजनीति का ऐसा नेता माना जाता है जो बहुत जल्द ही राजनीतिक हवा का रुख पहचान लेते थे। कभी कांग्रेस की सत्ता के खिलाफ आपातकाल के दौरान वह जेल गए तो उसी की अगुवाई वाली यूपीए सरकार में मंत्री भी रहे। तब जो बीजेपी उनकी नीतियों का विरोध करते थे उसी एनडीए की सरकार में पासवान मंत्री भी रहे।

राम विलास पासवान का जन्म जामुन पासवान और श्रीमती के घर पर हुआ जो बिहार के खगड़िया जिले के शहरबन्नी गांव में रहने वाला एक दलित परिवार था। पासवान ने कोसी कॉलेज, पिल्खी और पटना विश्वविद्यालय से कानून में स्नातक और मास्टर ऑफ़ आर्ट्स की डिग्री हासिल की है। उन्होंने 1960 के दशक में राजकुमारी देवी से शादी की थी।

पासवान के पास छः प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का अनूठा रिकॉर्ड

2014 में उन्होंने खुलासा किया कि उनके 1981 में लोकसभा के नामांकन पत्र को चुनौती दिए जाने के बाद उन्होंने उन्हें तलाक दे दिया था। उनकी पहली पत्नी से दो बेटियां, उषा और आशा हैं। 1983 में, उन्होंने रीना शर्मा से शादी की जो एक एयरहोस्टेस और अमृतसर से पंजाबी हिंदू परिवार से हैं। उनका एक बेटा और एक बेटी है। उनके बेटे चिराग पासवान नेता से पहले एक अभिनेता रह चुके हैं। पासवान ने पिछले 32 वर्षों में 11 चुनाव लड़े और उनमें से नौ जीते। इस बार उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा लेकिन इस बार सत्रहवीं लोकसभा में उन्होंने मोदी सरकार में एक बार फिर से उपभोक्ता मामलात मंत्री पद की शपथ ली। पासवान जी के पास छः प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का अनूठा रिकॉर्ड भी है।

लालू-नीतीश से पहले ही राजनीति में आ चुके थे रामविलास पासवान

रामविलास पासवान का राजनीतिक सफर पांच दशक से भी पुराना है। इस सदी या कहें कि बीते दो दशकों में वे केंद्र की हर सरकार में मंत्री रहे। पांच दशकों में रामविलास पासवान 8 बार लोकसभा के सदस्य रहे। पासवान उस वक्त बिहार विधानसभा के सदस्य बन गए थे, जब लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार अपने छात्र जीवन में ही थे।

इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी वाली कांग्रेस सरकार से लड़ने से लेकर अगले पांच दशकों तक पासवान कई बार कांग्रेस के साथ, तो कभी खिलाफ चुनाव लड़ते रहे और जीतते रहे। 1977 के लोकसभा चुनाव में ही हाजीपुर सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव लड़े पासवान ने चार लाख से ज्यादा वोटों से जीत दर्ज कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था। इसके बाद 2014 तक उन्होंने आठ बार आम चुनावों में जीत हासिल की। फिलहाल वे राज्यसभा के सदस्य थे।

ऐसे शुरू हुआ था राजनीतिक सफर

रामविलास पासवान का राजनीतिक सफर 1969 में तब शुरू हुआ था, जब वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीतकर बिहार विधानसभा के सदस्य बने थे। खगड़िया में एक दलित परिवार में 5 जुलाई 1946 को जन्मे रामविलास पासवान राजनीति में आने से पहले बिहार प्रशासनिक सेवा में अधिकारी थे। पासवान ने इमरजेंसी का पूरा दौर जेल में गुजारा। इमरजेंसी खत्म होने के बाद पासवान छूटे और जनता दल में शामिल हो गए। जनता दल के ही टिकट पर उन्होंने हाजीपुर संसदीय सीट से 1977 के आम चुनाव में ऐसी जीत हासिल की, जो इतिहास में दर्ज हो गई।

वीपी सिंह की सरकार में पहली बार कैबिनेट में आए पासवान

1977 की रिकॉर्ड जीत के बाद रामविलास पासवान फिर से 1980 और 1989 के लोकसभा चुनावों में जीते। इसके बाद बनी विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार में उन्हें पहली बार कैबिनेट मंत्री बनाया गया। अगले कई सालों तक विभिन्न सरकारों में पासवान ने रेल से लेकर दूरसंचार और कोयला मंत्रालय तक की जिम्मेदारी संभाली। इस बीच, वे भाजपा, कांग्रेस, राजद और जदयू के साथ कई गठबंधनों में रहे और केंद्र सरकार में मंत्री बने रहे। पासवान नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली दोनों सरकारों में खाद्य और उपभोक्ता मामलों के मंत्री रहे हैं।

एक बार एनडीए से भी तोड़ चुके हैं नाता

रामविलास पासवान ने 2002 के गोधरा दंगों के बाद तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी वाली सरकार में मंत्री पद से इस्तीफा देकर एनडीए गठबंधन से भी नाता तोड़ लिया था। इसके बाद पासवान कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) में शामिल हुए और मनमोहन सिंह कैबिनेट में दो बार मंत्री रहे। हालांकि, 2014 आते-आते पासवान एक बार फिर यूपीए का साथ छोड़कर एनडीए में शामिल हो गए। 2014 और फिर 2019 में बनी नरेंद्र मोदी की दोनों सरकारों में उन्हें केंद्रीय कैबिनेट में अहम मंत्रालय दिए गए।

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